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    अस्तित्व पर खतरा: चाय बागान ही नहीं ग्रामीण सीलिंग की 3000 बीघा भी निगली, नहीं संभाल पाई सरकारी मशीनरी

    Updated: Sun, 13 Jul 2025 11:37 AM (IST)

    देहरादून में सीलिंग एक्ट के तहत जमीनों की लूट मची है। चाय बागानों की तरह ग्रामीण सीलिंग की अतिरिक्त भूमि पर भी कब्जे हो रहे हैं। सरकारी रिकॉर्ड में करीब 3000 बीघा भूमि का अता-पता नहीं है। भूमाफिया ने अधिकारियों के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेज तैयार किए। सरकार को जमीनों का कब्जा लेने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए और बची हुई जमीनों का संरक्षण करना चाहिए।

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    प्रेमनगर स्थित चाय बागान l जागरण आर्काइव

    सुमन सेमवाल, देहरादून। राजधानी बनने के बाद से देहरादून में जमीनों की लूट का खेल किस तरह बेकाबू हुआ, सीलिंग एक्ट में दर्ज जमीनों के रिकार्ड इसका उदाहरण हैं। दून में चाय बागान की तरह की ग्रामीण सीलिंग की अतिरिक्त भूमि भी कब्जे की भेंट चढ़ी है।

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    चाय बागान में तो सरकार ने निजी स्वामित्व में ही जमीनों को छोड़ दिया था, लेकिन ग्रामीण सीलिंग के मामले में अतिरिक्त भूमि कब्जे में ले ली थी। हालांकि, इससे सिस्टम की अनदेखी कहें या सोची समझी साजिश कि सीलिंग की अतिरिक्त भूमि पर भौतिक रूप से कब्जा नहीं लिया जा सका।

    इसके चलते मूल खातेदार और उनके वारिस ही जमीनों को बेचते चले गए। आज स्थिति यह है कि सरकारी रिकार्ड में ही करीब 3000 बीघा भूमि का आता पता नहीं है। कर्तव्यों की इतिश्री करने के लिए जरूर ग्रामीण सीलिंग की अतिरिक्त भूमि की खरीदफरोख्त पर रोक लगाई गई है। धरातल पर इस रोक का कोई असर नजर नहीं आता।

    फर्जी रजिस्ट्री प्रकरण में भी सामने आया काला खेल

    चाय बागान की तरह ही ग्रामीण सीलिंग की अतिरिक्त भूमि पर भी जमकर फर्जीवाड़ा किया गया। भूमाफिया ने अफसरों और नेताओं के साथ मिलकर ऐसी जमीनों के न सिर्फ फर्जी अभिलेख तैयार किए, बल्कि उन्हें सब रजिस्ट्रार कार्यालय के रिकार्ड रूम में सेंधमारी कर बदल भी दिया गया। लाडपुर में करीब 350 बीघा भूमि के साथ ही रानीपोखरी के रैनापुर ग्रांट में 70 बीघा भूमि के फर्जी रिकार्ड तैयार जमीनों पर कब्जा किया गया।

    चाय बागान और ग्रामीण सीलिंग की जमीनों की विस्तृत जांच आवश्यक

    यदि सरकारी तंत्र अपने दावे के मुताबिक चायब बागान और ग्रामीण सीलिंग की अतिरिक्त भूमि को बचाना चाहता है तो पहले रिकार्ड के मुताबिक विस्तृत जांच करानी आवश्यक है। ताकि यह पता चल सके कि कितनी जमीन बिक चुकी है, कितनों पर निर्माण किए गए हैं और कितनी भूमि अभी भी रिक्त है।

    सभी तरह के आंकड़े उपलब्ध होने के बाद ही जमीनों का कब्जा सरकार के पक्ष में लेने के लिए ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। साथ ही बची खुची जमीनों का संरक्षण भी किया जा सकता है।

    ग्रामीण सीलिंग की अतिरिक्त, रोक के बाद भी बिक्री जारी