Dehradun News: गर्भवती की हेपेटाइटिस जांच, शादी से पहले हेल्थ कुंडली जरूरी
देहरादून में विश्व हेपेटाइटिस दिवस पर विशेषज्ञों ने हेपेटाइटिस के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई। गर्भवती महिलाओं की हेपेटाइटिस जांच अनिवार्य करने समय पर टीकाकरण और विवाह से पहले हेल्थ कुंडली की जांच कराने का सुझाव दिया गया है। दून अस्पताल में जल्द ही वायरल लोड जांच की सुविधा शुरू होगी। इस वर्ष हेपेटाइटिस-बी के 86 और सी के 236 रोगी चिह्नित किए गए।

जागरण संवाददाता, देहरादून। विश्व हेपेटाइटिस दिवस पर दून मेडिकल कालेज चिकित्सालय में आयोजित संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने हेपेटाइटिस के बढ़ते मामलों पर चिंता जाहिर की। इससे बचाव के लिए जागरूकता, समय पर जांच और टीकाकरण को जरूरी बताया।
मुख्य अतिथि कालेज की प्राचार्य डा. गीता जैन ने कहा कि गर्भवती महिलाओं की हेपेटाइटिस जांच अनिवार्य की जानी चाहिए, जिससे मां और नवजात शिशु दोनों को इस संक्रमण से बचाया जा सके।
उन्होंने कहा कि समय रहते संक्रमण की पहचान होने पर बचाव के उपाय किए जा सकते हैं, जिससे जीवनभर की जटिलताओं से बचा जा सकता है। राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. मनोज वर्मा ने बताया कि देहरादून जनपद में चरणबद्ध तरीके से सभी स्वास्थ्यकर्मियों को हेपेटाइटिस-बी की वैक्सीन दी जा रही है।
उन्होंने बताया कि जल्द ही दून अस्पताल में हेपेटाइटिस वायरल लोड जांच की सुविधा भी शुरू की जाएगी। मुख्य वक्ता गैस्ट्रोएंटेरोलाजिस्ट डा. प्रत्युष सिंघल ने बताया कि वायरल हेपेटाइटिस के कई प्रकार लंबे समय तक बिना लक्षण के शरीर में रह सकते हैं और लिवर सिरोसिस व कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डा. विवेकानंद सत्यवली ने कहा कि जागरूकता ही हेपेटाइटिस से बचाव का सबसे मजबूत माध्यम है। समय पर जांच और इलाज से इस बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
उप चिकित्सा अधीक्षक डा. एनएस बिष्ट ने इंजेक्टिंग ड्रग यूज (आइडीयू) की प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए कहा कि नशे के लिए इस्तेमाल होने वाली इंजेक्शन वाली दवाओं में अक्सर संक्रमित सूई साझा की जाती है, जिससे हेपेटाइटिस-बी और सी के संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
उन्होंने ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए जागरूकता फैलाने और पुनर्वास केंद्रों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। हेपेटाइटिस क्लीनिक के नोडल अधिकारी डा. अंकुर पांडेय ने सुझाव दिया कि विवाह से पूर्व सिर्फ जन्म कुंडली नहीं, बल्कि ‘हेल्थ कुंडली’ की भी जांच होनी चाहिए।
इससे न केवल हेपेटाइटिस, बल्कि थैलेसीमिया, एचआइवी और अन्य बीमारियों की समय पर पहचान हो सकती है। कार्यक्रम के दौरान एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई, जिसमें डा. एनएस बिष्ट, वरिष्ठ फिजीशियन डा. केसी पंत, डा. विवेकानंद सत्यवली, डा. प्रत्युष सिंघल और सेंट्रल लैब प्रभारी डा. निधि नेगी ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम में डा. अनिल जोशी, डा. शशि उप्रेती, डा. अरुण पांडेय, डा. पवनीश लोहान समेत विभिन्न विभागों के डाक्टरों और बड़ी संख्या में एमबीबीएस व पीजी छात्र उपस्थित रहे।
इस साल हेपेटाइटिस-बी के 86, सी के 236 रोगी चिह्नित
राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में आयोजित गोष्ठी में बीमारी के लक्षण व बचाव की जानकारी साझा की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. मनोज कुमार शर्मा ने की।
उन्होंने बताया कि जनपद देहरादून के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में इनकी निश्शुल्क जांच की सुविधा उपलब्ध है। साथ ही जिला चिकित्सालय में इलाज की भी व्यवस्था की गई है। एनवीएचसीपी के नोडल अधिकारी डा. मनोज कुमार वर्मा ने बताया कि बताया कि वर्ष 2024 में जनपद में कुल 9625 व्यक्तियों की स्क्रीनिंग में हेपेटाइटिस-बी के 344 और हेपेटाइटिस-सी के 854 रोगी पाजिटिव पाए गए।
वहीं 2025 में अभी तक की गई 2600 स्क्रीनिंग में हेपेटाइटिस-बी के 86 और 2709 स्क्रीनिंग में हेपेटाइटिस-सी के 236 रोगी चिह्नित किए गए। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. निधि रावत ने आमजन से भी बचाव के उपाय अपनाने की अपील की। कार्यक्रम में डा. वंदना सुंद्रियाल, डा. दिनेश चौहान, डा. कैलाश गुजियाल, डा. प्रदीप राणा आदि उपस्थित रहे।
चिकित्सकों ने बताया साइलेंट किलर से कैसे बचें
विश्व हेपेटाइटिस दिवस पर मैक्स अस्पताल ने जनजागरूकता अभियान चलाया। गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग के प्रिंसिपल कंसल्टेंट डा. मयंक गुप्ता ने बताया कि हेपेटाइटिस एक साइलेंट किलर है, जिसके लक्षण अक्सर शुरुआत में नजर नहीं आते।
थकान, मतली, भूख में कमी, पीलिया, पेट दर्द, गहरे रंग का पेशाब इसके सामान्य लक्षण हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि हेपेटाइटिस-ए और ई आमतौर पर समय के साथ ठीक हो जाते हैं, जबकि हेपेटाइटिस-बी और सी क्रानिक रूप ले सकते हैं।
इनके इलाज में एंटीवायरल दवाएं और कुछ मामलों में लीवर ट्रांसप्लांट तक की आवश्यकता पड़ सकती है। उन्होंने संक्रमण के मुख्य कारणों में दूषित भोजन-पानी, असुरक्षित रक्त चढ़ाना, यौन संबंध और एक ही सुई का उपयोग को जिम्मेदार बताया। साथ ही हेपेटाइटिस-ए और बी के लिए टीकाकरण को प्रभावी बचाव बताया।
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