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    Cockroach Fossil: राजस्थान के बीकानेर में खोजे गए कॉकरोच के पांच करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म, वैज्ञानिकों ने किया ये दावा

    By Jagran News Edited By: Aysha Sheikh
    Updated: Fri, 19 Jan 2024 11:15 AM (IST)

    Cockroach Fossil गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय और फ्रांस के विज्ञानियों ने मिलकर खोज की है। खोज में कॉकरोच के कुछ जीवाश्म मिले हैं जिन्हें 5.3 करोड़ वर्ष पुराना बताया जा रहा है। इनका आकार एक एमएम से 13 एमएम के बीच है। कीटों के ये जीवाश्म 5.3 करोड़ वर्ष पहले की जलवायु के बारे में बताने में भी सहायक सिद्ध होंगे।

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    Cockroach Fossil: राजस्थान के बीकानेर में खोजे गए कॉकरोच के पांच करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म, वैज्ञानिकों ने किया ये दावा

    सुमन सेमवाल, देहरादून। राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र की कोयला खदान में काकरोच, खटमल और लार्वा के करीब 5.3 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म मिले हैं। यह खोज एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय और फ्रांस के विज्ञानियों ने मिलकर की है। विज्ञानियों का दावा है कि काकरोच के ये जीवाश्म देश में अब तक की खोज में सबसे पुराने हैं।

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    एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के विशेषज्ञ लंबे समय से देश की विभिन्न खदानों में जीवाश्मों की खोज में जुटे हैं। भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर आरएस राणा के मुताबिक, हालिया खोज में काकरोच के दो जीवाश्म समेत खटमल और लार्वा के जीवाश्म पाए गए हैं।

    इनकी अवधि का आकलन करने पर पता चला कि ये करीब 5.3 करोड़ वर्ष पुराने हैं। इनका आकार एक एमएम से 13 एमएम के बीच है। कीटों के ये जीवाश्म 5.3 करोड़ वर्ष पहले की जलवायु के बारे में बताने में भी सहायक सिद्ध होंगे। लिहाजा, इस दिशा में भी अध्ययन शुरू कर दिया गया है। इस खोज में प्रोफेसर आरएस राणा के साथ शोध छात्र रमन पटेल ने भी अहम भूमिका निभाई।

    खोज को प्रसिद्ध जूटैक्सा जर्नल ने किया प्रकाशित

    एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक, विश्व प्रसिद्ध जर्नल जूटैक्सा ने काकरोच, खटमल और लार्वा के जीवाश्म की इस खोज को प्रकाशित किया है। उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में विभाग में शोध कार्यों में बढ़ोतरी की जाएगी।

    गर्म थी जलवायु, वनस्पति और पानी भी था

    प्रोफेसर आरएस राणा के मुताबिक काकरोच, खटमल और लार्वा के करीब 5.3 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म मिलने का मतलब यह है कि उस वक्त भी बीकानेर क्षेत्र की जलवायु गर्म थी। हालांकि, वहां वनस्पति और पानी भी था। क्योंकि, लार्वा पानी में भी हो सकता है। इसके अलावा वहां की भूमि दलदली होने के संकेत भी मिलते हैं। माना जा सकता है कि उस दौर में वहां रेगिस्तान की वर्तमान जैसी स्थिति भी नहीं होगी। संभवतः फिर जलवायु गर्म होती चली गई और ये कीट लुप्त हो गए।

    100 मीटर तक गहराई में मिले जीवाश्म

    प्रोफेसर आरएस राणा ने बताया कि कोयले की खदान में जीवाश्म सतह से 60 से 100 मीटर तक की गहराई में मिले हैं। इस सफलता के बाद अन्य क्षेत्रों की खदानों में भी जीवाश्म खोज में तेजी लाई जाएगी। हालांकि, यह सब बजट और खदानों में खोज कार्यों की सुलभता पर निर्भर करेगा।

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