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Uttarakhand Lockdown से लौटी पुरानी परंपरा, तकली से तैयार हो रही जौनसारी चौड़ी; जानिए इसकी खासियत

पहाड़ में विलुप्त हो रही तकली से ऊन कातकर परिधान बनाने की पुरानी परंपरा इन दिनों फिर से लौट आयी है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 15 Apr 2020 09:40 PM (IST)Updated: Wed, 15 Apr 2020 10:17 PM (IST)
Uttarakhand Lockdown से लौटी पुरानी परंपरा, तकली से तैयार हो रही जौनसारी चौड़ी; जानिए इसकी खासियत

चकराता(देहरादून), चंदराम राजगुरु। इसे समय का फेर कहें या फिर लॉकडाउन में लोगों के समय काटने की मजबूरी। पहाड़ में विलुप्त हो रही तकली से ऊन कातकर परिधान बनाने की पुरानी परंपरा इन दिनों फिर से लौट आयी है। लॉकडाउन से घरों में बैठे लोग जौनसार के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में समय गुजारने को हाथ में तकली लेकर ऊनी वस्त्र-परिधान तैयार कर रहे हैं, जो सर्दी के मौसम में ठंड से बचने के काम आएंगे। ऊन से बने परिधान जौनसारी चौड़ी राष्ट्रीय फलक पर बड़ी पहचान बना चुके है। इस कला को सीखने का भरपूर प्रयास दिनों युवा भी कर रहे हैं।

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समय के साथ जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में भेड़-मवेशी पालन का दायरा भी सिमटता चला गया। एक समय था जब यहां हर गांव में प्रत्येक घर में परिवार के लोग मवेशी पालन किया करते थे, लेकिन आधुनिक दौर की इस चकाचौंध भरी जिंदगी में लोगों की जीवन शैली और दिनचर्या दोनों बदल गई। समय बदला तो लोग परंपरागत कार्य को छोड़कर दूसरा व्यवसाय करने लगे। बड़े-बुजुर्गों की मानें तो किसी जमाने में पहाड़ के लोगों का मुख्य व्यवसाय परंपरागत खेती-बाड़ी के साथ भेड़-मवेशी पालन हुआ करता था, जो अब गिने-चुने गांवों में देखने को मिलता है। 

देश-दुनिया में फैले कोरोना वायरस कोविड-19 महामारी से बचाव को देशव्यापी लॉकडाउन के चलते पहाड़ में विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी परंपरागत ऊनी वस्त्र बनाने की कला एक बार फिर अपने अस्तित्व में आ गई है। लॉकडाउन से घरों में परिवार के साथ समय गुजार रहे गांव के कुछ लोग इन दिनों घर की तिबारी में बैठकर तकली से ऊन कातकर पहाड़ी परिधान तैयार कर रहे हैं। भेड़ की ऊन से बने यह परिधान पहाड़ में लोगों को ठंड से बचने के लिए सर्दी के मौसम में काफी कारगर है। 

खेती-बाड़ी और मवेशी पालन से जुड़े सीमांत देवघार खत के सैंज-तराणू निवासी मेहरचंद शर्मा ने कहा कि पिछले 21 दिनों से चल रहे लॉकडाउन से वह घर पर खाली बैठे हैं। लॉक डाउन से घर में समय गुजारने के लिए मेहरचंद शर्मा प्रतिदिन सात से आठ घंटे तकली से ऊन कातकर वस्त्र (जिसे स्थानीय भाषा में जौनसारी चौड़ी कहते हैं) बना रहे हैं। कहा एक चौड़ी को तैयार करने में तीन से चार किलो के बीच ऊन लगती है।

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राष्ट्रीय फलक पर मिल चुकी है पहचान

जौनसार के इस ऊनी परिधान की पहचान राष्ट्रीय फलक पर है। बता दें कि साठ के दशक में पहली बार चकराता भ्रमण पर आए देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित स्व. जवाहरलाल नेहरू और उसके बाद दूसरी बार अस्सी के दशक में चकराता भ्रमण पर आए पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी को स्थानीय लोगों ने जौनसारी चौड़ी भेंट की थी। चकराता के आठ बार विधायक रहे पूर्व मंत्री स्व. गुलाब सिंह के हाथों पहाड़ के परंपरागत संस्कृति से जुड़े इस विशेष ऊनी परिधान की भेंट देश के दोनो सर्वोच्च नेताओं को दी गई थी।

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