12 साल के बाद शुरू हुई घंटाघर की धड़कन, कर्नाटक से मंगाई गई घड़ियां
करीब 12 साल बाद शहर के घंटाघर की बंद पड़ी धड़कन फिर शुरू हो गई। बंगलुरू कर्नाटक से मंगाई गई छह डिजिटल घड़ी को शनिवार सुबह स्थापित कर दिया गया।
देहरादून, जेएनएन। करीब 12 साल बाद शहर के ‘दिल’ घंटाघर की बंद पड़ी धड़कन शनिवार से फिर शुरू हो गई। बंगलुरू कर्नाटक से तकरीबन साढ़े नौ लाख रुपये में मंगाई गई छह डिजिटल घड़ी को शनिवार सुबह स्थापित कर दिया गया। इसके साथ ही इसके घंटे की टन-टन चालू हो गई। महापौर सुनील उनियाल गामा और नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने घड़ियों का शुभारंभ किया। स्थानीय दुकानदार और लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से घंटाघर की ‘धड़कन’ का स्वागत किया। डिजिटल घड़ियां बिजली से संचालित होंगी व इसके लिए नया कनेक्शन भी लिया गया है।
वर्ष 2007 में घंटाघर की सुईंया बंद पड़ गई थी। पुराने जमाने की मशीन और पुरानी तकनीक का उपचार न मिलने पर 2008 में नगर निगम ने घंटाघर की सुईंया चलाने पर दूसरे विकल्पों पर कसरत की। विचार हुआ कि इसकी मशीन की मरम्मत कराकर घड़ी चलाई जाए, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। फिर नई घड़ियां व मशीन लगाने पर विचार हुआ लेकिन बजट का अभाव होने से नगर निगम को हर बार हाथ पीछे खींच लेने पड़ रहे थे। ओएनजीसी ने पहल की एवं इसके सौंदर्यीकरण के लिए सीएसआर फंड से 80 लाख रुपये देने की बात कही। इसका काम दो साल पहले शुरू कराया जाना था लेकिन इसकी नींव कमजोर मिली। फिर ब्रिडकुल के जरिए पहले इसकी नींव मजबूत की गई और अब सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा। महापौर गामा ने बताया कि घंटाघर की नींव के साथ प्लस्तर का काम भी हो चुका है। यहां फव्वारे के साथ पार्क में हरियाली और लाइटिंग समेत दीवारों का पुर्ननिर्माण आदि का काम होगा। महापौर गामा ने बताया कि घंटाघर हमारी विरासत का हिस्सा है व इसे सहेजना हमारा कर्तव्य है। बदले स्वरूप में घंटाघर जल्द लोगों के सामने होगा। घंटाघर में म्यूजिकल लाइट और फाउंटेन भी लगाए जा रहे हैं।
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बनती-निरस्त होती रहीं डीपीआर
घंटाघर के सौंदर्यीकरण की योजना साल 2007 में शुरू हुई थी, जबकि इसकी सुईयों ने काम करना बंद कर दिया था। उस दौरान एक निजी कंपनी ने यह जिम्मा उठाया मगर केवल घड़ी ठीक कराने पर सहमति दी गई। डीपीआर बनी मगर मामला टेंडर तक पहुंच खत्म हो गया। फिर साल 2013 में हुडको के साथ वार्ता आगे बढ़ी व सितंबर-2014 में 56 लाख 36 हजार की डीपीआर बनी। हुडको ने 40 लाख रुपये पर हामी भी भर दी थी, मगर फंड क्लीयरेंस नहीं मिल पाई। निगम ने मसूरी देहरा विकास प्राधिकरण के साथ मिलकर ओएनजीसी से बातचीत की। इसमें विज्ञापन के मसले पर मामला अटका रहा। इस बीच तीनों विभागों में बात चलती रही। नई डीपीआर भी तैयार की गई। इसमें तय हुआ कि ओएनजीसी घंटाघर पर अपने विज्ञापन लगा सकेगा। बाद में मामला नींव पर फंस गया। इसकी नींव बेहद कमजोर थी। निगम ने इसके लिए नई डीपीआर को तैयार किया और 60 लाख अलग से फंड दिया और ब्रिडकुल के जरिए नींव मजबूत कराई जाएगी। कुल मिलाकर पूरे कार्य पर करीब सवा करोड़ का खर्च होगा।
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