उत्तराखंड में चुगान नीति में होगा बदलाव
उत्तराखंड सरकार ने चुगान के लिए इसी वर्ष नई नीति अपनाई है। इसके तहत प्रदेश में नदियों में खनन ई-नीलामी के जरिये किया जाना है।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: प्रदेश में ई-नीलामी के जरिये खनन के शासनादेश में अब खुद विभाग ही उलझ गया है। इस आदेश के चलते पुराने आशयपत्र धारकों को खनन पट्टे उपलब्ध कराने के रास्ते बंद हो गए हैं। अब इसके समाधान का काम चल रहा है। इसके लिए शासन नदी से खनिज निकालने के लिए बनी पुरानी चुगान नीति में फिर से बदलाव कर नए सिरे से आदेश निकालने की तैयारी कर रहा है ताकि ई-नीलामी की व्यवस्था के साथ-साथ पुराने आशयपत्र धारक भी खनन का काम कर सकें।
प्रदेश सरकार ने चुगान के लिए इसी वर्ष नई नीति अपनाई है। इसके तहत प्रदेश में नदियों में खनन ई-नीलामी के जरिये किया जाना है। सोपस्टोन यानी खड़िया को फिलहाल ई-नीलामी से बाहर रखा गया है। इसके लिए अलग मानक बनाए गए हैं। नई नीति बनने के बाद अब नदियों में होने वाले सारे खनन ई-नीलामी के जरिये किए जा रहे हैं। हालांकि, इस नीति से तकरीबन पचास से अधिक खनन कारोबारी सीधे प्रभावित हुए हैं।
दरअसल, प्रदेश में खनन एक अक्टूबर से खोल दिया गया था और सरकार ने नई खनन नीति मध्य अक्टूबर से लागू की है। इससे पहले विभागीय प्रक्रिया में कई लोगों को खनन के लिए आशय पत्र जारी किए जा चुके थे। इसके अनुसार इन खनन कारोबारियों ने इसका पैसा भी विभाग में जमा करा दिया था। कुछ पुराने मामले भी लंबित थे, जिन्हें इस वर्ष अक्टूबर से पट्टे आवंटित किए जाने थे।
नई नीति को लागू करते समय विभाग इनके लिए कोई व्यवस्था नहीं बना पाया। चूंकि अब प्रदेश में नई खनन नीति लागू हो गई है तो इन कारोबारियों का हित सीधे प्रभावित हो रहा था। इन लोगों ने कुछ समय पहले शासन में विभागीय अधिकारियों से मिलकर अपनी परेशानी को साझा किया। यह बात विभाग के समझ में भी आ रही है। आशंका इस बात की भी है कि कहीं ये कारोबारी इस मामले में कोर्ट की शरण न ले लें।
इसे देखते हुए अब शासन ने इन कारोबारियों के लिए बीच का रास्ता तलाश करना शुरू किया है। इसके लिए पुरानी चुगान नीति के हिसाब से ही अलग आदेश बनाने की तैयारी चल रही है। इसके बाद इसे कैबिनेट के जरिये पारित कराया जाना प्रस्तावित किया गया है।
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