Dehradun Disaster: दून ने सिर्फ सुना था, पहली बार देखा आपदा का ऐसा रूप; कांप गई रूह
राजधानी देहरादून में 349 सालों में पहली बार ऐसी प्राकृतिक आपदा आई है। शहर ने कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन इस बार मानसून ने ऐसा कहर बरपाया कि शहर का चेहरा बदल गया। पहाड़ों की आपदाओं में मदद करने वाला देहरादून खुद आपदा का शिकार हो गया। शहर में हर तरफ तबाही और गम का माहौल है और लोग प्रकृति के इस कहर से हैरान हैं।

सुमन सेमवाल, देहरादून। करीब 349 साल पहले वर्ष 1676 में जब श्री गुरु राम राय ने दून घाटी में अपना डेरा बसाया तो डेरा-दून (अब देहरादून) ने सिर्फ शहर का रूप लेना शुरू किया, बल्कि तब से अब तक तमाम उतार चढ़ाव देखे।
18वीं सदी के उत्तरार्ध में गोरखाओं की हुकूमत के साथ युद्ध का दौर भी देखा। इसके बाद अंग्रेज-गोरखा युद्ध के साथ ही स्वतंत्र भारत में उत्तर प्रदेश का हिस्सा होने साथ वर्ष 2000 में नवगठित उत्तराखंड की राजधानी का ताज भी हासिल किया। लेकिन, 349 सालों के अपने उतार-चढ़ाव के तमाम दौर में ऐसी आपदा नहीं देखी, जो सोमवार की आधी रात को इस आधुनिक शहर पर टूटी।
देहरादून चौतरफा आपदा का शिकार
पहाड़ी प्रदेश की राजधानी होने के नाते पर्वतीय क्षेत्रों में हर साल मानसून में टूट पड़ने वाली आफत को दून ने न सिर्फ देखा, बल्कि सरकारी मशीनरी का केंद्र होने के नाते वहां की पीड़ा पर मरहम लगाने में भी अहम भूमिका निभाई। इस बार भी धराली से लेकर थराली और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों पर टूटी आपदा में दून से ही राहत एवं बचाव कार्यों को धार मिली।
किसे पता था कि पहाड़ की आपदाओं पर आधार स्तंभ बना रहने वाला देहरादून स्वयं इस कदर चौतरफा आपदा का शिकार हो जाएगा। अब तक देहरादून में वर्ष 2011 में कार्लीगाड़ में बादल फटने की घटना के साथ ही सौंग और बांदल घाटी में भी बदल फटने से तबाही मचती रही हैं। लेकिन, उन आपदाओं का क्षेत्र विशेष तक सीमित होने से राहत और बचाव कार्यों की चुनौती उतनी बड़ी नहीं होती थी।
लेकिन, इस बार कुछ ऐसा हुआ, जिसकी किसी भी दूनवासी को उम्मीद नहीं थी। अब तो मानसून ढलान पर था और सरकारी मशीनरी ने तो वर्षाकाल में क्षतिग्रस्त हुई सड़कों की मरम्मत भी शुरू कर दी थी। मानसून को अगले साल तक के लिए अलविदा कहने की तैयारी थी। लेकिन, विदा लेने से पहले मानसून ने अपना ऐसा रूप दिखाया कि शहर का चेहरा ही बदल गया।
देहरादून शहर के बाहरी इलाकों का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा है, जहां कुदरत के कहर के गहरे निशान मौजूद न हों। जगह-जगह तबाही के निशान हैं, चेहरों पर आंसू और गम की गहरी छाप है। गहरे दर्द के साथ दून पूछ रहा है कि प्रकृति ने आखिर उस पर ऐसा कहर क्यों बरपाया?
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।