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    उत्तराखंड में गुटबाजी से पार पाए बगैर आसान नहीं कांग्रेस की राह

    By Raksha PanthriEdited By:
    Updated: Wed, 05 May 2021 06:35 AM (IST)

    उत्तराखंड में कांग्रेस में एक बार फिर बेचैनी देखी जा रही है। सिर्फ सरकार के खिलाफ जनाक्रोश को भुनाने की रणनीति के बूते ही भाजपा से पार पाना प्रमुख प्रतिपक्षी पार्टी के लिए आसान नहीं रह गया है।

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    उत्तराखंड में गुटबाजी से पार पाए बगैर आसान नहीं कांग्रेस की राह।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड में कांग्रेस में एक बार फिर बेचैनी देखी जा रही है। सिर्फ सरकार के खिलाफ जनाक्रोश को भुनाने की रणनीति के बूते भाजपा से पार पाना प्रमुख प्रतिपक्षी पार्टी के लिए आसान नहीं रह गया है। गुटबाजी और क्षत्रपों की आपसी खींचतान को काबू में किए बगैर प्रदेश की सत्ता में वापसी की कांग्रेस की उम्मीदें पूरा होना मुमकिन नहीं है। सल्ट उपचुनाव में एक बार फिर पार्टी को इस हकीकत से रूबरू होना पड़ा है। कांग्रेस ने सिर्फ एंटी इनकंबेंसी को हथियार बनाकर कुमाऊं के पर्वतीय अंचल की सल्ट सीट पर काबिज होने के लिए ताकत तो झोंकी, लेकिन नतीजा उलट रहा है।

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    2017 के विधानसभा चुनाव की तुलना में इस उपचुनाव में पार्टी को ज्यादा मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी के इस प्रदर्शन के पीछे बड़ा कारण गुटबाजी को ही माना जा रहा है। उपचुनाव से पहले टिकट पाने की जंग के दौरान जिस तरह पार्टी के भीतर खींचतान उभरी, उसने नतीजों को लेकर तस्वीर काफी हद तक पहले ही साफ कर दी थीइस विधानसभा क्षेत्र में मजबूत सियासी हैसियत रखने वाले और कभी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के प्रमुख सलाहकार व रणनीतिकार माने जाने वाले पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत पार्टी के चुनाव प्रचार के दौरान खिंचे-खिंचे रहे। 

    टिकट वितरण में पहले उनकी अनदेखी और फिर उन्हें साथ लेकर चलने से परहेज करना पार्टी को भारी पड़ गया। पार्टी रणनीतिकार भी मान रहे हैं कि रणजीत रावत की ताकत भी लगती तो चुनाव के नतीजों में बड़ा उलटफेर दिखाई पड़ सकता था। एक-दूसरे के धुर विरोधी हरीश रावत और रणजीत रावत को साथ लाने में पार्टी को कामयाबी नहीं मिल पाई। सिर्फ सल्ट ही नहीं, इससे पहले हुए अन्य उपचुनावों में भी तकरीबन यही खामी कांग्रेस को भारी पड़ चुकी है। इस हकीकत को ध्यान में रखकर आगे की रणनीति को मूर्त रूप देने की चुनौती पार्टी के सामने है। 

    पार्टी सूत्रों की मानें तो हाईकमान तक इन संकेतों को पहुंचाने की कसरत शुरू हो चुकी है। आत्मविश्वास से लबरेज भाजपा को शिकस्त देने के लिए पार्टी को पहले खुद का मजबूत करने की दरकार है। कांग्रेस के अंदरूनी कलह का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को ही हुआ है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी हाईकमान के सामने इन बिंदुओं को पुख्ता तरीके से रखने की तैयारी है।

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