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फेसमास्क में छिपी सत्ता की चाबी, विधानसभा चुनाव को बचे महज डेढ़ साल

भाजपा की वर्चुअल रैलियों से परेशान कांग्रेस अब कुछ सक्रिय हुई है। तीन दिन कांग्रेसी सिर जोड़कर बैठे कि कैसे भाजपा की घेराबंदी की जाए।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 13 Jul 2020 09:20 AM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2020 09:20 AM (IST)
फेसमास्क में छिपी सत्ता की चाबी, विधानसभा चुनाव को बचे महज डेढ़ साल
फेसमास्क में छिपी सत्ता की चाबी, विधानसभा चुनाव को बचे महज डेढ़ साल

देहरादून, विकास धूलिया। भाजपा की वर्चुअल रैलियों से परेशान कांग्रेस अब कुछ सक्रिय हुई है। तीन दिन कांग्रेसी सिर जोड़कर बैठे, कि कैसे भाजपा की घेराबंदी की जाए। विधानसभा चुनाव को महज डेढ़ साल बचा है, लिहाजा अब कुछ न किया तो बहुत देर हो जाएगी। तमाम सुझाव आए, गिले शिकवे मिटाए। यह बात दीगर है कि पार्टी की पूरी कवायद आंतरिक गुटबाजी को समेटने तक ही सिमट कर रह गई। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने तो बाकायदा एक फोटो सोशल मीडिया में यह जताने को शेयर कर डाली कि अब सब दिग्गज एक साथ हैं। फोटो में पूर्व सीएम हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के साथ किशोर उपाध्याय हैं। फोटो देख एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने तंज कसने में देर नहीं की। बोले, अगर इसी तरह अगले डेढ़ साल तक फेसमास्क तले चारों मुंह सिले बैठे रहें तो जरूर पार्टी का कुछ भला हो सकता है।

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21 का अनुमोदन, 37 के तबादले

उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेसी का मनमाना रवैया हमेशा चर्चा में रहा है, चाहे सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की। आम तो छोडि़ए, खास तक इसके शिकार हो चुके हैं। सूबे में अब तक की चार सरकारों के कई मंत्रियों ने सार्वजनिक मंचों से इनकी कार्यशैली के किस्से सुनाकर अपना दर्द बयां किया है। अब ऐसा ही एक वाकया फिर सामने आया। शासन ने भारतीय वन सेवा के 37 अफसरों का तबादला किया, मगर दो दिन बाद ही 16 तबादले रद। कारण तलाशा तो पता चला कि मुख्यमंत्री ने महज 21 आइएफएस के तबादलों को ही हरी झंडी दी थी, 16 अफसरों ने खुद कर डाले। यह स्थिति तब है, जब पिछले हफ्ते ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने अफसरों को नसीहत दी थी कि वे स्वयं को पब्लिक के नुमाइंदों से ऊपर न समझें। आप ही बताइए, सीएम की बात को चार दिन भी नहीं गुजरे और ब्यूरोक्रेसी ने नया कारनामा डाला।

अरे, गलती से मिस्टेक हो गई

सूबे में सत्तारूढ़ भाजपा ने केंद्र में अपनी सरकार के एक साल पूरा होने पर पार्टी के मुखपत्र देवकमल का विशेषांक प्रकाशित किया। मंशा तो इसके जरिये केंद्र व राज्य सरकारों की उपलब्धियों को आमजन तक पहुंचाना थी, मगर इसने चर्चा ऐसे कारणों से बटोरी, जो शायद पार्टी नेता कभी नहीं चाहते। हुआ कुछ यूं कि हाल ही में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने प्रदेश पार्टी मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में जोरशोर से पत्रिका का लोकार्पण किया, लेकिन शायद उन्होंने इसे पढ़ा तक नहीं। इतनी ज्यादा और हास्यास्पद गलतियां कि पार्टी नेता बगलें झांक रहे हैं। अब पार्टी सफाई में कह रही है कि फांट बदलने से त्रुटियां रह गईं लेकिन नेताजी लोकार्पण से पहले एक नजर तो मार लेते। खैर, मामला फेससेविंग का है तो कोई क्या कहे। सुना है देवकमल में गलती से मिस्टेक के बाद इसका वितरण रोक नए सिरे से पत्रिका छापी जा रही है।

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सत्ता का राही, पार्टी का सिपाही

कांग्रेस के सितारे उत्तराखंड में तब से गर्दिश में हैं, जब से केंद्र में सत्ता से बेदखल हुए। साल 2014 में मोदी तूफान की तरह आए और छा गए। ठीक इसी वक्त सूबे में कांग्रेस का विखंडन शुरू हुआ। पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज भगवामय हो गए। फिर 2016 में पूर्व सीएम विजय बहुगुणा समेत 10 कांग्रेस विधायक भी भाजपाई बन गए। इसके बाद पूर्व स्पीकर व मंत्री यशपाल आर्य का नंबर लगा। यह सब तब हुआ, जब कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड में सत्ता सौंपी तजुर्बेकार हरीश रावत को, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 11 तक सिमट गई और सिटिंग सीएम हरीश रावत दो-दो सीटों पर हार गए। अब रावत राष्ट्रीय महासचिव हैं लेकिन केंद्र से ज्यादा सूबे में सक्रिय, कयास तो लगेंगे ही। हालांकि अब खुद उन्होंने क्लियर कर दिया कि वह 2022 में सीएम नहीं बनना चाहते, बस तमन्ना है कांग्रेस सत्ता में आ जाए।

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