उत्तराखंड में सांपों से विष निकालने को नियम होंगे कड़े, इस वजह से लिया गया फैसला
उत्तराखंड वन विभाग सर्प विष निकालने के लाइसेंस नियमों को कड़ा करने जा रहा है। हरिद्वार में अवैध रूप से विष निकालने की घटना के बाद विभाग ने यह फैसला लिया है। लाइसेंस शुल्क बढ़ाया जाएगा सांपों को रखने की अवधि तय होगी और अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी। नए नियमों का उद्देश्य भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकना है।

केदार दत्त, जागरण, देहरादून। प्राण रक्षक औषधियों के निर्माण को सर्प विष निकालने और संग्रहण को लाइसेंस जारी करने के दृष्टिगत वन विभाग अब नियमों को कड़ा करने जा रहा है। इसके तहत यह भी तय किया जाएगा कि सांपों को विष निकालने के लिए कितने समय तक रखा जा सकता है।
हरिद्वार जिले में बिना लाइसेंस नवीनीकरण के दो साल तक अवैध रूप से सांपों से विष निकालने की घटना के बाद विभाग का ध्यान इस ओर गया है। इसके तहत लाइसेंस की शर्तों व प्रतिबंधों को कड़ा करने के साथ ही अधिकारियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित की जाएगी।
सर्पदंश से बचाव समेत विभिन्न औषधियों के निर्माण के लिए सर्प विष की आवश्यकता पूरी करने के लिए वन्यजीव अधिनियम के तहत सर्प विष निकालने व संग्रहण के लिए वन विभाग लाइसेंस जारी करता है। उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश के दौर से हरिद्वार के ग्राम बिशनपुर झरदा में इसकी एकमात्र इकाई संचालित हो रही थी, लेकिन इकाई संचालक ने दो वर्ष से नवीनीकरण नहीं कराया।
अलबत्ता, सांपों से विष निकालने का काम बदस्तूर जारी रहा। हाल में यह मामला खुलने पर विभाग ने वहां से कोबरा व रस्सल वाइपर प्रजाति के 86 सांप बरामद किए थे, जिनमें से छह की मौत हो गई थी। विभाग ने इसके बाद 80 सांप जंगल में छोड़ दिए गए, जबकि छह की मौत के मामले में इकाई संचालक के विरुद्ध वन अपराध जारी किया है। साथ ही इकाई को सील कर दिया गया। इस प्रकरण को देखते हुए अब लाइसेंस जारी करने के साथ ही सांपों को रखने और विष निकालने के संबंध में नए सिरे से नियम बनाए जा रहे हैं।
अभी तक यह है प्रविधान
प्रशिक्षित व्यक्ति ही सांपों से विष निकालने और संग्रहण के लिए वन विभाग से लाइसेंस प्राप्त कर सकता है। शर्त यही है कि किसी भी वन या संरक्षित क्षेत्र से सांप नहीं पकड़े जाएंगे। यानी जंगल से बाहर के क्षेत्रों में पकड़े गए सांप ही लिए जा सकते हैं।
इसके लिए वैध स्रोतों व संस्थाओं से ही इन्हें प्राप्त किया जाएगा। सांपों के लिए उचित बाड़ा, नियंत्रित तापमान समेत अन्य नियमों का पालन करना होता है। यही नहीं, सांपों की संख्या का प्रजातिवार ब्योरा, प्रतिमाह निकाले गए विष और उसे किन संस्थाओं व कंपनियों को बेचा गया, इसकी पूरी जानकारी विभाग को अनिवार्य रूप से देना जरूरी है। इसके अलावा अन्य प्रविधान भी हैं।
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इन प्रविधानों में बदलाव की तैयारी
- लाइसेंस के लिए सालाना शुल्क को 25,000 से बढ़ाकर दोगुना किया जा सकता है।
- सांपों को कितने समय तक विष निकालने को रखा जाएगा, इसकी अवधि होगी तय।
- डीएफओ या अन्य अधिकारी हर 15 दिन में संबंधित इकाई का निरीक्षण कर वन मुख्यालय को भेजेेेंगे आख्या।
- वैज्ञानिक ढंग से सर्प विष निकालने को प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति करना आवश्यक।
सर्प विष निकालने व संग्रहण के संबंध में लाइसेंस की शर्ताें को कड़ा किया जा रहा है। इसमें हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी, ताकि निकट भविष्य में हरिद्वार जैसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। -आरके मिश्र, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक उत्तराखंड।
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