Dehradun Disaster: जल-प्रलय में बही दून में उगाई वोटबैंक की ''फसल'', सरकार के लिए बनी जी का जंजाल
देहरादून में रिस्पना बिंदाल जैसी नदियों के किनारे बसी मलिन बस्तियां एक गंभीर समस्या हैं। वोटबैंक की राजनीति के चलते नेताओं ने इन बस्तियों को बसाया जिससे भारी बारिश में जान-माल का नुकसान होता है। नदियों को पाटकर अवैध निर्माण किए गए जिन्हें राजनीतिक संरक्षण मिला। सरकारी प्रयासों में नेताओं ने बाधा डाली। वर्तमान में शहर में लगभग 150 मलिन बस्तियां हैं जिनमें से कई नदी किनारे बसी हैं।

अंकुर अग्रवाल, जागरण देहरादून। वोटबैंक की खातिर दून शहर में नेताओं ने नदी-नालों के किनारे मलिन बस्तियां की जो ''''फसल'''' उगाई है, अब वह सरकार के लिए जी का जंजाल बन चुकी है।
रिस्पना, बिंदाल, सौंग, टोंस और तमसा जैसी नदियों के किनारे चौतरफा मलिन बस्तियां पसरी हुई हैं और राजनीतिक दलों के नेता वोटबैंक की खातिर इनके ही सहारे चुनाव में वोटों की रोटियां सेंकने का काम करते आए हैं। जब कभी दून में भारी बारिश होती है, सर्वाधिक जान व माल की हानि इन्हीं नदियों के किनारे बसी बस्तियों में होती आई है। इस बार भी ऐसा ही हुआ।
अब तो स्थिति ये है कि सहस्रधारा व मालदेवता जैसे क्षेत्रों में भी नदियों को पाटकर बडे़-बड़े रिजार्ट खड़े किए जा चुके हैं और इन अवैध निर्माण को भी राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा है। अगर समय रहते नदियों को अतिक्रमित करने वालों के विरुद्ध कदम उठाए गए होते, तो संभवत: दून में इतनी जनहानि नहीं होती।
दून शहर को उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी बने 25 साल होने जा रहे हैं, लेकिन इस दरमियान ''''जिम्मेदारों'''' ने शहर की बदरंग तस्वीर बदलने का राग अलापने के अलावा कुछ नहीं किया। सत्ता में चाहे जो भी दल रहा, हर किसी ने यही दोहराया।
पहले मेट्रो सिटी बनाने के जुमले को हवा दी गई तो पिछले दस साल से स्मार्ट सिटी का सपना दिखाया जा रहा। लेकिन, वोट बैंक की खातिर नेताओं ने नदी-नालों के किनारे जो मलिन बस्तियां शहर में ''''उगाई'''' हैं, उन पर जवाब कौन देगा।
वर्तमान में वैध कालोनी में भले पेयजल या बिजली की लाइन न पहुंचे, मगर इन अवैध बस्तियों में नेताओं ने तमाम सुविधाएं पहुंचाई हैं। सरकारी मशीनरी ने जब कभी अवैध बसावत हटाने की कोशिश की तो राजनेता ही रोड़ा बनकर खड़े हो गए। दरअसल, ''''उगाई'''' हुई बस्तियां ही चुनाव में नेताजी को ''''संजीवनी'''' प्रदान करती हैं।
दून शहर का यह हाल तब है, जब यहां सरकार के साथ नीति-नियंताओं की फौज बैठती है। राज्य में कांग्रेस की सरकार ने तो वर्ष-2016 में नदी-नालों के किनारे बनी इन बस्तियों को नियमित करने का फैसला कर बस्तियों के चिह्नीकरण और नियमितीकरण के लिए समिति भी गठित कर दी थी।
इसके बाद 2017 में आई भाजपा में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार भी मलिन बस्तियों को बचाने का विधेयक ले आई। बस्तियों में रहने वालों के पुर्नवास को लेकर केंद्र सरकार आवास की योजना लाई थी, लेकिन इसमें नेताओं ने रोड़ा अटका दिया। इसी तरह नेताओं ने ब्रह्मावाला खाला में हुए अतिक्रमण को भी तोड़ने से रोक दिया।
रिस्पना और बिंदाल नदी के किनारे हुई अवैध बसावत पर भी इन्हीं नेताओं की कृपा दृष्टि है। जबकि, बरसात में नदी-नालों के उफान पर आने से ये बस्तियां तो जलमग्न हो ही जाती हैं, पुस्ता आदि टूटने से तमाम जिंदगियों पर खतरा बना रहता है, सो अलग।
129 मलिन बस्तियां हुई थीं चिह्नित
राज्य बनने से पहले नगर पालिका रहते हुए दून में 75 मलिन बस्तियां चिह्नित की गई थीं। राज्य गठन के बाद दून नगर निगम के दायरे में आ गया। वर्ष 2002 में मलिन बस्तियों की संख्या 102 चिह्नित हुई और वर्ष 2008-09 में हुए सर्वे में यह आंकड़ा 129 तक जा पहुंचा।
तब से बस्तियों का चिह्नीकरण नहीं हुआ, लेकिन अगर गुजरे 16 साल का फौरी तौर पर आकलन करें तो यह आंकड़ा 150 तक पहुंच चुका है। शहर में 56 बस्तियां नदी, खाला व जलमग्न श्रेणी की भूमि में हैं, जबकि 62 बस्तियां सरकारी भूमि, निजी भूमि या केंद्र सरकार के संस्थानों की भूमि पर बनी हुई हैं। आठ बस्तियां वन भूमि पर बसी हैं।
यहां हैं मलिन बस्तियां
रिस्पना और बिंदाल नदी के किनारे, रेसकोर्स रोड, चंदर रोड, नेमी रोड, प्रीतम रोड, मोहिनी रोड, पार्क रोड, इंदर रोड, परसोली वाला, बद्रीनाथ कालोनी, रिस्पना नदी, पथरियापीर, अधोईवाला, बृजलोक कालोनी, आर्यनगर, मद्रासी कालोनी, जवाहर कालोनी, श्रीदेव सुमननगर, संजय कालोनी, ब्रह्मपुरी, लक्खीबाग, नई बस्ती चुक्खूवाला, नालापानी रोड, काठबंगला, घास मंडी, भगत सिंह कालोनी, आर्यनगर बस्ती, राजीवनगर, दीपनगर, बाडीगार्ड, ब्राह्मणवाला व ब्रह्मावाला खाला, राजपुर सोनिया बस्ती।
मलिन बस्ती सुधार समिति की रिपोर्ट
- दून में 37 प्रतिशत बस्तियां नदी-नालों के किनारे बसी हुई हैं।
- बस्तियों में 55 प्रतिशत मकान पक्के, 29 प्रतिशत आधे पक्के व 16 प्रतिशत कच्चे मकान हैं।
- 24 प्रतिशत बस्तियों में शौचालय नहीं।
- 41 प्रतिशत जनसंख्या की मासिक आय तीन हजार रुपये व बाकी की इससे कम।
- 38 प्रतिशत लोग मजदूरी, 21 प्रतिशत स्वरोजगार, 20 प्रतिशत नौकरी करते हैं।
- प्रतिव्यक्ति मासिक आय 4311 रुपये, जबकि खर्च 3907 रुपये है।
- छह प्रतिशत लोग साक्षर नहीं हैं।
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