उत्तराखंड में बदली परिस्थितियों में हिम तेंदुओं की गणना चुनौती
सिक्योर हिमालय में हिम तेंदुओं का संरक्षण व सुरक्षा अहम हिस्सा है। इन क्षेत्रों में हिम तेंदुओं की गणना का कार्यक्रम परियोजना के अंतर्गत तैयार है। अभी गणना चुनौती बनी हुई है।
देहरादून, केदार दत्त। सिक्योर हिमालय परियोजना में शामिल गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद एवं अस्कोट वन्यजीव विहार, हिम तेंदुओं (स्नो लेपर्ड) के लिए भी मशहूर हैं। इन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न स्थानों पर लगे कैमरा ट्रैप में कैद होने वाली हिम तेंदुओं की तस्वीरें इसकी तस्दीक करती हैं। फिर सिक्योर हिमालय में हिम तेंदुओं का संरक्षण व सुरक्षा अहम हिस्सा हैं। इसे देखते हुए इन क्षेत्रों में हिम तेंदुओं की गणना का कार्यक्रम परियोजना के अंतर्गत तैयार है।
फरवरी से गणना शुरू होनी थी, मगर परिस्थितियां इसके आड़े आ गई हैं। ऐेसे में हिम तेंदुओं की गणना की मुहिम ठप पड़ी है। दरअसल, गणना होने से हिम तेंदुओं की वास्तविक संख्या सामने आ सकेगी। अभी तक ये पता नहीं है कि हिम तेंदुओं की संख्या है कितनी। गणना के आधार पर इनके संरक्षण और सुरक्षा के उपाय किए जाने हैं। अब बदली परिस्थितियों में हिम तेंदुओं की गणना शुरू करने की चुनौती है।
सिक्योर हिमालय पर नजर
बदली परिस्थितियों में उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में भी लॉकडाउन के कारण मानवीय गतिविधियां पूरी तरह बंद हैं। न वन्यजीव पर्यटन को सैलानी वहां जा रहे और न ट्रैकर्स ही। ऐसे में हिमालयी क्षेत्र के जंगलों और श्वेत धवल चोटियों की छटा भी देखते ही बनती है। इस परिदृश्य के बीच अब नजरें सिक्योर हिमालय परियोजना पर टिक गई हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के सहयोग से वर्ष 2017 में छह साल के लिए स्वीकृत हुई सिक्योर परियोजना में राज्य के गंगोत्री नेशनल पार्क व गोविंद वन्यजीव विहार से लेकर अस्कोट वन्यजीव विहार के दारमा और व्यास घाटी क्षेत्र को शामिल किया गया है। पिछले तीन सालों में परियोजना के विभिन्न बिंदुओं पर अध्ययन पूरा हो चुका है। इसकी रिपोर्ट परियोजना के नोडल वन विभाग को मिल चुकी है। लिहाजा, अब परियोजना के तहत जैवविविधता संरक्षण और आजीविका से जुड़े कार्यों को धरातल पर उतारने की बारी है।
60 गांवों की आजीविका
सिक्योर हिमालय परियोजना मूलत: तीन बिंदुओं पर केंद्रित है। इनमें उच्च हिमालयी क्षेत्र की जैवविविधता का संरक्षण, वन्यजीवों का संरक्षण, सुरक्षा और परियोजना में शामिल संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत व इनसे लगे गांवों में आजीविका विकास शामिल हैं। ऐसे में गोविंद वन्यजीव विहार के 43 और अस्कोट अभयारण्य के 17 गांवों के बाशिंदों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं।
दरअसल, ये गांव भी वन कानूनों की बंदिशों के चलते मूलभूत सुविधाओं के अभाव का दंश झेल रहे हैं। अब जबकि सिक्योर हिमालय परियोजना में आजीविका विकास के तहत पारिस्थितिकीय पर्यटन, जड़ी-बूटी व फलोत्पादन, रोजगारपरक प्रशिक्षण, उत्पादों का विपणन, चारा विकास जैसी गतिविधियों की रूपरेखा तय हो चुकी है तो इन 60 गांवों के लोग भी कुछ बेहतरी की आस लगाए बैठे हैं। वे उम्मीद लगाए हुए हैं कि परियोजना में उनकी आजीविका के साधन सशक्त होंगे। सूरतेहाल, परिस्थितियां सामान्य होते ही इस अहम सवाल पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
फायर लाइनों का फुकान
समय के साथ चलने में समझदारी है। इस सूत्रवाक्य को उत्तराखंड में वन महकमे ने भी आत्मसात किया है। दरअसल, इस बार मौसम निरंतर साथ दे रहा है और इसी वजह से राज्य के जंगल आग से फिलहाल महफूज हैं। 15 फरवरी से अब तक जंगलों में आग की महज 19 घटनाएं इसकी तस्दीक करती हैं।
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इस सबके बीच जब मौसम मेहरबान है तो विभाग ने फायर लाइनों की सफाई पर फोकस किया है। बता दें कि वनों में आग पर नियंत्रण में फायर लाइनों की अहम भूमिका होती है। जंगलों में रास्ते बना उन पर जमा पत्तियों का नियंत्रित तरीके से फुकान कर सफाई की जाती है। न सिर्फ जंगल, बल्कि वहां से गुजरने वाली सड़कों व रेल लाइनों के किनारे भी ऐसी कसरत की जाती है। वन विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक करीब 47 हजार किमी फायर लाइन की सफाई की जा चुकी है।
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