भारत रक्षा पर्व: बेटा हुआ बलिदानी तो ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग ने देश को दिए सैकड़ों राष्ट्रभक्त
देहरादून के ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) पीएस गुरुंग जिन्होंने अपने बेटे की शहादत के बाद युवाओं को सेना और बॉक्सिंग में प्रशिक्षित करने का संकल्प लिया। वे पिछले 19 वर्षों से यह कार्य कर रहे हैं और उनके शिविर से 100 से अधिक युवा सेना में शामिल हो चुके हैं। वे बच्चों को अनुशासन और राष्ट्रभक्ति का पाठ भी पढ़ाते हैं।

सुमित थपलियाल, देहरादून। सरहद पर जवान बेटा बलिदान हुआ तो पिता ने बेटे की याद में फौज के सिपाही और खेलों के सितारे तैयार करने का मन बना लिया। बात हो रही देहरादून निवासी ब्रिगेडियर (सेनि) पीएस गुरुंग की जो पिछले 19 वर्षों से फौजी और बाक्सिंग के खिलाड़ी तैयार कर रहे हैं।
वर्ष 1999 में गोरखा रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट 25 वर्षीय गौतम गुरुंग बलिदान हुए तो उनके पिता ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग ने बेटे की शहादत को तस्वीरों और स्मारकों तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि उसे देश की सेवा में बदल दिया।
80 वर्ष की उम्र में भी ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग पूरे जोश के साथ प्रतिदिन सुबह युवाओं को मुक्केबाजी का प्रशिक्षण देते हैं। गढ़ी कैंट स्थित गोरखा मिलिट्री इंटर कालेज में उनका यह शिविर चलता है।
अब तक इस शिविर के माध्यम से 100 से अधिक युवा सेना और अर्धसैनिक बल में सेवा दे रहे हैं। साथ ही कई राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुके हैं। वर्तमान में इस शिविर में 70 बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं।
ब्रिगेडियर (सेनि) पीएस गुरुंग ने बताया कि जब बेटा बलिदान हुआ तब वे गोरखपुर में सेवारत थे। बेटे का पार्थिव शरीर आया तो कई लोगों ने कहा कि उनके नाम पर कोई खेल प्रतियोगिता अथवा शिविर कराया जाना चाहिए।
इसलिए उसी समय मन बना लिया था कि बेटे के नाम से सेवा करेंगे। दो वर्ष के बाद जब सेवानिवृत्त हुए तो देहरादून आकर पता चला कि यहां फुटबॉल की स्थिति इतनी अच्छी नही हैं, इसलिए पहले कुछ समय तक फुटबॉल का बच्चों को प्रशिक्षण दिया।
वर्ष 2006 में शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग ट्रस्ट बनाया, जिसमें गढ़ी कैंट स्थित गोरखा मिलिट्री इंटर कालेज में बाक्सिंग शुरू की। बताया कि ट्रस्ट का संचालन वह खुद की पेंशन से करते हैं। बाहर से ट्रस्ट को किसी तरह की फंडिंग नहीं होती।
बच्चों को सिखाते हैं अनुशासन और राष्ट्रभक्ति
ब्रिगेडियर (सेनि) पीएस गुरुंग बताते हैं कि बाक्सिंग शिविर में बच्चे सिर्फ एक-दूसरे को पंच मारना और बचना नहीं सीखते हैं। अनुशासन, चरित्र निर्माण, राष्ट्रभक्ति की भी सीख दी जाती है। सिखाया जाता है कि राष्ट्र के लिए किस तरह से खड़े हो सकते हैं।
मौसम कैसा भी हो सुबह पांच बजे शिविर में बच्चे उत्साह के साथ पहुंचते हैं। कहा कि वह इसे आगे संचालित करते रहेंगे, इसके बाद बेटी ने भी कहा कि वह इसे आगे जारी रखेगी।
हर बच्चे की सफलता से मिलती है ऊर्जा
ब्रिगेडियर (सेनि) पीएस गुरुंग बताते हैं कि शिविर से जब बच्चे सेना में भर्ती होते हैं अथवा कोई मेडल जीतकर आते हैं तो उनकी भी ऊर्जा बढ़ जाती है। उन्हें बेटे की याद आती है और लगता है कि उनका बेटा उनके साथ ही है। शिविर से हर बच्चे की सफलता उनका भी हौसला बढ़ाता है। इसी उद्देश्य के साथ बच्चों पर मेहनत करते हैं।
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