Dehradun: उजड़ता रहा चाय बागान, हरी होती रही माफिया और अफसरों की जेब
देहरादून के लाडपुर क्षेत्र में चाय बागान की 350 बीघा जमीन पर माफिया का कब्जा है। सीलिंग एक्ट से मिली छूट का फायदा उठाकर फर्जी दस्तावेजों के जरिए जमीनों को खुर्द-बुर्द किया जा रहा है। प्रशासन की उदासीनता के चलते अवैध निर्माण जारी हैं और भूमाफिया सक्रिय हैं। जांच के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है।

सुमन सेमवाल, जागरण देहरादून। चाय बागान की आड़ में लाडपुर क्षेत्र में (रिंग रोड) जिन जमीनों को सीलिंग एक्ट से छूट मिली थी, वहां आज दूर-दूर तक चाय की खेती का नामो-निशान नहीं है। चाय बागान उजड़ता रहा और माफिया समेत नेताओं और अफसरों की जेब हरी होती रही। स्थिति यह है कि करीब 350 बीघा क्षेत्रफल पर फैले चाय बागान की भूमि पूरी तरह खुर्द-बुर्द कर दी गई है।
इस पूरे खेल में सबसे गंभीर बात यह रही कि जिस कुंवर चंद्र बहादुर (पुत्र शमशेर बहादुर) के नाम पर चाय बागान को सीलिंग से छूट दी गई थी, उनके नाम के फर्जी दाननामा और वसीयत, पावर आफ अटार्नी बनाकर माफिया ही जमीनों को बेचते रहे। 30 बीघा के एक भूखंड में इस फर्जीवाड़े को जिला प्रशासन ने पकड़ा भी, बावजूद इसके सरकारी तंत्र चाय बागान की जमीनों को मुक्त कराने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा पा रहा है।
फर्जीवाड़े का यह खेल लाडपुर क्षेत्र में खसरा नंबर 203, 204 और 205 में पकड़ा गया था। यह जमीन संतोष अग्रवाल नाम के भूमाफिया ने अपने नाम चढ़ा दी थी। इस खेल को अंजाम देने के लिए उसने सफेदपोशों की शह पर दावा पेश किया कि यह भूमि उनकी मां चंद्रावती की है। कहा गया कि चंद्रावती ने जमीन कुंवर चंद्र बहादुर से वर्ष 1988 में खरीदी थी और उसी दौरान उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। खेल को अंजाम देने के लिए वर्ष 2019 में चंद्रावती का मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया गया और वर्ष 2020 में जमीन को मिलीभगत कर संतोष अग्रवाल के नाम दर्ज करा दिया गया।
हालांकि, तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (प्रशासन)/सीलिंग अधिकारी डा एसके बरनवाल ने स्पष्ट किया कि चाय बागान का स्वरूप समाप्त होते ही या उसके विक्रय के साथ ही जमीन सरकार में निहित हो जाती है। लिहाजा, वर्ष 1988 में की गई बिक्री शून्य है और जमीन को सरकार में निहित कर दिया गया था।
इसी के साथ यह बात भी सामने आई थी कि संतोष अग्रवाल की तरह कुमुद वैद्य, आरती कुमार और दीपचंद्र अग्रवाल ने भी चाय बागान की जमीनों पर कब्जे के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए हैं। कुछ समय तक जिला प्रशासन के तत्कालीन अधिकारियों ने सरकार में निहित जमीन पर कब्जा लेने का प्रयास भी किया, लेकिन कुछ समय बाद ही सब कुछ ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। वर्तमान में बेहद कम भूमि सरकार के कब्जे में है। अभी भी तमाम निर्माण चाय बागान की भूमि पर गतिमान हैं।
माफिया ने भाजपा प्रदेश संगठन को भी बेची जमीन
चाय बागान की जमीनों पर निर्बाध कब्जे के लिए भूमाफिया ने तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार में भाजपा प्रदेश संगठन को भी चुग्गा डाला था। उस समय रिंग रोड पर चाय बागान की जमीन भाजपा प्रदेश संगठन को जमीन बेची गई थी। जिसकी रजिस्ट्री तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने करवाई थी। हालांकि, चाय बागान की जमीनों को खुर्द-बुर्द करने का खेल उजागर होने के बाद भाजपा ने इस जमीन से पल्ला झाड़ लिया था।
होटल भी चाय बागान की भूमि पर, प्रशासन रहा मौन
लाडपुर क्षेत्र में एक होटल का निर्माण भी चाय बागान की भूमि पर किया गया है। वर्ष 2023 में प्रशासन की जांच में इसकी पुष्टि की जा चुकी है। यह बात और है कि अधिकारी तब इस दिशा में कार्रवाई का साहस नहीं जुटा सके थे और शायद ही वर्तमान में इस दिशा में कोई कार्यवाही गतिमान हो।
चाय बागान और सीलिंग एक्ट के तहत अन्य भूमि पर कार्रवाई गतिमान है। कई भूमि सरकार में निहित भी की जा चुकी हैं। उस पर कब्जा लेना संबंधित तहसील का काम है। इस बारे में जल्द अपडेट जानकारी साझा की जाएगी। - जयभारत सिंह, अपर जिलाधिकारी/सीलिंग अधिकारी (देहरादून)
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