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    Uttarakhand News: प्रारंभिक शिक्षा की बदहाल तस्वीर, प्राइमरी में छात्र पांच और अधिकारी सात

    Updated: Sat, 19 Jul 2025 11:30 AM (IST)

    उत्तराखंड के प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्या लगातार घट रही है कई विद्यालयों में केवल एक से पांच छात्र ही हैं। दूसरी ओर इन विद्यालयों की निगरानी के लिए सात स्तरों के अधिकारी तैनात हैं। पिछले तीन सालों में 55 हजार से अधिक छात्रों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिए हैं। शिक्षा विभाग को जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता है।

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    प्रारंभिक शिक्षा की बदहाल तस्वीर, प्राइमरी में छात्र पांच और अधिकारी सात

    अशाेक केडियाल, जागरण, देहरादून। उत्तराखंड के प्राथमिक विद्यालय साल दर साल छात्र विहीन होते जा रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की संख्या में न कोई कमी की जा रही है और न उन्हें छात्रों की घटती संख्या को लेकर कोई चिंता है। यही कारण है कि राज्य के 1916 प्राथमिक विद्यालयों में आज छात्रों की संख्या एक से लेकर अधिकतम पांच तक ही रह गई है।

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    यानी एक ओर जहां स्कूलों में छात्रों का टोटा है, वहीं दूसरी ओर इन स्कूलों की निगरानी और संचालन के लिए सात स्तरों के अधिकारी तैनात हैं। इसमें खंड शिक्षा अधिकारी (प्रारंभिक शिक्षा) से लेकर शिक्षा महानिदेशक तक शामिल हैं।

    स्थिति यह है कि कहीं स्कूलों में केवल एक छात्र पढ़ रहा है तो कहीं दो या तीन, लेकिन इनकी समीक्षा करने वाले अधिकारियों की लाइन लंबी है। बावजूद इसके, नौनिहालों के लगातार स्कूल छोड़ने की समस्या पर न तो कोई गंभीर मंथन हो रहा है और न ही कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। राजकीय विद्यालयों में घटी छात्र संख्या के कारणों का अध्ययन और सुधार को गठित सात सदस्यीय कमेटी ने इसे अपनी रिपोर्ट में प्रमुखता से लिया है। रिपोर्ट सरकार को प्रेषित कर दी गई है।

    तीन साल में 55 हजार नौनिहालों से छोड़ा सरकारी स्कूल

    राज्य में सरकारी बाल शिक्षा की स्थिति डांवाडोल है। शहरी इलाकों की अपेक्षा दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में यह समस्या ज्यादा गंभीर है। शिक्षा विभाग की ओर से समय-समय पर जांच बैठकों और समीक्षा का दावा तो किया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि बच्चों के स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति थमने का नाम नहीं ले रही।

    वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक तीन साल के अंतराल में राज्य की 11,580 प्राथमिक विद्यालयों से 55,368 नौनिहालों ने विद्यालय छोड़ दिया। जिसमें 26,231 बालिकाएं हैं। राज्य के 1916 प्राइमरी एवं 12 माध्यमिक विद्यालयाें में छात्रों की संख्या एक से पांच रह गई है। राज्य के 33 प्राथमिक विद्यालयों में शून्य छात्र संख्या है।

    अधिकारियों की भारी भरकम फौज

    राज्य में केवल प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत सात अधिकारी गुणवत्ता शिक्षा के लिए तैनात किए गए हैं। जिनमें विद्यालय स्तर पर प्रधानाध्यापक, क्लस्टर स्तर पर समन्वयक, खंड स्तर पर खंड शिक्षा अधिकारी, जिला स्तर पर जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारंभिक) व मुख्य शिक्षा अधिकारी, राज्य स्तर पर प्रारंभिक शिक्षा निदेशक और राज्य स्तर पर महानिदेशक है। इसके अलावा अन्य प्रशासनिक अमला भी विद्यालयों से जुड़े कार्यों की निगरानी में लगा रहता है, लेकिन छात्रों की संख्या में गिरावट पर किसी की नजर नहीं जा रही।

    समाधान की ओर कोई पहल नहीं

    पूर्व माध्यमिक शिक्षा निदेशक सीमा जौनसारी कहती हैं कि शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह जमीनी हकीकत को समझे और छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए घर-घर जाकर जागरूकता अभियान चलाए। साथ ही, स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता, भोजन व्यवस्था, डिजिटल संसाधन और परिवहन की सुविधा को मजबूत किया जाए, ताकि ग्रामीण और दूरदराज के बच्चों को शिक्षा से जोड़ा जा सके। जब तक निजी स्कूलाें की तर्ज पर सरकारी प्राइमरी को विकसित नहीं किया जाएगा तब तक छात्र संख्या बढ़ने की संभावना कम है।

    राजकीय विद्यालयों में घटती छात्र संख्या के कारणों का अध्ययन और सुधार के सुझाव कमेटी ने सरकार को सौंप दिया है। रिपोर्ट में केवल कमियों को ही उजागर नहीं किया गया है बल्कि सुधार के उपाय भी सुझाए गए हैं। इनपर सभी हितधारकों को मिलकर चिंतन करने की जरूरत है।

    - कुलदीप गैरोला, अपर राज्य परियोजना निदेशक, समग्र शिक्षा व समिति के अध्यक्ष

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