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    Chandrayaan 3: पानी की खोज से आगे बढ़ेगी चंद्रयान की कहानी, ऑक्सीजन और खनिजों के बारे में निकाली जाएगी जानकारी

    By Suman semwalEdited By: Shivam Yadav
    Updated: Thu, 24 Aug 2023 03:16 AM (IST)

    Chandrayaan 3 - उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के पूर्व निदेशक व एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट के मुताबिक चांद की सतह पर उभरे बड़े-बड़े गड्ढों की हकीकत भी चंद्रयान-3 स्पष्ट कर पाएगा। यह भी पता चलेगा कि गड्ढे भीतरी कारणों से बने हैं या बाहर से आकर कोई चीज चांद से टकराई है। इससे वहां आने वाले चंद्रकंप को समझने में भी मदद मिलेगी।

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    पानी की खोज से आगे बढ़ेगी चंद्रयान की कहानी

    देहरादून [सुमन सेमवाल]। चंद्रयान-3 मिशन की सफल लैंडिंग के साथ ही उन अनुसंधान के पूरा होने की उम्मीद बढ़ गई है, जो हमारे वैज्ञानिकों के साथ पूरे देश ने चंद्रयान-1 व चंद्रयान-2 के मिशन के दौरान की थी। चंद्रयान-2 मिशन के दौरान आर्बिटर की ओर से भेजे गए आंकड़ों के विश्लेषण में पहली बार चांद पर पानी की स्पष्ट उपलब्धता हमने पूरे विश्व को बताई थी। इसका श्रेय देहरादून स्थित आईआईआरएस (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग) के तत्कालीन निदेशक प्रकाश चौहान को जाता है। अब प्रकाश चौहान इसरो के एनआरएससी (नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर) हैदराबाद के निदेशक हैं।

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    वर्ष 2019 में लांच किए गए चंद्रयान मिशन में यान के लैंडर व रोवर चांद की सतह पर उतरते समय क्षतिग्रस्त हो गए थे। हालांकि, आर्बिटर चांद के ऊपर घूमता रहा और इसके इमेजिंग इंफ्रारेड स्पेक्टोमीटर से जो आंकड़े मिले, उनका विश्लेषण आईआईआरएस ने किया था। 

    संस्थान के निदेशक प्रकाश चौहान ने ही बताया था कि चांद पर पानी के संकेत 29 डिग्री नार्थ से लेकर 62 डिग्री नार्थ के बीच मिले हैं। चंद्रयान-एक में पानी के संकेत मिले थे, लेकिन चंद्रयान-दो में प्रकाश चौहान और उनकी टीम ने उपलब्धता को स्पष्ट करते हुए बताया था कि पानी 800 से 1000 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) पाया गया है। अब चंद्रयान-3 के पूरी तरह सफल होने के बाद चांद पर खनिज पदार्थों की उपलब्धता के साथ ही ऑक्सीजन व वहां आने वाले चंद्रकंप आदि की दिशा में अहम जानकारी मिलने की उम्मीद है। 

    गड्ढों का रहस्य भी होगा उजागर

    उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के पूर्व निदेशक व एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट के मुताबिक, चांद की सतह पर उभरे बड़े-बड़े गड्ढों की हकीकत भी चंद्रयान-3 स्पष्ट कर पाएगा। यह भी पता चलेगा कि गड्ढे भीतरी कारणों से बने हैं या बाहर से आकर कोई चीज चांद से टकराई है। इससे वहां आने वाले चंद्रकंप को समझने में भी मदद मिलेगी।

    यह देश और समाज की सफलता

    चंद्रयान-3 मिशन की लैंडिंग के दौरान आईआईआरएस के निदेशक राघवेंद्र सिंह संस्थान के छात्रों और कार्मिकों के साथ इस पल के साक्षी बने। उन्होंने कहा कि मिशन की सफलता एक संस्थान से कहीं अधिक देश और समाज की सफलता है। इससे पूरे वैज्ञानिक जगत को बेहतर काम करने में प्रोत्साहन मिलेगा। अब इसरो व इससे संबंधित सभी संस्थान आगामी आदित्य, वीनस और गगनयान मिशन में और जोश के साथ काम करेंगे।

    यूसैक ने बताया गौरवमयी क्षण

    उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के वैज्ञानिकों और कार्मिकों ने चंद्रयान की सफल लैंडिंग पर टीम इसरो को बधाई दी। केंद्र की निदेशक नितिका खंडेलवाल ने कहा कि भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव में पहुंचने वाला पहला देश बन गया है। इसके माध्यम से अब चांद में मानव के बसने से लेकर तमाम खनिजों की उपलब्धता आदि पर भी तस्वीर साफ हो पाएगी।