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Uttarakhand Lockdown: लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड के जंगलों की सुधरी सेहत

लॉकडाउन के बाद शहरी क्षेत्रों के पर्यावरण में सुधार देखा जा रहा तो जंगलों की सेहत भी सुधरी है। मानवीय दखल थमने और मौसम के साथ देने का असर है कि प्रकृति एकदम नए कलेवर में निखरी है।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Published: Sat, 02 May 2020 02:44 PM (IST)Updated: Sat, 02 May 2020 10:15 PM (IST)
Uttarakhand Lockdown: लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड के जंगलों की सुधरी सेहत
Uttarakhand Lockdown: लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड के जंगलों की सुधरी सेहत

देहरादून, केदार दत्त। लॉकडाउन के बाद शहरी क्षेत्रों के पर्यावरण में सुधार देखा जा रहा तो जंगलों की सेहत भी सुधरी है। मानवीय दखल थमने और मौसम के साथ देने का असर है कि प्रकृति एकदम नए कलेवर में निखरी है। 

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71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड के जंगल भी इससे अछूते नहीं हैं। फायर सीजन भले ही चल रहा हो, मगर वनों में आग की बहुत कम घटनाएं हुई हैं। जगह-जगह वर्षाजल संरक्षण के साथ ही बेजुबानों की प्यास बुझाने को बनाए गए वाटरहोल पानी से लबालब हैं। 

पहाड़ से लेकर मैदानी इलाकों तक सभी जगह जंगलों में जबर्दस्त हरियाली है। घास अच्छे से उगी है। यानी बेजुबानों के लिए किसी तरह का कोई संकट नहीं है। पेड़ों के अवैध पातन की घटनाएं बीते सवा माह के कालखंड में सामने नहीं आई हैं। जंगलों में सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन भी बढ़ा है। सूरतेहाल, वनों की सुधरती सेहत भविष्य के लिए शुभ संकेत है।

जंगलों में सीडबॉल फेंकने की तैयारी

मानसून में जंगल हरियाली की और अधिक चादर ओढ़े, इसके लिए सीडबॉल मुहिम की तैयारियां फिर शुरू हो गई हैं। आप सोच रहे होंगे कि हरियाली के लिए पौधरोपण तो ठीक है, मगर ये सीडबॉल है क्या। दरअसल, दक्षिण भारत में छाप छोडऩे वाले केरल के सीडबॉल मॉडल की तर्ज पर उत्तराखंड में भी यह मुहिम आकार ले रही है। वन महकमे के अलावा अन्य संगठन भी इससे जुड़े हैं। फिर चाहे वह पहाड़ों की रानी मसूरी की बात हो या उत्तरकाशी की, वहां ये मुहिम सफल रही है। 

इसके तहत मिट्टी और गोबर के गोलों के बीच में विभिन्न प्रजातियों के बीज डालकर इन्हें सुखाया जाता है। फिर इन्हें जंगल के उन क्षेत्रों में फेंका जाता है, जहां पौधरोपण के लिए पहुंचना मुमकिन नहीं है। हर बार ही मानसून के आगमन से पहले सीडबॉल ढंगारी और सुदूरवर्ती क्षेत्रों में फेंकें जाते हैं। इसके सकारात्मक नतीजे भी सामने आए हैं।

कार्बेट व राजाजी में निगरानी तेज

विश्व प्रसिद्ध कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में इन दिनों सैलानियों की आवाजाही पूर्णत: बंद है तो वन्यजीव भी बगैर किसी व्यवधान के स्वछंद विचरण कर रहे हैं। ऐसे में वे जंगल की देहरी भी लांघने लगे हैं। कार्बेट और राजाजी से सटे इलाकों में वन्यजीवों की चहलकदमी की खबरें इसकी तस्दीक करती हैं। जाहिर है कि ऐसे में चिंता भी सताने लगी है।

जंगल से बाहर निकलते ही कहीं कोई अनहोनी हो गई तो...। इसे देखते हुए सुरक्षा समेत अन्य कारणों के दृष्टिगत कार्बेट और राजाजी में वन्यजीवों पर निगरानी के लिए बाकायदा टीमें गठित कर दी गई हैं। कार्बेट में एक दर्जन तो राजाजी में डेढ़ दर्जन से ज्यादा टीमें वन्यजीवों पर नजरें बनाए हुए हैं। टीमें यह भी देख रही हैं कि कहीं बेजुबानों के व्यवहार में कोई बदलाव तो नहीं आ रहा। साथ ही ऐसे स्थल भी चिह्नित किए जा रहे, जहां इनकी आवाजाही अधिक है।

एनडीबीआर में ड्रोन से होगा सर्वे

उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व (एनडीबीआर) इन दिनों सहमा सा है। रिजर्व की उर्गम घाटी में हाल में मृत मिले वन्यजीव घुरल के पीपीआर (पेस्टडेस पीटिस्ट रूमिनिएंटस) नामक बीमारी की चपेट में आने की संभावना जताई जा रही है। 

हालांकि, शव सड़ा-गला था, मगर खाल से बाल झड़े हुए थे। इसे देखते हुए ही ये आशंका जताई गई। ये बात अलग है कि पोस्टमार्टम में पीपीआर की पुष्टि नहीं हुई, मगर रिजर्व प्रशासन की नींद उड़ी हुई है। क्षेत्र में टीमें भेजी गईं, मगर अन्य कोई ऐसा घुरल नजर नहीं आया, जो बीमार हो। 

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बता दें कि पांच साल पहले एनडीबीआर में पीपीआर की चपेट में आकर 10-12 घुरल मारे गए थे और महकमे की छीछालेदर हुई थी। ताजा मामले में महकमा फूंक-फूंककर कदम रख रहा है। शक की कोई गुंजाइश न रहे, इसके लिए ड्रोन से पूरे रिजर्व का सर्वे कराने की तैयारी है।

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