सीएम बोले, दून की सड़क मेट्रो परियोजना के लिहाज से उपयुक्त नहीं
दून मेट्रो रेल परियोजना को लेकर सरकार की हिचकिचाहट सामने आने लगी है। सीएम का कहना है कि देहरादून की सड़क मेट्रो रेल के लिए उपयुक्त नहीं है।
देहरादून, जेएनएन। दून मेट्रो रेल परियोजना (एलआरटीएस यानी लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम) को लेकर अब सरकार की हिचकिचाहट भी सामने आ गई है। रविवार को दून में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि दून की सड़क मेट्रो परियोजना के लिहाज से उपयुक्त नहीं हैं। वहीं, इससे पहले मुख्य सचिव उत्पल कुमार भी विभिन्न बैठकों में कह चुके हैं कि परियोजना दून के लिए मुफीद नहीं है। वह दून के लिए रोपवे सिस्टम को अधिक बेहतर बताते आ रहे हैं। हालांकि मेट्रो रेल परियोजना को लेकर सरकार की यह हिचकिचाहट तब जाकर सार्वजनिक हो रही है, जब इसको लेकर लंबी-चौड़ी कसरत की जा चुकी है।
उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन और दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अधिकारी जर्मनी का दौरा कर चुके हैं और इसके बाद प्रदेश सरकार की एक टीम लंदन-जर्मनी का भ्रमण करके आ चुकी है। वहीं, मेट्रो रेल परियोजना के तहत एलआरटीएस की डीपीआर तैयार करने के बाद उसकी संशोधित डीपीआर भी तैयार की गई है, जिसे दिसंबर 2017 में केंद्र सरकार को भी भेज दिया गया था।
अब इंतजार इस बात का था कि मेट्रो की डीपीआर को राज्य सरकार की स्वीकृति के बाद अंतिम मुहर के लिए केंद्र सरकार को भेज दिया जाए। खास बात यह भी है कि इन्वेस्टर्स समिट में मेट्रो परियोजना के लिए 4500 करोड़ रुपये के निवेश का करार अडानी समूह सरकार के साथ कर चुका है और सरकार भी इसको लेकर तब उत्साहित नजर आ रही थी। हालांकि अब सरकार के बदले रुख के बाद पूरी कसरत पर पानी फिरता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री ने मेट्रो की समिति का दिया हवाला मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मेट्रो परियोजना के लिए शहरी विकास मंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति का हवाला देते हुए कहा कि समिति ने दून की सड़कों को परियोजना के लिहाज से बेहतर नहीं माना है।
शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक का कहना है कि समिति ने एलआरटीएस (छोटी मेट्रो) को बेहतर माना है। हो सकता है कि वह मेट्रो की बात कर रहे हों, क्योंकि तकनीकी रूप से मेट्रो व एलआरटीएस में काफी अंतर है और खर्च भी इसमें आधा ही आता है।
मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक जितेंद्र त्यागी ने कहा कि मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय लेकर उनसे परियोजना के बारे में चर्चा की जाएगी। हालांकि अंत में सरकार को ही तय करना है कि परियोजना पर आगे बढ़ना है या नहीं।
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