Uttarakhand Panchayat Elections: प्रक्रिया की उलझन, मतदाता सूचियों के दोहराव; फंसे पंचायत चुनाव
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव मतदाता सूची की गड़बड़ियों और आपदा के कारण उलझ गए हैं। पहले चुनाव में देरी हुई फिर मतदाता सूची में दोहराव पाया गया। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद निर्वाचन आयोग के निर्णय का इंतजार है लेकिन प्रत्याशियों और मतदाताओं में अनिश्चितता बनी हुई है। वर्षाकाल में आपदा से निपटना भी एक बड़ी चुनौती है।

राज्य ब्यूरो, जागरण, देहरादून। हरिद्वार को छोड़ शेष 12 जिलों में चल रही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया में मतदाता सूचियों में दोहराव और पंचायती राज अधिनियम के प्रविधानों ने उलझन बढ़ा दी है। यही नहीं, वर्षाकाल में पंचायत चुनाव के साथ ही आपदा से जूझने की चुनौती भी तंत्र के सामने हैं।
ऐसे में यह विषय गर्म दूध की तरह हो गया है, जो उगलते बनता है न निगलते। यद्यपि, हाईकोर्ट के आदेश के क्रम में राज्य निर्वाचन आयोग क्या कदम उठाता है, इसे लेकर रविवार को तस्वीर साफ हो जाएगी। लेकिन, जैसी परिस्थितियां हैं, उसने पंचायत चुनाव में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों के साथ ही मतदाताओं के बीच ऊहापोह भी बढ़ा दिया है।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरुआत से तमाम झंझावत झेलती आ रही है। पहले समय पर चुनाव न होने के कारण पंचायतों को प्रशासकों के हवाले किया गया। इस अवधि में भी चुनाव की स्थिति नहीं बन पाई तो पंचायती राज अधिनियम में प्रशासक कार्यकाल एक वर्ष करने को अध्यादेश लाने की तैयारी की गई, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाई। परिणामस्वरूप त्रिस्तरीय पंचायतें लगभग दो सप्ताह तक नेतृत्व विहीन रहीं। राज्य गठन के बाद यह पहला अवसर था, जब पंचायतों ने संवैधानिक संकट झेला।
इसके बाद पंचायत चुनाव के लिए तेजी से कदम बढ़ाए गए। कार्यक्रम भी घोषित हुआ, लेकिन बाद में हाईकोर्ट के आदेश के क्रम में इसके कार्यक्रम में बदलाव किया गया। अब पंचायतों की मतदाता सूचियों में दोहराव ने पेच फंसा दिया है। कई जिलों में ऐसे ऐसे व्यक्तियों ने भी नामांकन कराने की बात सामने आई है, जिनके नाम शहरी निकायों की मतदाता सूची में भी दर्ज हैं।
इसके अलावा ऐसे मतदाता भी हैं, जिनके नाम दो जगह दर्ज हैं। नियमानुसार मतदाता का एक ही जगह नाम हो सकता है। यद्यपि, कुछ जिलों में ऐसे नामांकन निरस्त भी किए गए हैं, जबकि कुछ में नहीं।
पंचायती राज अधिनियम में यह हैं प्रविधान
पंचायती राज अधिनियम की धारा-नौ (13) में प्रविधान है कि पंचायत की मतदाता सूची में जिस व्यक्ति का नाम होगा, वह चुनाव लड़ने के साथ ही मतदान भी कर सकेगा। इसके अलावा निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण से संबंधित धारा-नौ (छह व सात) में प्रविधान है कि मतदाता सूची में एक व्यक्ति का नाम दो जगह नहीं होगा।
निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के माध्यम से ऐसे नाम एक जगह से विलोपित कराए जा सकते हैं। यह कार्य नामांकन के अंतिम दिन तक कराया जा सकता है। इसके बाद अंतिम मतदाता सूची के आधार पर चुनाव कराया जाएगा। अलबत्ता, चुनाव लड़ने के दृष्टिगत अनर्हता में यह उल्लेख नहीं है कि यदि नामांकन कराने वाले किसी व्यक्ति का नाम दो जगह है तो वह चुनाव नहीं लड़ सकता।
पिछले पंचायत चुनाव में आयोग ने जारी किया था सर्कुलर
वर्ष 2019 में हुए पिछले पंचायत चुनाव में राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से भेजे गए सर्कुलर में भी कहा गया था कि यदि किसी प्रत्याशी का नाम पंचायत व शहरी क्षेत्रों की मतदाता सूची में अंकित है तो ऐसे मामलों में पंचायती राज अधिनियम की धारा-नौ (छह) का पालन किया जाएगा।
अब प्रश्न यह भी उठ रहा है कि जब पिछले पंचायत चुनाव में यह व्यवस्था की गई थी तो इस बार क्यों नहीं हुई। इस सबके दृष्टिगत ही अदालत ने मतदाता सूची में दोहराव पर प्रश्न उठाया है।
आपदा ने भी बढ़ाई धड़कनें
वर्षाकाल में मेघों के निरंतर बरसने और विभिन्न क्षेत्रों में आपदा ने भी दुश्वारियां बढ़ाई हुई हैं। तंत्र को पंचायत चुनाव के साथ ही आपदा के मोर्चे पर भी जूझना पड़ रहा है। यद्यपि, पंचायत चुनाव में आपदा से निबटने के दृष्टिगत आपदा प्रबंधन योजना बनाई गई हैं, लेकिन जूझना तो तंत्र को ही है। आपदा की स्थिति ने प्रत्याशियों के साथ ही मतदाताओं की भी धड़कनें बढ़ाई हुई हैं।
किंतु-परंतु भी कम नहीं
पंचायत चुनाव को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग क्या कदम उठाता है, इसे लेकर रविवार को तस्वीर साफ होगी, लेकिन किंतु-परंतु भी कम नहीं है। उन प्रत्याशियों व मतदाताओं की उलझन अधिक बढ़ गई है, जिनके नाम दो जगह हैं।
इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि यदि पंचायत चुनाव टलते हैं या आगे खिसकते हैं तो फिर पंचायतों को किसके हवाले किया जाएगा। कारण यह कि पंचायती राज अधिनियम में प्रशासक कार्यकाल छह माह से अधिक नहीं हो सकता है और यह पूरा हो चुका है।
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