Move to Jagran APP

Uttarakhand Glacier Disaster: प्राकृतिक आपदा में मची तबाही के बीच फिर ढाल बनकर खड़ा रहा टिहरी बांध

Uttarakhand Glacier Disaster विकास बनाम पर्यावरण की बहस के बीच आपदा नियंत्रण में दूसरी बार निभाई अहम भूमिका चमोली की घटना के बाद बांध ने उत्पादन रोकने के साथ पानी भी रोका केदारनाथ आपदा के दौरान भी दिखाया था यही रूप।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 08 Feb 2021 12:00 PM (IST)Updated: Mon, 08 Feb 2021 03:08 PM (IST)
Uttarakhand Glacier Disaster: प्राकृतिक आपदा में मची तबाही के बीच फिर ढाल बनकर खड़ा रहा टिहरी बांध
टिहरी बांध के साथ कोटेश्वर बांध में भी पानी छोड़े जाने का कार्य पूरी तरह बंद कर दिया गया।

हरीश तिवारी, ऋषिकेश। Uttarakhand Glacier Disaster उत्तराखंड में विकास परियोजनाओं, खासकर जल विद्युत परियोजनाओं और बांधों को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन टिहरी बांध ने जिस तरह दूसरी बार तबाही से लोगों को बचाने में अहम भूमिका निभाई उससे यह साबित हो गया कि पारिस्थितिकी तंत्र को ध्यान में रखते हुए विकास योजनाओं को आगे बढ़ाने में हर्ज नहीं है।

loksabha election banner

टिहरी बांध ने इस आशंका को फिर निमरूल साबित किया है कि बड़े बांध आपदा और बाढ़ के वक्त विनाशकारी ही साबित होते हैं। हां, यह बात जरूर है कि एक और आपदा का यह भी संदेश है कि नदियों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में अधिक सतर्कता की जरूरत है, क्योंकि उस संतुलन की अनदेखी नहीं की जा सकती जो बांध परियोजनाओं के विकास व प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के बीच आवश्यक है।

वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के दौरान पानी रोककर टिहरी बांध ने मैदानी क्षेत्र में बड़ी तबाही टालने में अहम भूमिका निभाई थी। अब चमोली में ग्लेशियर टूटने के बाद एक बार फिर टिहरी बांध ने जान-माल की सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाई है। सूचना पर संज्ञान लेकर टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड प्रबंधन ने न सिर्फ परियोजना में उत्पादन रोका, बल्कि बांध से छोड़े जाने वाले पानी को भी रोके रखा।

टिहरी में भागीरथी नदी पर बनाई गई बांध परियोजना को लेकर भी यदा-कदा सवाल उठाए जाते रहे हैं कि यह परियोजना विनाशकारी साबित हो सकती है, लेकिन गढ़वाल मंडल में जब भी बड़ी आपदा और बाढ़ की स्थिति पैदा हुई, टिहरी बांध ने बड़ी भूमिका निभाई है। 16 जून, 2013 को जब केदारनाथ त्रसदी हुई तब टिहरी बांध में 7000 क्यूमैक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड) डिस्चार्ज था। दो दिन तक टिहरी बांध में पानी को रोककर रखा गया। इस अवधि में झील का रिजर्व वाटर स्तर 25 मीटर तक बढ़ गया था। जबकि आपदा के दौरान हरिद्वार में जलस्तर 15 हजार क्यूमैक्स था। यदि टिहरी बांध से यह 7000 क्यूमैक्स पानी छोड़ा जाता तो हरिद्वार में जलस्तर 22 हजार क्यूमैक्स हो जाता। इससे मैदानी क्षेत्र में बड़ी तबाही होती।

चमोली जिले की नीति घाटी में ग्लेशियर फटने से आई तबाही की सूचना टिहरी बांध परियोजना प्रबंधन को रविवार सुबह 11:30 बजे मिल गई थी। प्रबंधन के मुताबिक, सूचना की पुष्टि के बाद आपदा प्रबंधन विभाग से आवश्यक जानकारी ली गई। प्रशासन से आवश्यक दिशा-निर्देश मिलने पर टिहरी बांध प्रबंधन ने दोपहर 12 बजे मशीनों को पूरी तरह से बंद कर बांध से छोड़े जाने वाले पानी को रोक दिया। रविवार रात आठ बजे तक बांध में उत्पादन भी बंद था और पानी भी नहीं छोड़ा गया था। टिहरी बांध के साथ कोटेश्वर बांध में भी उत्पादन और पानी छोड़े जाने का कार्य पूरी तरह बंद कर दिया गया।

बांध से छोड़ा जाता है 250 क्यूमैक्स पानी : टिहरी बांध परियोजना के अंतर्गत टिहरी जलाशय से रोजाना 250 क्यूमैक्स पानी छोड़ा जाता है। इसे हरिद्वार पहुंचने में दस से 12 घंटे लगते हैं। ग्लेशियर टूटने के बाद टिहरी बांध से यदि पानी छोड़ा जाता तो ऋषिकेश और आगे मैदानी क्षेत्र में बाढ़ से तबाही हो सकती थी।

टिहरी बांध के अधिशासी निदेशक वीके बडोनी ने बताया कि हमारे लिए मानव जीवन से ज्यादा कुछ नहीं है। परियोजना से उत्पादन बंद होने के बाद नॉर्दर्न रीजनल डिस्पैच सेंटर को सूचित किया गया है। अन्य क्षेत्रों में यदि बिजली की आवश्यकता होती है तो वहीं से अन्य पावर प्लांट के जरिये डिमांड पूरी की जाएगी।

Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.