Updated: Sat, 04 Oct 2025 01:07 PM (IST)
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के पश्मी गांव में चालदा महासू देवता की पहली प्रवास यात्रा प्रस्तावित है। इस यात्रा के साथ एक नई परंपरा की शुरुआत होगी। देवता जो हमेशा यात्रा करते रहते हैं शांठीबिल से पांशीबिल क्षेत्र में 12 साल में एक बार जाते हैं। इस बार देवता दसऊ मंदिर से सीधे सिरमौर के लिए प्रस्थान करेंगे जिससे एक नया इतिहास बनेगा और पश्मी गांव में उत्साह है।
चंदराम राजगुरु, जागरण त्यूणी। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के शिलाई प्रखंड से जुड़े पश्मी गांव में प्रस्तावित छत्रधारी चालदा महासू देवता की पवित्र बरवांश यात्रा से सदियों पुरानी परंपरा में नया बदलाव देखने को मिलेगा। दशहरे के दिन देवता की प्रस्तावित प्रवास यात्रा का कार्यक्रम घोषित किया गया। इसके तहत 14 दिसंबर को देवता प्रवास यात्रा पर पश्मी गांव पहुंचेंगे।
विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
देवता दसऊ मंदिर से मशक जाने के बजाए सीधे सिरमौर के लिए प्रस्थान करेंगे। इससे देवता की प्रवास यात्रा में नया इतिहास जुड़ जाएगा। यह पहला मौका है, जब देवता शांठीबिल क्षेत्र में प्रवास यात्रा के चलते बीच में टोंस नदी के उस पार स्थित पांशीबिल क्षेत्र में प्रवेश करेंगे। हमेशा चलायमान रहने वाले छत्रधारी चालदा महासू देवता बरवांश की पूजा-अर्चना को मई 2023 से जौनसार के दसऊ मंदिर में विराजमान हैं।
चार भाई महासू देवता में सबसे बड़े बाशिक महासू, दूसरे नंबर के बोठा महासू, तीसरे नंबर के पवासी महासू व चौथे नंबर के चालदा महासू देवता हैं। लोक मान्यता एवं परंपरा के अनुसार चालदा महासू एक स्थान से दूसरी जगह प्रवास यात्रा के चलते हमेशा आते-जाते रहते हैं। टोंस नदी के दो हिस्से में बंटे शांठीबिल व पांशीबिल क्षेत्र में देवता की प्रवास यात्रा का समय पूर्व से निर्धारित है। पवित्र बरवांश यात्रा के चलते देवता शांठीबिल से पांशीबिल क्षेत्र में 12 साल में एक बार प्रवास करते हैं। कई बार देवता की निर्धारित प्रवास यात्रा में 20 से 40 वर्ष के बीच का लंबा समय लग जाता है।
चालदा महासू के दर्शन का सौभाग्य लोगों को पीढ़ी में एक या दो बार ही नसीब होता है। दशहरे के दिन देवता की प्रस्तावित प्रवास यात्रा का अगला कार्यक्रम घोषित किया गया। आठ दिसंबर को दसऊ मंदिर के गर्भगृह से देवता की पालकी गाजे-बाजे के साथ बाहर निकलेगी। नौ से 12 दिसंबर तक दसऊ, भूपोऊ, जगथान-बुरायला व सावडा में भक्तों की ओर से परंरागत बागडी की पूजा-अर्चना की जाएगी। 13 दिसंबर को देवता की प्रवास यात्रा हिमाचल प्रदेश के द्रविड़ गांव पहुंचेगी।
14 दिसंबर को पहली बार बरवांश की पूजा-अर्चना को चालदा महासू की प्रवास यात्रा सिरमौर जनपद के शिलाई प्रखंड से जुड़े पश्मी गांव पहुंचेगी। यहां देवता एक साल तक प्रवास करेंगे। पश्मी व घासन पंचायत के लोगों ने स्वंय के संसाधनों से देवता के प्रवास के लिए भव्य नया मंदिर बनाया है। 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन शुभ मुहूर्त पर नए मंदिर की विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। देवता के आगमन की सूचना से उत्साहित पश्मी पंचायत के लोग स्वागत की तैयारी में जुटे गए।
बजीर दिनेश चौहान, भंडारी रघुवीर सिंह व बीडीसी मेंबर प्रकाश चौहान ने कहा कि इतिहास में पहली बार देवता की प्रवास यात्रा सिरमौर जिले के शिलाई क्षेत्र में पहुंचने से लोगों में उत्साह है। शांठीबिल के बजीर दीवान सिंह राणा, दसऊ खत के स्याणा शूरवीर सिंह चौहान, मशक खत के स्याणा एवं ज्येष्ठ उपप्रमुख चकराता फतेह सिंह चौहान, स्याणा महेंद्र सिंह चौहान, स्याणा मातबर सिंह तोमर व पुजारी भादूराम नौटियाल ने कहा कि देवता की आज्ञा से प्रवास यात्रा के कार्यक्रम में बदलाव किया गया है।
टोंस नदी के दो हिस्से में बंटा शांठीबिल व पांशीबिल क्षेत्र लोक मान्यता एवं परंपरा के अनुसार टोंस नदी के उस पार उत्तरकाशी जनपद के बंगाण क्षेत्र की कोठीगाड पट्टी, पिंगल पट्टी, मासमोर पट्टी, फतेह पर्वत, हिमाचल प्रदेश के शिमला व सिरमौर जनपद का इलाका पांशीबिल क्षेत्र कहलाता है। टोंस नदी के इस ओर बसे शांठीबिल क्षेत्र में देहरादून जनपद के जौनसार-बावर की सभी 39 खतों से जुड़े 363 गांव आते हैं।
13 वर्ष से शांठीबिल क्षेत्र की प्रवास यात्रा पर है देवता
सदियों पुरानी देव परंपरा एवं लोक मान्यता के अनुरूप वर्ष 2012 में बंगाण क्षेत्र के ठडियार मंदिर से चालदा महासू की प्रवास यात्रा सबसे पहले शांठीबिल क्षेत्र के प्रसिद्ध महासू देवता मंदिर हनोल पहुंची थी। इसके बाद देवता बरवांश की पूजा-अर्चना को निर्धारित प्रवास यात्रा के चलते कोटी-बावर, मुंधोल, थंगाड, जनोग, थरोच, कोटी-कनासर, मोहना, समाल्टा व दसऊ मंदिर में विराजमान रहे।
पौराणिक परंपरा के चलते दसऊ मंदिर से देवता की प्रवास यात्रा का कार्यक्रम कांडोई भरम के मशक गांव में निर्धारित है। मशक में एक वर्ष तक बरवांश की पूजा-अर्चना के बाद देवता लखौ खत के किस्तुड व देवघार खत के रडू गांव में प्रवास पर रहते हैं।
दो साल तक बरवांश की पूजा के बाद देवता हनोल मंदिर में रात्रि प्रवास के बाद टोंस नदी के उस पार पांशीबिल क्षेत्र में प्रस्थान करते हैं। शांठीबिल से पांशीबिल क्षेत्र में देवता की प्रवास यात्रा का क्रम इसी तरह चलता रहता है। इस बार दसऊ मंदिर से सिरमौर के शिलाई-पश्मी में प्रस्तावित देवता की प्रवास यात्रा से सदियों पुरानी परंपरा बदलने से नए अध्याय की शुरुआत होने जा रही है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।