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    Diwali 2022 : उत्‍तराखंड के इस इलाके में एक माह बाद मनाई जाती है दिवाली, पटाखे छोड़ लोग जलाते हैं मशाल

    By Jagran NewsEdited By: Nirmala Bohra
    Updated: Sun, 23 Oct 2022 12:03 PM (IST)

    Diwali 2022 पूरे देश में 24 अक्टूबर को दीपावली पर्व की धूम रहेगी लेकिन उत्‍तराखंड के इस इलाके में एक माह बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली मनाई जाएगी। ईको फ्रेंडली दीपावली मनाने का रिवाज पौराणिक काल से है।

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    Diwali 2022 : ईको फ्रेंडली दीपावली मनाने का रिवाज पौराणिक काल से है। जागरण

    टीम जागरण, देहरादून : Diwali 2022 : पूरे देश में 24 अक्टूबर को दीपावली पर्व की धूम रहेगी, लेकिन उत्‍तराखंड के जौनसार में देश की दीपावली के एक माह बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली मनाने का रिवाज है। हालांकि बावर व जौनसार की कुछ खतों में नई दीपावली मनाने का चलन शुरू हो गया है, लेकिन यहां पर बूढ़ी दीवाली को मनाने का तरीका अनोखा है।

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    भीमल की लकड़ी से बनाई जाती है मशाल

    • बूढ़ी दीवाली में भीमल की लकड़ी से मशाल बनाई जाती है। जिसे जलाकर नृत्य किया जाता है।
    • स्थानीय भाषा में इसे होला कहा जाता है।
    • यहां खासियत यह है कि जौनसार बावर में बूढ़ी दीपावली में पर्यावरण को प्रदूषित नहीं किया जाता।
    • ईको फ्रेंडली दीपावली मनाने का रिवाज पौराणिक काल से है।
    • यहां पर पटाखे, आतिशबाजी का चलन नहीं है। इसीलिए मशालों से गांव को रोशन किया जाता है।
    • रात को सारे पुरुष होला को जलाकर ढोल-दमाऊ रणसिंगे की थाप पर पंचायती आंगन में लोक नृत्य कर खुशियां मनाते हैं।
    • दीपावली के गीत गाते व बजाते हुए वापस अपने अपने घरों को लौट जाते हैं।
    • दिवाली की दूसरी रात अमावस्या की रात होती है, जिसे रतजगा कहा जाता है।
    • गांव के पंचायती आंगन में अलाव जलाकर नाच गाने का आनंद लिया जाता है।

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    भिरुड़ी के गीत गाते हैं युवक व युवतियां

    भिरुड़ी में हर घर से लोग आंगन में आकर अखरोट का प्रसाद पाते हैं। युवक व युवतियां भिरुड़ी के गीत गाते हैं। विशेष पकवान चिवड़ा, मीठी रोटी बनाई जाती है। एक दूसरे के घर दावतों का दौर चलता है। दिवाली के समापन के दिन कहीं हाथी तो कहीं पर हिरण नचाया जाता है।

    एक माह बाद चला था राम के वनवास से घर लौटने का पता

    जौनसार के पूर्व दर्जाधारी टीकाराम शाह, रंगकर्मी नंदलाल भारती, संतराम आदि का कहना है कि एक माह बाद दीपावली मनाने के पीछे तर्क है कि यहां के निवासियों को राम के वनवास से घर लौटने का पता एक माह बाद चला था। स्थानीय लोग अपनी संस्कृतिक गणवेष में सजकर रासों, तांदी नृत्य मनाते हैं।

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