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आइकॉल-2019: हथियार बनाने वाली कंपनियों ने की लुभाने की कोशिश

आइकॉल-2019 के तीसरे दिन हथियार बनाने वाली कंपनियों ने अपने रक्षा उत्पादों की खूबियां बताकर भारत को रिझाने की कोशिश की।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 22 Oct 2019 03:50 PM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2019 03:50 PM (IST)
आइकॉल-2019: हथियार बनाने वाली कंपनियों ने की लुभाने की कोशिश

देहरादून, जेएनएन। इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन ऑप्टिक्स एंड इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स (आइकॉल)-2019 के तीसरे दिन हथियार बनाने वाली कंपनियों ने अपने रक्षा उत्पादों की खूबियां बताकर भारत को रिझाने की कोशिश की। ताकि वह डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) के साथ कारोबारी समझौता कायम कर सकें।

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आइकॉल-2019 में इंडस्ट्रियल सेशन पूरे तीन घंटे चला। इस दौरान हथियारों की डे-नाइट साइट बनाने वाली इजराइल की कंपनी सीआइ सिस्टम्स, फ्लोरिडा की टेकपोर्ट ऑप्टिक्स, पारस डिफेंस एंड स्पेस टेक्नोलॉजिस लि. बेंगलुरू, अपोलो माइक्रोसिस्टम्स हैदराबाद समेत 50 कंपनियों ने अपने रक्षा उत्पादों की जानकारी दी। कंपनियों के प्रतिनिधियों ने बताया कि वह किस नई तकनीक पर काम कर रही हैं और उनके उत्पादों की बदौलत किस तरह भारत के हथियारों की कार्यक्षमता को बेहतर बनाया जा सकता है। इस सत्र की अध्यक्षता रक्षा विशेषज्ञ आरएस पुंडीर व एके सहाय के ने की। वहीं, इससे पहले के सत्रों में देश-विदेश से जुटे विशेषज्ञों ने रक्षा क्षेत्र की विभिन्न तकनीक पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।

वैश्विम धमक के लिए स्वदेशी तकनीक जरूरी

आइकॉल-2019 के दौरान रक्षा विशेषज्ञों इसी बात पर बल दे रहे हैं कि देश को जल्द से जल्द रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना जरूरी है। क्योंकि विदेशी तकनीक न सिर्फ अधिक खर्चीली है, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी धमक दिखाने के लिए किसी भी देश को रक्षा तकनीक में अधिक से अधिक आत्मनिर्भर होना जरूरी है।

रक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि जब भी किसी हथियार के लिए विदेश से उत्पाद निर्माण की तकनीक हासिल की जाती है तो सिर्फ उस उत्पाद के प्रयोग का ही अधिकार रहता है। किसी उत्पाद में खराबी आने पर न तो उसे ठीक किया जा सकता है, न ही उसे अपग्रेड किया जा सकता है। क्योंकि संबंधित सॉफ्टवेयर का कोड उसी तकनीक ईजाद करने वाले देश के पास रहता है। इस कोड को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिये हासिल किया जा सकता है और वह काफी खर्चीला भी होता है। 

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इसके अलावा तकनीक ईजाद करने वाले देश नवीनतम तकनीक को अपने पास रखते हैं और पुरानी हो चुकी तकनीक को ही किसी अन्य देश को सौंपते हैं। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि आज रक्षा सेक्टर बेहद बड़े वैश्विक बाजार के रूप में तब्दील हो चुका है और युद्ध के समय आमने-सामने खड़े दो देशों के पास समान क्षमता के हथियार उपलब्ध हो सकते हैं। लिहाजा, खुद को रक्षा शक्ति में अधिक बलशाली बनाने के लिए भारत को रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भर बनना जरूरी है।

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देश में रक्षा उत्पादों के कंपोनेंट बनाने वाली कंपनियों की कमी

आइकॉल में यह बात भी सामने आई कि हमारा देश स्वदेशी रक्षा तकनीक में तेजी से आगे बढ़ रहा है, मगर अभी भी ऐसी कंपनियों की कमी है, जो उत्पादों के कंपोनेंट बनाने में सहायक हों। क्योंकि तमाम विकसित देशों में निजी सेक्टर में ऐसी तमाम कंपनियां उपलब्ध हैं। हालांकि, अच्छी बात यह है कि अब आइआरडीई समेत डीआरडीओ के अन्य संस्थानों ने इस दिशा में प्रयास तेज कर दिए हैं। आइआरडीई इसी कड़ी में देहरादून की हिंदुस्तान ऑप्टिकल्स कंपनी को खुद से जोड़ने के प्रयास कर रही है। कई अन्य कंपनियों से भी संपर्क साधा जा रहा है।

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