उत्तराखंड में इन टीचरों पर लटकी कार्रवाई की तलवार, पांच सदस्यीय कमेटी गठित; प्रमाण पत्रों की होगी उच्च स्तरीय जांच
उत्तराखंड में 51 शिक्षकों द्वारा फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल करने के मामले में शासन ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। माध्यमिक शिक्षा निदेशक के नेतृत्व में पांच सदस्यीय कमेटी गठित की गई है, जो जल्द ही रिपोर्ट सौंपेगी। इस जांच के दायरे में शिक्षक, प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारी और चिकित्सक भी शामिल हैं। दोषी पाए जाने पर दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।

माध्यमिक शिक्षा निदेशक के नेतृत्व में कमेटी जल्द शासन को सौंपेगी रिपोर्ट. Concept Photo
राज्य ब्यूरो, जागरण, देहरादून । फर्जीवाड़े से दिव्यांग कोटे की नौकरी हासिल करने के आरोपित 51 शिक्षकों के दिव्यांगता प्रमाण पत्रों की शासन ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। माध्यमिक शिक्षा निदेशक की अगुवाई में गठित पांच सदस्यीय कमेटी में अपर निदेशक माध्यमिक एवं प्रारंभिक शिक्षा (गढ़वाल) के अलावा कार्यालय दिव्यांगजन उत्तराखंड एवं कार्मिक विभाग से एक-एक अधिकारी शामिल किए गए हैं। कमेटी जल्द से जल्द जांच कर अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपेगी।
शासन के इस कदम से अब अनुचित लाभ प्राप्त कर रहे आरोपित शिक्षकों, प्रमाण पत्र जांचने वाले प्राधिकारी, मेडिकल बोर्ड के चिकित्सकों पर भी कार्रवाई की तलवार लटक गई है। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के तहत फर्जीवाड़े में संलिप्त आरोपित व्यक्ति को दो वर्ष की कैद और एक लाख रुपये जुर्माना हो सकता है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक डा मुकुल कुमार सती के अनुसार शासन ने पांच सदस्यीय कमेटी गठित कर जांच रिपोर्ट जल्द तलब की है। सभी पक्षों को जांच के दायरे में लेकर गहन पड़ताल की जाएगी।
ऐसे सामने आया प्रकरण
दरअसल, उच्च न्यायालय नैनीताल में योजित एक मामले में सुनवाई के बाद प्रकरण सामने आया कि शिक्षा विभाग में 36 एलटी शिक्षक, 14 प्रवक्ता संवर्ग शिक्षक एवं एक प्रधानाध्यापक फर्जी दिव्यांगता प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं। विभाग ने इन शिक्षकाें से संबंधित साक्ष्यों सहित उपस्थित होने के निर्देश दिए। निर्धारित समय में पक्ष प्रस्तुत न करने पर आरोपित शिक्षकों के विरुद्ध एकतरफा कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है।माध्यमिक शिक्षा निदेशालय के अनुसार न्यायालय के आदेश के अनुपालन में आयुक्त, दिव्यांगजन उत्तराखंड ने भी 22 नवंबर को मामले की सुनवाई की। आयुक्त ने शिक्षा निदेशालय को भेजी रिपोर्ट में प्रकरण में आगे की कार्रवाई करने को कहा है।
ये मिली खामियां
माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने संबंधित शिक्षकों के दिव्यांगता प्रमाण-पत्रों का मूल्यांकन किया। इसमें पाया गया कि महानिदेशक चिकित्सा बोर्ड ने कुछ शिक्षकों को दिव्यांग की श्रेणी में नहीं लिया है, जबकि कई मामलों में केवल 40 से 45 प्रतिशत तक की दिव्यांगता दर्ज है। दो मामलों को आगे मूल्यांकन के लिए एम्स रेफर किया गया है। एक प्रवक्ता के संदर्भ में आधार कार्ड और प्रमाण-पत्र में नाम भिन्न पाए गए। वहीं कुछ मामलों में उपचाराधीन का उल्लेख किया गया है, जिसका अर्थ है कि उन्हें दिव्यांगता श्रेणी में नहीं माना गया।

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