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Swachh Survekshan 2021: पांच साल में दून पहली बार टाप 100 में, चुनौती बरकरार

Swachh Survekshan 2021 स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 में 10 लाख जनसंख्या की श्रेणी में देशभर के 372 शहरों को शामिल किया गया था। इसमें देहरादून शहर 82वें नंबर पर रहा। पिछले पांच सालों के दौरान देहरादून पहली बार 100 शीर्ष शहरों में जगह बनाने में सफल रहा।

By Sumit KumarEdited By: Published: Sun, 21 Nov 2021 06:27 PM (IST)Updated: Sun, 21 Nov 2021 10:09 PM (IST)
स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 में देहरादून शहर 82वें नंबर पर रहा।

जागरण संवाददाता, देहरादून: Swachh Survekshan 2021 स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 में 10 लाख जनसंख्या की श्रेणी में देशभर के 372 शहरों को शामिल किया गया था। इसमें देहरादून शहर 82वें नंबर पर रहा। पिछले पांच सालों के दौरान देहरादून पहली बार 100 शीर्ष शहरों में जगह बनाने में सफल रहा। उत्तराखंड के किसी भी शहर ने पहले के किसी भी स्वच्छ सर्वेक्षण संस्करण में 100 से नीचे का आंकड़ा पार नहीं किया था। सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज (एसडीसी) फाउंडेशन ने स्वच्छ सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए प्रदेश के शहरों की समीक्षा की है।

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फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल के मुताबिक देहरादून को अब टॉप फाइव के लिए काम करना चाहिए। यदि कूड़ा उठान की दिशा में और प्रयास किए जाएं तो मंजिल दूर भी नहीं। अनूप नौटियाल ने कहा कि देहरादून के बाद रुड़की को 101वीं रैंक मिली और यह शहर महज एक पायदान पीछे रह गया। लिहाजा, रुड़की को उन बातों पर गौर करना चाहिए जिसके चलते वह टॉप 100 शहरों में जगह नहीं बना पाया। इस दिशा में सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति से लेकर घर-घर कूड़ा उठान व सार्वजनिक कूड़ेदानों की स्थिति पर काम करने की जरूरत है। हालांकि, बाकी शहरों को अभी स्वच्छता की दिशा में अधिक काम करने की जरूरत है। इतना जरूर है कि रुद्रपुर 403 से 316 और अब 257वें स्थान पर पहुंच गया है।

फिर भी 257वीं रैंक किसी भी शहर के लिए एक खराब स्वच्छता रैंक है। हरिद्वार, हल्द्वानी और काशीपुर का प्रदर्शन पिछले साल से बदतर रहा है। हरिद्वार 2020 में 244 से 2021 में 285 पर फिसल गया है। हल्द्वानी 2020 में 229वीं रैंक की तुलना में 2021 में 281 पर है। काशीपुर 342वीं रैंक के साथ उत्तराखंड का सबसे गंदा शहर है। 2020 में काशीपुर की रैंक 139 थी।

छोटे शहरों में अधिक सुधार

उत्तराखंड के बड़े शहरों की तुलना में कुछ छोटे शहरों में वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम ज्यादा बेहतर हुआ है। इन कस्बों में पब्लिक अवेयरनेस भी बेहतर दर्ज हुई है और इनके प्रदर्शन मे भी लगातार सुधार रहा है। ये कस्बे रिसाइकिलिंग और प्लास्टिक वेस्ट बिक्री से भी अपने लिए संसाधन जुटा रहे हैं। ऋषिकेश के पास मुनिकीरेती ने शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है। मुनिकीरेती राज्य के छोटे शहरों में वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम का एक सफल और सतत मॉडल बनकर उभरा है।

सुधार के बाद भी चुनौती बरकरार

रैंकिंग में कुछ हद तक सुधार के बावजूद, वेस्ट मैनेजमेंट और स्वच्छता उत्तराखंड के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। स्वच्छता पर काम करने के प्रयास जरूरत के मुकाबले कम हैं और उनमें निरंतरता की ज़रुरत है। कई शहरों और कस्बों में सूखे और गीले कचरे को अब भी अलग नहीं किया जा रहा है और दोनों तरह के कचरा एक साथ उठाया जा रहा है। शहरी स्थानीय निकायों के पास मैन पावर और संसाधनों की कमी है। लगातार बढ़ रहे कचरे को मैनेज करने में ये संसाधन कम पड़ रहे हैं।

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प्लास्टिक कचरे की चुनौती भी बढ़ रही

अनूप नौटियाल के मुताबिक प्लास्टिक कचरे की चुनौती लगातार बढ़ रही है। उत्तराखंड जैसे पारिस्थितिक रूप से नाजुक पर्वतीय राज्य के लिए प्लास्टिक कचरा एक बेहद बड़ा खतरा है। शहरी क्षेत्रों में खुले में कचरा फेंकना और कचरे के ढेरों पर जानवरों का मुंह मारना आम बात है। शहरों ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों और पर्यटन स्थलों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। यहां स्थानीय स्तर पर वेस्ट मैनेमेंट की व्यवस्था नहीं है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उत्तराखंड में नए और आर्थिक रूप से मजबूत वेस्ट मैनेजमेंट मॉडल की आवश्यकता है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो 2021 के स्वच्छ सर्वेक्षण के परिणामों को उत्तराखंड के लिए एक कदम आगे, एक कदम पीछे के रूप में देखना ज्यादा ठीक होगा। उत्तराखंड के शहरों और कस्बों को स्वच्छ और कचरा मुक्त बनाने के लिए अधिकारियों और नागरिकों को वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

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