ईंट-पत्थर की संरचना नहीं, विचारों का प्रतिविंब है लेखक गांव : धामी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि लेखक गांव विचारों का प्रतीक है, जो अटल जी की प्रेरणा से बना है। यह समाज को नई दिशा देगा और पीढ़ियों को भविष्य निर्माण सिखाएगा। स्पर्श हिमालय महोत्सव में उन्होंने कहा कि यह गांव विचारों का तीर्थ बनेगा, जहां नई पीढ़ी नए अविष्कार करेगी। सरकार साहित्यकारों को सम्मानित कर रही है, ताकि साहित्य का प्रभाव बना रहे।

थानो स्थित लेखक गांव में स्पर्श हिमालय महोत्सव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को स्मृति चिह्न देते पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक । जागरण
संवाद सहयोगी, जागरण, डोईवाला (देहरादून):मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि देहरादून के थानो में बना लेखक गांव महज ईंट-पत्थर की संरचना नहीं, बल्कि विचारों का प्रतिविंब है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा से बने इस लेखक गांव से समाज को नई दिशा तो मिलेगी ही, आने वाली पीढ़ियां भविष्य का निर्माण करना भी सीखेंगी। लेखक गांव में स्पर्श हिमालय महोत्सव के तीसरे एवं अंतिम दिन आयोजित सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि कि पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की ओर से लेखक गांव के रूप में अभिनव पहल की गई है। आज पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जीवित होते तो इसे देखकर उन्हें बेहद खुशी होती।
क्योंकि, उन्होंने हमें सिखाया की शब्द भी राष्ट्र निर्माण के शस्त्र बन सकते हैं। लेखक गांव आने वाले वर्षों में विचारों का ऐसा तीर्थ स्थल बनेगा, जहां नई पीढ़ी अपने विचारों को जागृत करेगी और एक नए आविष्कार को जन्म देगी। साथ ही देश की प्राचीन परंपरा को भी आधुनिक दृष्टि से जोड़ने का कार्य यहां होगा।
उन्होंने कहा कि यह महोत्सव का समापन नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। भविष्य में यह स्थल विचारों का साधना स्थल बनेगा। कहा कि प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान के माध्यम से उत्कृष्ट साहित्यकारों को सम्मानित करने का कार्य शुरू किया है।
सरकार का प्रयास है कि प्रदेश में साहित्य का प्रवाह निरंतर जारी रहे। उम्मीद है साहित्यकार, कलाकार व विद्वानों के सहयोग से हम संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने में सफल होंगे।
हिमाचल विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पद्मश्री डा. हरमोहिनिंदर सिंह बेदी ने कहा कि देश की राष्ट्रीय अस्मिता उसकी भाषा, संस्कृति और मूल्यों में निहित है। लेखक गांव उस आत्मा का सजीव प्रतीक है, जहां शब्द साधना बनते हैं और सर्जन राष्ट्र के प्रति समर्पण कर रूप लेता है।
लेखक गांव के संरक्षक पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया कि स्पर्श हिमालय महोत्सव में भारत सहित 60 से अधिक देशों के साहित्यकार, कलाकार, शिक्षाविद और विचारकों ने सहभागिता की। यहां योग से लेकर पर्यावरण, भाषा से लेकर शोध और साहित्य से लेकर राष्ट्र तक हर सत्र ने देश की सभ्यता, उसकी वैचारिक गहराई और सांस्कृतिक आत्मविश्वास को नई दिशा दी।
अध्यक्षता करते हुए पूर्व रक्षा सचिव डा .योगेंद्र नारायण ने कहा कि लेखक गांव महज एक सांस्कृतिक परियोजना नहीं, देश की बौद्धिक चेतना का पुनर्जागरण है। यहां साहित्य, समाज और राष्ट्र एक साथ संवाद करते हैं। यह स्थान आज भारतीय मन और वैश्विक मानवता के बीच एक जीवंत सेतु बन चुका है। इस अवसर पर बालकृष्ण चमोली, दायित्वधारी सुभाष बड़थ्वाल, सुभाष भट्ट, शादाब शम्स, विदुषी निशंक, आरुषि निशंक, श्रेयसी निशंक आदि मौजूद रहे।
योग भारत की आत्मा का प्रतीक
स्पर्श हिमालय महोत्सव के प्रथम सत्र में विश्व को भारत की देन योग एवं अध्यात्म पर चर्चा हुई। इस अवसर पर स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डा. विजय धस्माना ने कहा कि योग भारत की आत्मा है। शरीर, मन और आत्मा को एक सूत्र में पिरोने वाली अनादि परंपरा है। भारत ने अपने इस ज्ञान को विश्व को उपहार में दिया जो आज मानवता की शांति का आधार बन चुका है। योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन में अनुशासन, संतुलन और समरसता की साधना है। सत्र में विभिन्न विद्वानों ने इस बात पर बल दिया कि भारत के योग दर्शन ने आधुनिक विज्ञान को भी समग्र स्वास्थ्य का नया दृष्टिकोण दिया है। योग आज वैश्विक जीवन शैली का हिस्सा बन चुका है। इस अवसर पर स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय के कुलपति डा. प्रदीप भारद्वाज, प्रो. श्रीनिवास बरखेड़ी आदि मौजूद रहे।
कथेतर साहित्य यथार्थ का साक्षी
कथेतर साहित्य विचार और यथार्थ विषय पर आयोजित महोत्सव के द्वितीय सत्र में साहित्यिक संवेदना को नई दिशा दी गई। सत्र में मुख्य अतिथि तेजेंद्र शर्मा ने कहा कि कथेतर साहित्य यथार्थ का साक्षी है। यह वह दर्पण है, जिसमें समाज अपनी सच्चाई को देख सकता है। गद्य की यह विद्या संवेदना और विवेक दोनों को संतुलित करती है और यही उसकी प्रासंगिकता भी है।
निशंक की रचना धर्मिता, सर्जन संवाद और संवेदना
गंगा पांडाल में आयोजित तृतीय सत्र साहित्यकार रमेश पोखरियाल निशंक की रचना धर्मिता, सर्जन, संवाद संवेदना विषय पर आयोजित हुआ। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति रहे प्रो. नवीन लोहानी ने कहा कि साहित्यकार निशंक का लेखन भारतीयता की आत्मा से ओतप्रोत है। उनकी रचना हिमालय की ऊंचाई, गंगा की पवित्रता और मानवीय करुणा के स्वर को साथ लेकर चलती है। वह केवल कवि नहीं, बल्कि विचार और संवेदना के साधक हैं। उनकी लेखनी समाज को प्रकाश देती है। निशंक का साहित्य भारतीय ज्ञान परंपरा का स्वर है, जो आधुनिक युग में संस्कृति और प्रगति के बीच सेतु का कार्य कर रहा है।
पर्यावरण विकास में पर्यटन एवं तीर्थाटन की भूमिका
मुख्य पांडाल में आयोजित चतुर्थ सत्र में पर्यावरण व पर्यटन के मध्य संतुलन पर चर्चा हुई। उत्तराखंड केंद्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि हिमालय केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि भारत की आस्था और संस्कृति का आधार है। पर्यटन को पर्यावरणीय संतुलन के साथ जोड़ना ही सतत विकास का वास्तविक मार्ग है। तीर्थाटन केवल धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। सत्र में वक्ताओं ने पर्यावरणीय दृष्टि से उत्तराखंड का महत्व अद्वितीय बताया और कहा कि इस क्षेत्र को विश्व का हब बनाने की दिशा में सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
भारतीय भाषाएं और हिंदी भाषी क्षेत्र की कविताएं
नालंदा पुस्तकालय में आयोजित पांचवें सत्र में भारतीय भाषाओं और हिंदी भाषा क्षेत्र की कविताएं विषय पर चर्चा हुई। गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा. भाग्येश झा ने कहा कि भारत की विविध भाषाएं हमारे सांस्कृतिक स्वरूप को सबसे बड़ी पहचान दिलाती हैं। हिंदी वह सेतु है, जो उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक भारतीयता की डोर को जोड़ती है। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति की धड़कन है। वक्ताओं ने यह भी कहा कि हिंदी कविताएं भारतीय लोकजीवन, प्रेम, प्रकृति और दर्शन का ऐसा संगम है, जो हर पीढ़ी को भावनात्मक रूप से एक करता है।
वेदों में हिंदी शिक्षण
लेखकर गांव के नालंदा पांडाल में वेदों में हिंदी शिक्षण विषय पर विशेष अंतरराष्ट्रीय सत्र आयोजित हुआ। कजाकिस्तान से आए प्रो. जावेद खोलोव ने कहा कि हिंदी और संस्कृत के बीच का संबंध आत्मा और शरीर जैसा है। वेदों में निहित ज्ञान आधुनिक शिक्षा प्रणाली को गहराई देता है और हिंदी भाषा उस ज्ञान के संप्रेषण का सशक्त माध्यम बन रही है। आज यह भाषा सीमाओं को पार कर वैश्विक संवाद की पहचान बन गई है। सत्र में इस बात पर बल दिया कि भारत की भाषा अब विश्व की शैक्षणिक और बौद्धिक चर्चाओं का केंद्र बन रही है।
मन, चिंतन और सर्जन शोध के आयाम
गंगा पांडाल में आयोजित सातवें सत्र में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश शास्त्री ने कहा कि शोध का उद्देश्य केवल तथ्यों की खोज नहीं, बल्कि विचार की गहराई तक पहुंचना है। जब शोध में संस्कृति की गंध होती है, तब वह ज्ञान साधना का रूप ले लेता है। भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा आधुनिक अनुसंधान को नैतिकता और दृष्टि, दोनों देती है। सत्र में युवा शोधार्थियों ने भी विचार रखे और भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित नवाचार की आवश्यकता पर बल दिया।
राष्ट्रीय अस्मिता एवं भारतीय शौर्य परंपरा
महोत्सव का समापन मुख्य पांडाल में राष्ट्रीय अस्मिता एवं भारतीय शौर्य परंपरा विषय पर आयोजित चर्चा के साथ हुआ। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि लेखक गांव स्थानीय जनता को आत्मगौरव और नई पहचान देगा। वह अपने मार्गदर्शक पूर्व मुख्यमंत्री एवं साहित्यकार निशंक को नमन करते हैं। लेखक गांव में अतीत की गूंज, वर्तमान की ऊर्जा और भविष्य की संभावनाओं को एक सूत्र में बांधने का कार्य इस गांव में होने जा रहा है।

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