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उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं लचर, भला कैसे लड़ी जाएगी कोरोना से जंग

पहाड़ी में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। दुरूह पर्वतीय क्षेत्र में पर्याप्त चिकित्सक हैं न स्टाफ। ऐसे में भला वहां कोरोना से कैसे जंग जीती जाएगी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 09:38 AM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 09:38 AM (IST)
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं लचर, भला कैसे लड़ी जाएगी कोरोना से जंग
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं लचर, भला कैसे लड़ी जाएगी कोरोना से जंग

देहरादून, जेएनएन। पहाड़ में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। दुरूह पर्वतीय क्षेत्र में पर्याप्त चिकित्सक हैं, न स्टाफ। वहीं, चिकित्सा उपकरणों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में पहाड़ में कोरोना के बढ़ते मामले चिंता बढ़ा रहे हैं। जिस तेजी से कोरोना वायरस ने पहाड़ी जिलों में अपनी जद में लिया है, स्वास्थ्य सेवाओं के मोर्चे पर भी बड़ी चुनौती आन पड़ी है, क्योंकि राज्य गठन से अब तक सरकारें पहाड़ में स्वास्थ्य का मुकम्मल ढांचा ही तैयार नहीं कर पाई हैं।

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उत्तराखंड के दुरूह पर्वतीय क्षेत्रों में अभी भी स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का भी अभाव है। स्वास्थ्य सेवाएं लचर होने से छोटी-छोटी बीमारी में भी लोगों को सैकड़ों किलोमीटर का चक्कर काटना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में न केवल विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी है, बल्कि जीवन रक्षक प्रणाली भी उतनी मजबूत नहीं है। ऐसे में पहाड़ में कोरोना की बढ़ती रफ्तार ने चिंता बढ़ा दी है।

कुछ दिन पहले तक सरकार भी दम भर रही थी कि पहाड़ के सात जिले कोरोना संक्रमण से अछूते हैं। यही नहीं, पौड़ी और अल्मोड़ा ने भी वक्त पर इस मुसीबत से पार पा लिया। पर अब कोरोना सभी पर्वतीय जिलों में दस्तक दे चुका है। हर दिन मरीजों की संख्या बढ़ रही है। उस पर आने वाले दिनों में खतरा और भी बढ़ सकता है। क्योंकि अन्य राज्यों से वापसी के लिए 2.47 लाख लोगों ने पंजीकरण कराया हुआ है। जिनमें अभी 1.54 लाख ही लौटे हैं। यानि अगले कुछ दिनों में पहाड़ में आवागनम और बढ़ जाएगा।

कोरोना से लड़ाई में पिछले ढाई माह के भीतर सरकार ने प्रदेशभर में संसाधन जुटाए जरूर हैं, पर यह अब भी नाकाफी दिख रहे हैं। आइसीयू, वेंटिलेटर आदि की उपलब्धता अब भी सीमित है। गढ़वाल मंडल की बात करें तो यहां के पांच पर्वतीय जिलों यानि उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी व पौड़ी गढ़वाल में मौजूदा समय में 49 आइसीयू बेड हैं। जबकि कोरोना के लिए तकरीबन 800 बेड आरक्षित बताए गए हैं। यह सोचकर जरूर मन को तसल्ली दी जा सकती है कि अभी तक ठीक हुए ज्यादातर मरीजों को आइसीयू या वेंटिलेटर की जरूरत नहीं पड़ी है।

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दुकान खोलता रहा होम क्वारंटाइन व्यक्ति, मुकदमा दर्ज

इनकम टैक्स वाली गली में रहने वाले सिद्धनाथ गौतम परिवार सहित 12 मई को जालंधर से देहरादून आए थे। उनको होम क्वारंटाइन किया गया था। इंस्पेक्टर मणिभूषण श्रीवास्तव ने बताया शिकायत मिली कि जालंधर से आने के बाद से ही अपनी दुकान खोलते रहे व लगातार क्षेत्र में घूमते रहे। जांच में शिकायत सही पाए जाने पर आरोपित के विरुद्ध महामारी और आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।

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