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    Dehradun Disaster: मलबे में दफन हुए परिवार के सपने, बच्चों के सिर से उठा पिता का साया

    Updated: Sat, 20 Sep 2025 04:45 PM (IST)

    देहरादून के मंझाड़ा गांव में आपदा ने एक परिवार के सपने छीन लिए। वीरेंद्र उरांव जो ग्रामीणों की मदद करते हुए मलबे में दब गए उनका शव तीसरे दिन बरामद हुआ। उनकी पत्नी रीना देवी और बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल है। वीरेंद्र बच्चों को अफसर और डॉक्टर बनाना चाहते थे। रीना ने बच्चों को पढ़ाकर वीरेंद्र का सपना पूरा करने की बात कही है।

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    कीचड़ में सना शव देख फूट-फूटकर रोने लगी पत्नी और बच्चे. File

    विजय जोशी, जागरण देहरादून । कहते हैं मजदूरों के हाथों में पड़े छाले उनके संघर्ष की कहानी कहते हैं। उन्हीं हाथों से परिवार की रोटी भी पकती है और सपनों की इमारत भी खड़ी होती है। लेकिन मंझाड़ा गांव में झुग्गी में रह कर जिंदगी गुजार रहे वीरेंद्र उरांव का संघर्ष एक दिन अचानक पहाड़ से आए मलबे के नीचे दफन हो गया। मंझाडा में मलबे से वीरेंद्र का शव तीसरे दिन बरामद हुआ। अब उनकी पत्नी और दो होनहार बच्चे सदमे में हैं।

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    बीते मंगलवार की सुबह जब आसमान से आफत बरसी और पहाड़ी से मिट्टी व पत्थर का सैलाब आया, तो वीरेंद्र ग्रामीणों की मदद करने पहुंच गए। लेकिन दो अन्य व्यक्तियों के साथ वह मलबे में दबकर हमेशा के लिए खामोश हो गए। तीन दिन की मशक्कत के बाद जब रेस्क्यू दल ने उनका शव निकाला, तो दृश्य इतना मार्मिक था कि हर आंख नम हो गई।

    जैसे ही कीचड़ में सना वीरेंद्र का शव बाहर आया, उनकी पत्नी रीना देवी बच्चों के साथ दौड़ पड़ीं। पति को यूं बेसुध देख रीना जमीन पर गिर गईं और फूट-फूटकर रो पड़ीं। पास खड़े उनके मासूम बेटे गौतम और बेटी जोसी पिता को पुकारते रहे, पापा उठो ना, पापा उठो ना। यह दृश्य देख वहां मौजूद हर शख्स की आंखें भर आईं। होनहार बच्चों के भविष्य को लेकर वीरेंद्र के सपने बहुत बड़े थे, लेकिन अब बच्चों का भविष्य देखने के लिए वह खुद इस दुनिया में नहीं हैं।

    मजबूरी ने बनाया मजदूर, बच्चों को बनाना था अफसर

    मूल रूप से झारखंड का रहने वाला यह परिवार आर्थिक तंगी के कारण देहरादून आ बसा था। स्नातक डिग्रीधारी वीरेंद्र खुद भी पढ़ाई-लिखाई में अच्छे थे, लेकिन गरीबी ने उन्हें दिहाड़ी मजदूर बना दिया। फिर भी उन्होंने अपने बच्चों के लिए बड़े सपने संजोए थे। उनका बेटा गौतम (कक्षा आठ) अफसर बनना चाहता है, जबकि बेटी जोसी (कक्षा सात) डाक्टर बनने का सपना देखती है। वीरेंद्र अक्सर कहते थे कि वह भले मजदूरी करें, लेकिन उनके बच्चे मजदूर नहीं बनेंगे।

    ‘सबकुछ लुट गया, पर बच्चों का भविष्य नहीं’

    दिवंगत वीरेंद्र की पत्नी रीना देवी कहती हैं कि उनके पति ने बच्चों के लिए सपने देखे थे। उनके जाने से रीना का सबकुछ चला गया, लेकिन वह हार नहीं मानेंगीं। कहा कि चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े, वह अपने बच्चों को पढ़ाएंगीं। उन्हें कामयाब बनाकर ही वीरेंद्र की आत्मा को शांति मिलेगी।