यहां पुराना दरबार ट्रस्ट ने सहेजीं 250 पांडुलिपियां, जानिए
राष्ट्रीय पांडुलिपि संगोष्ठी में महज तीन दिन में सैकड़ों ऐतिहासिक पांडुलिपियों की यात्रा पूरी कर ली गई।
देहरादून, जेएनएन। राष्ट्रीय पांडुलिपि संगोष्ठी में महज तीन दिन में सैकड़ों ऐतिहासिक पांडुलिपियों की यात्रा पूरी कर ली गई। इस दौरान पुराना दरबार ट्रस्ट ने बताया कि उन्होंने 250 अहम पांडुलिपियों का संरक्षण किया है और निरंतर पांडुलिपियों का संरक्षण किया जाता रहेगा। क्योंकि यह हमारी धरोहर हैं और इनके माध्यम से अपने इतिहास की सटीक जानकारी और तात्कालिक परिस्थितियों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (संस्कृति मंत्रालय) और पुराना दरबार ट्रस्ट के संयुक्त प्रयास से आयोजित पांडुलिपि संगोष्ठी में करीब 150 साल पुरानी बदरीनाथ की आरती 'पवन मंद सुगंध...' की पांडुलिपि दिखाई गई। धन सिंह बर्त्वाल की इस पांडुलिपि को उनके पौत्र महेंद्र सिंह बर्त्वाल ने सहेज कर रखा और इसके लिए उन्हें संगोष्ठी में सम्मानित भी किया गया। इस अवसर पर जागर गायिका पद्मश्री बसंती पाठक ने बदरीनाथ की आरती को पहली बार जागर शैली में प्रस्तुत किया।
इसके अलावा श्रीनगर की प्रो. उमा मैठाणी के पास संरक्षित 900 साल पुरानी दुर्गा सप्तशती की पांडुलिपि पर भी विशेष चर्चा की गई। वहीं, पुराना दरबार ट्रस्ट के प्रतिनिधि भवानी प्रताप शाह ने चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि तमाम पांडुलिपियों को जलाने या उन्हें कबाड़ के रूप में बेच देने की बात भी सामने आती रहती है। यह हमारी धरोहर हैं, लिहाजा इनका संरक्षण बेहद जरूरी है।
संगोष्ठी में असीम शुक्ल, प्रो. उमा मैठाणी, डॉ. एमआर दकलानी, प्रो. सुधा रानी पांडे, उमा मैठाणी, प्रो. राम विनय सिंह, डॉ. संजय लाल शाह, डॉ. कमला पंत, डॉ. योगंबर बर्त्वाल आदि ने अपने शोध कार्यों को साझा किया।
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