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ये अफसर कभी कांग्रेस की आंख का था तारा, अब साथ भी नहीं गंवारा

ये अफसर कभी कांग्रेस की आंख का दुलारा था। लेकिन उत्‍तराखंड में कांग्रेस के डेढ़ साल के कार्यकाल तक भी इन्‍हें राजधानी में तैनाती नसीब नहीं हुई। क्‍या है इस बेरुखी का कारण। जानिए।

By Gaurav KalaEdited By: Published: Fri, 09 Dec 2016 11:34 AM (IST)Updated: Sat, 10 Dec 2016 07:07 AM (IST)
ये अफसर कभी कांग्रेस की आंख का था तारा, अब साथ भी नहीं गंवारा

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: समय का फेर देखिए, जो अफसर लगभग सवा साल पहले तक कांग्रेस की आंख का तारा था, अब उसे कांग्रेस शासित सूबे की राजधानी में तैनाती भी नसीब नहीं। इसे छवि का असर कहें या कुछ और मगर यह है सौ फीसद सच। जी हां, भारतीय वन सेवा के चर्चित अफसर संजीव चतुर्वेदी पर यह बात बिल्कुल सटीक बैठ रही है।
मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित किए जाने पर चतुर्वेदी की प्रशंसा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा बकायदा ट्वीट कर उन्हें बधाई दी गई थी। यही नहीं, वरिष्ठ कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने मीडिया के सम्मुख उन्हें सराहा था लेकिन अब जब चतुर्वेदी उत्तराखंड में सेवा के तलबगार हैं तो उनके लिए सरकार के पास राजधानी देहरादून में उपयुक्त पद नहीं।

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नई दिल्ली एम्स में बतौर चीफ विजिलेंस अफसर चर्चा में आए संजीव चतुर्वेदी ने गत 29 अगस्त को उत्तराखंड में ज्वाइनिंग दी। लगभग तीन महीने गुजरने के बाद उन्हें नई दिल्ली में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में विशेष कार्य अधिकारी के रूप में तैनाती दी गई।
महत्वपूर्ण बात यह कि चतुर्वेदी ने इससे पहले ही गत 11 नवंबर को मुख्य सचिव को पत्र लिख कर उत्तराखंड में ही एंटी करप्शन या विजिलेंस में अपने तजुर्बे के आधार पर सेवा देने की इच्छा जताई थी, जिसे अनदेखा कर दिया गया। मीडिया में मामला आने पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तुरंत चतुर्वेदी की नई दिल्ली में तैनाती पर रोक लगा दी और मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि आइएफएस चतुर्वेदी से लिखित में उत्तराखंड में तैनाती के संबंध में पूछा जाए।
मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद संजीव चतुर्वेदी ने 27 नवंबर को मुख्य सचिव को इस संबंध में पत्र सौंप भी दिया। इसके बावजूद उनकी तैनाती वन संरक्षक, अनुसंधान के पद पर हल्द्वानी कर दी गई। दरअसल, आइएफएस संजीव चतुर्वेदी ने मुख्य सचिव को 27 नवंबर को जो पत्र सौंपा, उसमें कई सवाल उठाए गए हैं।

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इसमें उन्होंने मुख्यमंत्री के पूर्व सचिव मोहम्मद शाहिद को फरवरी 2014 में उत्तराखंड में दी गई प्रतिनियुक्ति को नियम विरुद्ध बताया है। पत्र के मुताबिक एक तो उन्होंने प्रतिनियुक्ति के लिए अनिवार्य कूलिंग ऑफ पीरियड पूरा नहीं किया और दूसरा डीओपीटी के स्पष्ट दिशा निर्देशों के मुताबिक सुपर टाईम स्केल पा चुके अधिकारी को प्रतिनियुक्ति नहीं दी जा सकती।
इसी पत्र में चतुर्वेदी ने उत्तराखंड सरकार द्वारा नवंबर 2015 में दिल्ली में प्रतिनियुक्ति के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र दिए जाने और दो महीने बाद ही अचानक वापस ले लिए जाने का भी जिक्र किया है।

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समझा जा रहा है कि पत्र में दिए गए ये तथ्य ही शासन को नहीं सुहाए और चतुर्वेदी को महकमे में एक ऐसे पद पर राजधानी से दूर भेज दिया गया, जिसकी अहमियत बहुत अधिक नहीं। गौरतलब है कि कांग्रेस ने गत वर्ष सितंबर में मैगसेसे अवार्ड विजेता संजीव चतुर्वेदी की खुलकर तारीफ की थी और बकायदा पार्टी के ट्विटर अकाउंट पर इसका जिक्र किया। साथ ही, कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मीडिया के समक्ष संजीव चतुर्वेदी को बधाई देते हुए केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा था।
सियासी पार्टियों पर निशाना
दिलचस्प बात यह कि आइएफएस संजीव चतुर्वेदी द्वारा मुख्य सचिव को दिए गए पत्र में उनकी तैनाती को लेकर सियासत का भी जिक्र किया गया है। उन्होंने लिखा है कि उनकी तैनाती को राजनैतिक रंग न दिया जाए। आगे उन्होंने कहा है, 'यह मेरा चौदह साल के सेवाकाल का व्यक्तिगत तजुर्बा है कि भ्रष्टाचार और ईमानदार अफसरों के उत्पीडऩ के मामलों को राजनैतिक पार्टियां विपक्ष में रहते हुए तो उठाती हैं मगर सत्ता में आते ही सुविधानुसार भूल जाती हैं।'

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