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    Chardham Yatra 2020: भारी भरकम बजट खर्च, फिर भी यात्रा मार्ग की बाधाएं दूर नहीं कर पाया तंत्र

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Sun, 09 Aug 2020 03:59 PM (IST)

    Chardham Yatra 2020 वर्षों बीत गए पर तंत्र चारधाम यात्रा की राह में आने वाली बाधाओं को दूर नहीं कर पाया। बड़े-बड़े दावे हुए भारी-भरकम बजट खर्च किया और किया जा रहा है।

    Chardham Yatra 2020: भारी भरकम बजट खर्च, फिर भी यात्रा मार्ग की बाधाएं दूर नहीं कर पाया तंत्र

    दिनेश कुकरेती, देहरादून। Chardham Yatra 2020 वर्षों बीत गए पर तंत्र चारधाम यात्रा की राह में आने वाली बाधाओं को दूर नहीं कर पाया। बड़े-बड़े दावे हुए, भारी-भरकम बजट खर्च किया और किया जा रहा है। फिर भी चारधाम बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को जोड़ने वाले हाईवे सुरक्षित नहीं हैं। इन हाइवे पर नासूर बन चुके भूस्खलन जोन बीते वर्षों में कई यात्री, निर्माण कार्य में जुटे श्रमिक और स्थानीय लोगों की जान ले चुके हैं।

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    बरसात के दौरान ही नहीं, सामान्य मौसम में भी मालूम नहीं होता कि कब भूस्खलन जोन सक्रिय हो जाएंगे। यही हाल इन दिनों है। जगह-जगह पहाडिय़ों के दरकने से यात्रा लगातार बाधित हो रही है। बदरीनाथ, केदारनाथ और यमुनोत्री हाईवे की स्थिति तो बेहद खतरनाक हो रही है। यात्री जैसे-तैसे पैदल ही भूस्खलन जोन पार कर रहे हैं, लेकिन कब किसके नाम का पत्थर लुढ़ककर आ जाए, कहा नहीं जा सकता। इसलिए सरकार! इस समस्या को गंभीरता से लीजिए।

    प्रवासियों ने दिखाई राह

    यह ठीक है कि लॉकडाउन ने जीवन में मुश्किलें खड़ी कीं, लेकिन यह भी सच है कि इससे व्यक्ति को समाज के प्रति जिम्मेदार भी बनाया। इसका उदाहरण हैं लॉकडाउन शुरू होने के बाद गांव वापस लौटे प्रवासी। गांव की जिन जटिल परिस्थितियों के कारण वे कभी पलायन को मजबूर हुए थे, लॉकडाउन में वापस लौटकर उन्होंने उन्हीं परिस्थितियों से खुद लडऩे का बीड़ा उठाया।

    अब तस्वीर यह है कि इन प्रवासियों की बदौलत तकरीबन दो दर्जन गांव सड़क से जुड़ चुके हैं। इस पुनीत कार्य में प्रवासियों ने सरकार के आगे भी हाथ नहीं फैलाए। बल्कि खुद गैंती-फावड़ा उठाकर सड़क काटने में जुट गए। इस कार्य पर जो भी खर्चा आया, वह भी उन्होंने उन प्रवासियों के सहयोग से जुटाया, खुशकिस्मती से जिनका रोजगार नहीं छूटा है और वो शहरों में ही रह रहे हैं। ग्रामीणों ने भी इसमें पूरे मनोयोग से सहयोग किया। है न सुकून वाली बात।

    ऐसा करना जरूरी था

    कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए शासन स्तर से क्या कदम उठाए जा रहे हैं, यह शासन ही जाने। लेकिन, रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने जरूर अपने स्तर से ठोस पहल कर अन्य जिलों के सामने नजीर पेश की है। प्रशासन ने बाहर से जिले में आने वाले हर व्यक्ति की सैंपलिंग का निर्णय लिया है। साथ ही केदारनाथ धाम आने वाले प्रत्येक यात्री के लिए कोरोना जांच की नेगेटिव रिपोर्ट दिखाना भी अनिवार्य कर दिया है। इसके तहत यात्री को केदारनाथ दर्शनों के लिए आने के 72 घंटों के भीतर कोरोना जांच करवानी होगी। जबकि, अब तक बाहर से उत्तराखंड आने वाले यात्रियों के लिए ही कोरोना जांच की नेगेटिव रिपोर्ट दिखाने की अनिवार्यता थी। सही भी है, जिस तरीके से पहाड़ में लगातार कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए कुछ तो सख्ती करनी ही होगी। क्या सरकार की भी यही सोच है।

    प्रियंका ने बढ़ाया मान

    उत्तराखंड के चमोली जिले की बेटी प्रियंका ने विपरीत परिस्थितियों में भी सिविल सेवा परीक्षा में 257वां स्थान हासिल कर दिखा दिया कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। देवाल ब्लॉक के रामपुर गांव निवासी निम्न मध्यवर्गीय परिवार की इस बेटी के पिता राजमिस्त्री हैं और मां गृहणी। अपनी हैसियत के अनुसार उन्होंने बेटी को जिले में ही स्नातक तक की शिक्षा दिलाई।

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    प्रियंका ने भी खर्चा चलाने के लिए दसवीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया और सिविल सेवा का लक्ष्य लेकर पढ़ाई भी करती रही। फिलवक्त वह डीएवीपीजी कॉलेज देहरादून में एलएलबी की छात्रा हैं। सिविल सेवा में जाने की प्रेरणा उन्हें आइएएस अधिकारी एसए मुरुगेशन से मिली, जो तब चमोली जिले के डीएम थे, जब प्रियंका गोपेश्वर महाविद्यालय में पढ़ रही थीं। बस! फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज प्रियंका उन युवाओं के लिए नजीर बन चुकी हैं, जो हालात से घबरा जाते हैं।

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