Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शहर के फुटपाथ कभी खाली नहीं करा पाई 'दून की सरकार', हटाते ही फिर हो जाता है कब्जा

    Updated: Fri, 10 Oct 2025 11:24 AM (IST)

    देहरादून में फुटपाथों पर अतिक्रमण एक बड़ी समस्या है जिससे जनता परेशान है। प्रशासन बार-बार अतिक्रमण हटाता है, लेकिन वे फिर से कब्जा कर लिए जाते हैं। 'दून की सरकार' इस समस्या का स्थायी समाधान निकालने में विफल रही है, जिससे लोगों को चलने में दिक्कत हो रही है। इस समस्या का स्थायी समाधान निकालने की आवश्यकता है।

    Hero Image

    शहर में प्रमुख बाजार व सड़कों पर हर जगह फुटपाथ पर हुआ है स्थायी व अस्थायी अतिक्रमण. File Photo

    अंकुर अग्रवाल, जागरण देहरादून। स्मार्ट शहर दून। सुनने में जितना अच्छा लगता है, धरातल पर वैसा कुछ दिखता नहीं। स्मार्ट शहर की परिकल्पना तभी साकार हो सकती है, जब सड़क पर वाहनों के चलने की पर्याप्त जगह हो और पैदल चलने के लिए फुटपाथ। फुटपाथ होंगे तो दुर्घटना का खतरा भी कम होगा व बाजार में खरीदारी करने वालों को परेशानी भी नहीं होगी। ...लेकिन दून शहर में ऐसा नहीं है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यहां सड़कें और फुटपाथ तो बने हैं, लेकिन सड़कों पर वाहनों के लिए पर्याप्त जगह नहीं और पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ खाली नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट ने दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में पैदल चलने व साइकिल से चलने वालों की सुरक्षा के दृष्टिगत सड़कों के आडिट
    कराने के निर्देश दिए हैं तो उम्मीद जग गई है शायद सरकारी मशीनरी कोई ठोस कदम उठाएगी।

    दून में सड़क व फुटपाथ पर अतिक्रमण की भरमार है। अतिक्रमण के लिए भी जिम्मेदार नगर निगम है और कार्रवाई न करने के लिए भी। सच तो यह है कि नगर निगम की ''''सरकार'''' कभी भी शहर के फुटपाथ स्थायी रूप से खाली नहीं करा पाई। दिखावे के लिए न्यायालय के आदेश पर यदा-कदा अभियान जरूर चलाए गए, लेकिन जिस तेजी से अभियान खत्म हुए, उसी तेजी से फुटपाथ फिर ''''घिर'''' गए।

    अप्रैल-2022 में सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली ने देशभर में फुटपाथ पर हुआ अतिक्रमण व कब्जे हटाने के लिए हाकिंग नीति बनाने के निर्देश दिए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि ''''फुटपाथ पर पैदल चलने वालों का अधिकार है, जबकि कईं लोग फुटपाथ पर अतिक्रमण कर फेरी, फड़-ठेली लगा लेते हैं या बगीचे का विस्तार या सुरक्षा गार्ड का केबिन बना देते हैं। यह सार्वजनिक स्थान का अतिक्रमण हैं।''''

    इसके बाद जून-2024 में मुंबई के उच्च न्यायालय ने भी फुटपाथ पर हुआ अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए। दून शहर में सड़कों और फुटपाथों पर अतिक्रमण व कब्जों को लेकर नैनीताल उच्च न्यायालय भी वर्ष-2012 और वर्ष-2018 में कार्रवाई के आदेश दे चुका है। इसके बावजूद यहां जिम्मेदार सरकारी मशीनरी (नगर निगम) कभी स्थायी कदम नहीं उठा पाया। हालांकि, न्यायालय में दी जाने वाली रिपोर्ट में सरकारी मशीनरी हमेशा यह दावा करती है कि, दून में फुटपाथ हैं और सड़क साफ है, लेकिन सच इसके एकदम उलट है। शहर के सबसे प्रमुख और व्यस्ततम पलटन बाजार और धामावाला बाजार की बात करें तो यहां फुटपाथ तो दूर की बात, सड़क तक नजर नहीं आती।

    प्रमुख बाजार का ही बुरा हाल

    शहर के सबसे प्रमुख बाजार पलटन बाजार, धामावाला, पीपलमंडी में घंटाघर से लक्खीबाग पुलिस चौकी तक डेढ़ किमी के इस मार्ग में ऐसा कोई स्थान नहीं, जहां फुटपाथ पर कब्जा न हो। भीड़ के कारण सुबह से रात तक पैक रहने वाले इस बाजार में जनता को पैदल चलने लायक जगह नहीं मिल पाती। हर तरफ अतिक्रमण व अवैध कब्जों की भरमार है। हैरानी की बात तो यह कि फुटपाथ का सौदा तक हो रहा है। जिम्मेदार विभाग यदा-कदा जरूर अभियान चलाकर फुटपाथ खाली करा देते हैं, लेकिन उनके जाते ही फुटपाथ फिर कब्जे की जद में आ जाते हैं। बात चाहे पलटन बाजार की हो या शहर के अन्य बाजार, सहारनपुर रोड, कांवली रोड और धर्मपुर से लेकर राजपुर रोड, चकाराता रोड, ईसी रोड, गांधी रोड, जीएमएस रोड आदि। हर जगह फुटपाथ पर ''''बाजार'''' सजा रहता है और जिम्मेदार नगर निगम कुंभकर्णी नींद में रहता है।

    फुटपाथ का होता है सौदा

    फुटपाथ पर अतिक्रमण को लेकर सरकारी मशीनरी हमेशा नींद में रही। अतिक्रमण हटाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है। हालात ऐसे हैं कि पैदल चलने वाले खुद के लिए जगह तलाशते रहते हैं। फुटपाथों पर दुकानें सजी रहती हैं। जहां दुकान नहीं है, वहां फल-सब्जी, रेहड़ी, फड़ वाले कब्जा किए बैठे हैं। हद तो यह है कि, शहर के सभी मुख्य बाजारों में बने फुटपाथ का व्यापारी ''''सौदा'''' करते हैं। दुकान के बाहर फड़-रेहड़ी लगाने का बाकायदा पैसा वसूला जाता है। दुकानदार ही नहीं ''''सरकारी मशीनरी'''' पर भी वसूली के आरोप लगते रहे हैं।

    नहीं बनाई हाकिंग नीति

    तीन वर्ष पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि फेरीवालों को हाकिंग नीति के अनुसार ही फेरी लगाने की मंजूरी दी जा सकती है। यह घूम-घूमकर ही सामान बेच सकते हैं। निर्देश दिए थे कि जहां कहीं भी फुटपाथ पर कब्जा या अतिक्रमण मिलता है, वहां संबंधित व्यक्ति के विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए और अतिक्रमण फुटपाथ से हटाया जाना चाहिए। अगर कोई मकान या दुकान मालिक अतिक्रमण हटाने के बाद फिर फुटपाथ पर कब्जा कर लेता है तो उनके आवास-दुकान पर पानी, बिजली और सीवेज जैसी सेवाओं को बंद करने के नियम बनाए जाने चाहिए, लेकिन नगर निगम इस ओर सोच भी नहीं सका।

    उत्तराखंड उच्च न्यायालय भी ले चुका है संज्ञान

    अगस्त-2018 में उत्तराखंड के नैनीताल उच्च न्यायालय ने दून शहर में फुटपाथ खाली कराने को बाकायदा कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति की थी। सरकार ने उस समय कुछ जगह इच्छाशक्ति दिखाते हुए कार्रवाई की थी, लेकिन समय के बाद फुटपाथ फिर कब्जे में आ गए। वर्ष-2019 में फिर प्रशासन का डंडा चला, मगर-2020 में कोरोना के कारण मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद कभी व्यापक स्तर पर कार्रवाई नहीं हुई।