गंगोत्री ग्लेशियर में झील का अस्तित्व समाप्त, फिर भी खतरा बरकरार
गंगोत्री ग्लेशियर के स्नो-आउट (मुहाना) पर गोमुख में पिछले साल बनी झील का अस्तित्व मलबे से समाप्त हो गया। इसके बावजूद अभी खतरा टला नहीं है। अब मलबे से नया खतरा पैदा हो गया।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: गंगोत्री ग्लेशियर के स्नो-आउट (मुहाना) पर गोमुख में पिछले साल बनी झील का अस्तित्व अब पूरी तरह समाप्त हो गया है। गोमुख में झील की जगह अब मलबे ने ले ली है। गोमुख से लौटे वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस बात का खुलासा किया।
वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के मुताबिक पिछले साल गोमुख में ग्लेशियर के मुहाने पर 30 मीटर ऊंचे ग्लेशियर मलबे का ढेर एकत्रित हो गया। जिससे ग्लेशियर की धारा काफी हद तक बाधित हो जाने से करीब चार मीटर गहरी झील बन गई थी।
यदि यह झील कभी बाधित हो जाती तो इसका आकार 60 मीटर तक लंबा, 150 मीटर चौड़ा व 30 मीटर गहरा हो जाता। ऐसी स्थिति में झील के टूटने का खतरा भी बढ़ जाता।
डॉ. नेगी के मुताबिक इस लिहाज से यह खतरा अब टल चुका है, क्योंकि झील ग्लेशियर मलबे से पूरी तरह ढक चुकी है और अब ग्लेशियर की धारा इसके ऊपर से बह रही है। हालांकि, झील का खतरा टलने के बाद अब नया खतरा मलबे से पैदा हो सकता है।
ग्लेशियर के मुहाने से आगे यह मलबा न सिर्फ करीब एक किलोमीटर लंबाई, 80 मीटर चौड़ाई तक फैला है, बल्कि यह अधिकतम 18 मीटर ऊंचा भी है। मलबा अभी कच्चे रूप में है और भारी बारिश में यह पानी के साथ निचले हिस्सों में खिसक सकता है।
मलबे का खिसकना इसलिए भी खतरनाक है कि इसमें बड़े-बड़े बोल्डर, आइस ब्लॉक व मिट्टी है। इस संबंध में जल्द रिपोर्ट तैयार कर संस्थान के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकार को भेजी जाएगी।
गोमुख का आकार भी बदला
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी ने बताया कि जुलाई 2017 तक गोमुख का आकर लगभग वैसा ही था, जैसे दशकों से चला आ रहा था। यहां पर गाय के मुहं जैसी बड़ी संरचना थी और इसी कारण गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने वाले भाग को गोमुख भी कहा जाता है।
अब यह भाग 100 मीटर ऊंचे और 60 मीटर चौड़े मलबे के ढेर से ढक चुका है। पहले ग्लेशियर की धारा इसी मुहाने से आती हुई स्पष्ट नजर आती थी और अब मलबे के बीच पानी रिसकर आ रहा है।
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