बदहाल हालत में आइएसबीटी, गड्ढ़ों में पानी इतना कि समा जाए बस; पढ़िए पूरी खबर
देहरादून आइएसबीटी को पूरे भारत में बेहतर सेवा और सुविधा के लिए जाना चाहता था लेकिन विडबंना यह है कि महज डेढ़ दशक के अंतराल में ही ये अपनी बदहाली का रोना रो रहा है।
देहरादून, अंकुर शर्मा। एक समय था जब देहरादून आइएसबीटी को पूरे भारत में बेहतर सेवा और सुविधा के लिए जाना चाहता था, लेकिन विडबंना यह है कि महज डेढ़ दशक के अंतराल में ही ये अपनी बदहाली का रोना रो रहा है। 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने जब आइएसबीटी का उद्घाटन किया था तो यह वादा भी किया था कि समय के साथ यहां सेवा और सुविधा में बढ़ोत्तरी होती रहेगी, पर बाद की सरकारों ने इस तरफ ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा।
अब उद्घाटन के महज डेढ़ दशक बाद आइएसबीटी गड्ढों में तब्दील हो गया है। यहां आलम यह कि बरसात होते ही पूरा बस अड्डा गंदे पानी से लबालब हो जाता है। यह समस्या आइएसबीटी के गेट से ही शुरू हो जाती है। इन गड्ढ़ों में पानी इतना होता है कि आधी बस इसमें समा जाती है। छोटे वाहनों के लिए तो बरसाती सीजन में यहां से गाड़ी निकालना जैसे काल के गर्त में समाने जैसा हो जाता है। क्योंकि गड्ढों में पानी इतना अधिक होता है कि कार उसमें फंस जाती है। पार्किंग क्षेत्र की ओर नजर डाले तो यहां भी पार्क किए गए वाहन पानी में डूबे हुए नजर आते हैं।
साफ-सफाई के मामले भी यहां स्थिति बदतर है, जहां नजर पड़ती है, वहीं कचरा फैला हुआ रहता है। जब वर्ष 2004 में आइएसबीटी बना था तो 20 वर्ष के लिए इसके रखरखाव का जिम्मा रैमकी कंपनी को बीओटी के तहत कांट्रेक्ट पर दिया गया था। बीओटी यानि कि बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर। आइएसबीटी परिसर की साफ-सफाई और रख रखाव से संबंधित सभी जिम्मेदारी रैमकी कंपनी की जिम्मेदारी बन गई, लेकिन कंपनी किस प्रकार अपनी जिम्मेदारी निभा रही है यह इसकी वर्तमान हालात बयां कर रही। इसके अलावा अन्य विकास कार्य एमडीडीए को करने थे, मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया। वर्तमान में बस अड्डा तीन धुरियों के बीच उलझ रखा है। रोडवेज इसका स्वामित्व मांग रहा है और एमडीडीए ऐसा करने को राजी नहीं। रैमकी कंपनी अपनी ढपली-अपना राग में बसों और दुकानों से किराया वसूलकर मौज काट रही है।
पूछताछ केंद्र से स्टाफ गायब और नंबर कपर रूट व्यस्त
बस अड्डे का पूछताछ नंबर 0135 2131309 नंबर कभी रूट व्यस्त तो कभी सेवा में नहीं बताता है। नंबर का यात्रियों को फायदा नहीं हो रहा। पूछताछ केंद्र से भी अक्सर स्टाफ गायब रहता है। कानपुर जाने वाले यात्री संजय वशिष्ठ के मुताबिक वह कानपुर की बस के जानकारी लेने आए थे। पूछताछ केंद्र का नंबर ही नहीं मिल रहा था, यहां आए तो पूछताछ केंद्र में कर्मी भी नदारद हैं। जैसे-तैसे यात्री कंडक्टर से बसों का टाइम पूछ कर काम चला रहे।
पानी का फिल्टर नहीं बदला
परिसर की टंकी में आरओ वाटर सप्लाई होने के दावे किए जाते हैं, मगर आज तक इसका रेकार्ड नहीं कि आरओ का फिल्टर कब बदला गया। आरओ मशीन जहां लगी है, वहां गंदगी का बुरा हाल है।
शौचालय में साबुन न तौलिया
मानकों के अनुसार सार्वजनिक शौचालय में साबुन, स्नानागार में तौलिया, शीशा एवं कंघा देना अनिवार्य होता है। बस अड्डे के शौचालय में सिर्फ शीशा है। साबुन तौलिया नहीं होने से यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। महिला यात्री दीपा बहुगुणा ने बताया कि अगर चाहे तो रोडवेज शुल्क ले लेकिन शौचालय में साबुन होना चाहिए। यही नहीं, शौचालय में महज दस सेकंड में मुंह को रुमाल से ढकना पड़ता है।
गंदे प्लेटफार्म, पीक से रंगी दीवारें
आइएसबीटी में सफाई होती तो है लेकिन यह शायद अधिकारियों के दफ्तरों के बाहर तक सीमित नहीं। हकीकत यह है कि बसों और यात्रियों केप्लेटफार्म पर प्लास्टिक की खाली बोतलें, कूड़ा, गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। दीवारें पान, गुटखे की पीक से रंग गई हैं। दुकान संचालक संदीप खत्री ने बताया कि नियमित सफाई न होने से गंदगी फैली रहती है।
होटल, रेस्टोरेंट तो हैं, लेकिन बर्तन धोने की जगह नहीं
आइएसबीटी की सबसे बड़ी खामी है कि यहां चाय, खानपान की कई दुकानें हैं मगर इन दुकानों में बर्तन व सब्जी वगैरह धोने के लिए इंतजाम नहीं है। मजबूरी में दुकानदार बर्तन धोकर पानी प्लेटफार्म पर ही डाल देते हैं इससे गंदगी फैलती है। संक्रामक बीमारी फैलने का खतरा भी रहता है। खुद रैमकी कंपनी के प्रबंधक स्वीकार करते हैं कि यह खामी शुरुआत से ही है।
दिव्यांगों के लिए बना रैंप बंद
दिव्यांगों के आइएसबीटी में प्रवेश के लिए बनाया गया रैंप सिर्फ शोपीस बना हुआ है। रैंप को दो सरिया लगाकर बंद किया हुआ है, ताकि कोई इसे उपयोग नहीं कर सके। दिव्यांग यात्री को सहयात्री ही किसी तरह उठाकर प्लेटफार्म तक पहुंचाते हैं।
जुआरियों, शराबियों का भी अड्डा
अंतरराज्यीय बस अड्डा जुआरियों और शराबियों का अड्डा भी बन गया है। बसें खड़े करने के प्लेटफार्म पर अराजक तत्व दिनदहाड़े जुए में हजारों की बाजी लगाते हैं। प्लेटफार्म, मैदान, शेड में जगह-जगह नशेड़ी शराब पीते हैं। इससे बुजुर्ग, महिला यात्रियों को परेशानी होती है। सामाजिक कार्यकर्ता राहुल गुंसाई ने बताया कि शाम होते ही परिसर में महाराणा प्रताप पार्क में शराबी पकड़े जाते हैं। कई बार पुलिस भी चेकिंग करती है लेकिन यह नियमित नहीं होती।
स्टाफ रिटायरिंग रूम के बिस्तर में हैं खटमल
उत्तराखंड परिवहन निगम ने बसों में चलने वाले स्टाफ कंडक्टर, ड्राइवर के लिए रिटायरिंग रूम बनाया है। चालकों और परिचालकों के मुताबिक रिटयरिंग रूम के बिस्तरों में खटमल हैं। लोहाघाट डिपो के कंडक्टर महिपाल सिंह ने बताया कि गंदगी, बिस्तर में खटमल की शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं है। मजबूर होकर स्टाफ प्लेटफार्म पर चादर बिछाकर सोता है।
नक्शे के हिसाब से ही नहीं बन सका आइएसबीटी
कर्मचारी नेता अशोक चौधरी ने बताया कि जब आइएसबीटी की नींव रखी गई थी तब यहां तीन से चार मंजिला इमारत बननी प्रस्तावित थी। इसमें सरकारी दफ्तर समेत एसी वेटिंग रूम, एसी डोरमेट्री और होटल, रेस्टोरेंट आदि बनने थे ताकि देशी-विदेशी सैलानियों को बस अड्डे पर ही सुविधाएं मिले लेकिन बस अड्डा शुरू होने के 15 साल बाद तक काम पूरा नहीं हो सका है।
एसी बस वेटिंग रूम किराए पर
आइएसबीटी में मुख्य प्रवेश द्वार पर तो यात्रियों के लिए एसी वेटिंग रूम बना होना तो दर्शाया गया है, मगर रैमकी ने इसे एक निजी कंपनी को किराए पर दफ्तर खोलने के लिए दे रखा है।
एंट्री-एग्जिट गेट नहीं, कहां लगे सिक्योरिटी उपकरण
राजधानी का आइएसबीटी परिसर ऐसा है कि इसमें यात्रियों के जाने और बाहर आने के लिए कोई अलग द्वारा नहीं है। बसों के अंदर आने और बाहर जाने वाले रास्ते से ही यात्री अंदर आते हैं। परिसर की सुरक्षा पर सवाल उठा यात्रियों के लिए अलग गेट की व्यवस्था कर मेटल डिटेक्टर डोर बनाने और सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश दिए थे मगर हुआ कुछ भी नहीं।
संचालन का टीवी डिस्प्ले नहीं
आइएसबीटी परिसर में बस संचालन का एक भी इलेक्ट्रिक डिस्पले मौजूद नहीं होने पर प्रबंध निदेशक ने कंपनी को निर्देश दिए थे कि तत्काल डिस्प्ले लगाया जाए, लेकिन यह मामला अब तक अधर में है।
गड्ढों में सड़क तो पानी निकासी भी नहीं
आइएसबीटी में सड़क में गड्ढे हैं या यूं कहे कि गड्ढों में सड़क है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रवेश द्वार से निकासी द्वार तक सड़क उधड़ी हुई है। दोनों द्वार पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं। ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने से बारिश में जल भराव होकर तलैया बन जाता है। हालत यह है कि मोटर लगाकर जमा पानी खींचा जाता है।
रैमकी के परियोजना प्रबंधक विजेंद्र सिंह नेगी बताते हैं कि परिसर में सड़कों के रखरखाव के लिए कंपनी से 22 लाख का बजट मांगा है। रोजाना हर शिफ्ट में सफाई होती है। 22 गार्ड भी तैनात है जो यात्रियों की सुरक्षा के साथ गंदगी करने वालों को भी रोकते हैं। जुआरियों के लिए पुलिस से शिकायत की जाती है।
डीजीएम संचालन आरपी भारती का कहना है कि आइएसबीटी का संचालन का जिम्मा रैमकी कंपनी पर है। परिवहन निगम ने यात्रियों की सुविधा के लिए पूछताछ केंद्र, बुकिंग काउंटर, कार्ड बनाने के लिए काउंटर बनाए हैं। यदि कोई शिकायत हो तो यात्री बताए उसकी समस्या का हल किया जाएगा।
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