बेरोजगारों के सपनों को 'मगरमच्छ' बन निगल रहा नकल माफिया, थम नहीं रहा भर्ती परीक्षाओं में धांधली का क्रम
उत्तराखंड में भर्ती परीक्षाओं में धांधली का सिलसिला जारी है जिससे बेरोजगार युवाओं के सपने टूट रहे हैं। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में नकल माफिया और अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई है। हाल ही में हाकम की गिरफ्तारी ने परीक्षाओं की पारदर्शिता पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। सरकार ने सख्त कानून बनाया है लेकिन धांधली रुकने का नाम नहीं ले रही है।

अंकुर अग्रवाल, जागरण देहरादून। उत्तराखंड में सरकारी नौकरी की चाहत रखने वाले बेरोजगार युवाओं के सपने नकल माफिया चूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। पिछले कुछ वर्षों में लगातार ऐसे मामले सामने आ चुके हैं और भर्ती परीक्षा सवालों में घिरी रही हैं। मामला चाहे उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का रहा हो या उत्तराखंड लोक सेवा आयोग का।
वर्ष-2022 में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के बदनाम होने के बाद सरकार ने जनवरी-2023 में होने वाली लेखपाल भर्ती परीक्षा की जिम्मेदारी लोक सेवा आयोग को दी थी, लेकिन वह भी नकल की जद में आ गई थी।
हैरानी वाली बात यह थी कि नकल माफिया के अतिरिक्त इन परीक्षाओं में हुई धांधली में आयोगों के ही कुछ अधिकारियों का काला चेहरा सामने आया। अब शनिवार को एक बार फिर नकल माफिया हाकम की गिरफ्तारी के बाद भर्ती परीक्षाओं की शुचिता पर सवाल उठने लगे हैं।
प्रदेश में भर्ती परीक्षाओं में धांधली का इतिहास यूं तो पुराना रहा है, लेकिन इसका सबसे बड़ा जिन्न उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से मई से दिसंबर-2021 के बीच आयोजित तीनों भर्ती परीक्षाओं में नकल के रूप में सामने आया था।
सेवा चयन आयोग ने 13 सरकारी विभागों के लिए समूह ग-स्नातक स्तर के 916 पदों, सचिवालय रक्षक के 33 पद और वन दारोगा के 316 पदों के लिए परीक्षा कराई थी, जिनमें कुल दो लाख 26 हजार 388 अभ्यर्थी शामिल हुए थे।
तीनों परीक्षाओं के परिणाम भी जारी हुए और सफल अभ्यर्थियों के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच कर उन्हें नियुक्तियां भी मिल गईं, लेकिन बाद में पता चला कि इन परीक्षाओं में पेपर लीक व नकल कराई गई थी। इसके बाद भेद खुलते चलते गए और न केवल वर्ष-2021, बल्कि वर्ष 2016 में हुई परीक्षा को भी सवालों में ला दिया था।
परीक्षा से पहले हुआ था पेपर लीक
दिसंबर 2021 में 933 पदों के लिए हुई स्नातक स्तरीय परीक्षा, जुलाई 2021 में 316 पदों के लिए वन दारोगा और सितंबर को 33 पदों पर आयोजित सचिवालय रक्षक भर्ती परीक्षा होने से पहले ही पेपर लीक हो गया था। तीनों मामलों में एसटीएफ ने मुकदमा दर्ज किया था।
एसटीएफ ने परीक्षा में नकल करने वाले कुल 133 अभ्यर्थियों के बयान दर्ज किए थे, जबकि 80 के पते सहीं नहीं मिले थे। इसी तरह से वन दारोगा भर्ती में छह अभ्यर्थी गिरफ्तार किए गए थे, 22 संदिग्ध हैं और 144 का सत्यापन किया गया। सचिवालय रक्षक में 12 अभ्यर्थियों की नकल करने में सहभागिता मिली थी, जबकि 20 शक के दायरे में थे।
स्नातक स्तर के 13 विभाग के 916 पदों की भर्ती परीक्षा चार एवं पांच दिसंबर 2021 को आयोजित की गई थी। परीक्षा के लिए 2.69 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन, जबकि शामिल 1.46 लाख हुए थे। छह माह बाद 22 जुलाई 2022 को उत्तराखंड बेरोजगार संघ ने भर्ती परीक्षा में धांधली का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से शिकायत की। मुख्यमंत्री ने पुलिस महानिदेशक को जांच का आदेश दिया। रायपुर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया और प्रकरण की विवेचना एसटीएफ को सौंपी गई।
प्रिटिंग प्रेस की भूमिका रही संदिग्ध
एसटीएफ की जांच में सामने आया था कि आयोग ने लखनऊ के जिस प्रिंटिंग प्रेस आरएमएस टेक्नो साल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड को पेपर छापने और परीक्षा कराने की जिम्मेदारी दी थी, उसके मालिक ने ही पेपर लीक किया था। एसटीएफ ने प्रिंटिंग प्रेस के मालिक को गिरफ्तार किया था।
राजनेता से लेकर आयोग के पूर्व अध्यक्ष तक गिरफ्तार
भर्ती परीक्षाओं में धांधली में राजनेताओं और अधिकारियों के गठजोड़ की परतें भी खुलकर सामने आ चुकी हैं। नकल माफिया उत्तरकाशी का भाजपा नेता (अब निष्कासित) एवं तत्कालीन जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह रावत से लेकर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पूर्व अध्यक्ष आरबीएस रावत, पूर्व सचिव मनोहर कन्याल और पूर्व परीक्षा नियंत्रक आरएस पोखरिया तक सलाखों के पीछे भेज दिए गए थे।
हाकम सिंह को साल 2021 में स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा में पेपर लीक कराने में गिरफ्तार किया गया था। वहीं आरबीएस रावत, कन्याल व पोखरिया को वर्ष-2016 में उनके कार्यकाल में कराई गई ग्राम पंचायत विकास अधिकारी की भर्ती परीक्षा में धांधली के आरोप में एसटीएफ ने पिछले वर्ष गिरफ्तार किया था।
छह माह में गिरफ्तार किए थे 60 आरोपित
अगस्त-2022 से लेकर जनवरी-2023 तक विभिन्न परीक्षाओं में धांधली को लेकर एसटीएफ ने कुल 60 आरोपित गिरफ्तार किए थे। आरोपितों में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के एक दर्जन सरकारी अधिकारी-कर्मचारी भी शामिल थे। हालांकि, यह अलग बात है कि इन सभी पर राज्य सरकार के सख्त नकल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई नहीं हो सकी। दरअसल, सरकार ने मार्च-2023 में यह कानून लागू किया, जबकि आरोपितों की गिरफ्तारी नए कानून से पूर्व हो गई थी।
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