Cantonment Board Election: चुनाव रद, देहरादून छावनी परिषद उम्मीदवारों के सपने चकनाचूर
Cantonment Board Election दरअसल कैंट बोर्डों का कार्यकाल पांच साल का होता है। यह कार्यकाल फरवरी 2020 में पूरा हो गया था। अब छावनी परिषद में सभासद बनने की उम्मीद संजोए जनप्रतिनिधियों को बड़ा झटका लगा है।
जागरण संवाददाता, देहरादून: Cantonment Board Election: छावनी परिषद में सभासद बनने की उम्मीद संजोए जनप्रतिनिधियों को बड़ा झटका लगा है। यहां पिछले एक साल से विकास की बागडोर वैरी बोर्ड के हाथ है। चुनाव रद होने के कारण अभी यही व्यवस्था चलती रहेगी।
दरअसल, कैंट बोर्डों का कार्यकाल पांच साल का होता है। यह कार्यकाल फरवरी 2020 में पूरा हो गया था, लेकिन चुनाव न होने के कारण निर्वाचित बोर्ड का कार्यकाल दो बार, छह-छह माह के लिए बढ़ाया गया। वहीं, बीते साल फरवरी में वैरी बोर्ड अस्तित्व में आ गया। बीती दस फरवरी को वैरी बोर्ड को एक साल पूरा हो चुका है।
वैरी बोर्ड को तीसरी बार एक्सटेंशन
इस बीच रक्षा मंत्रालय ने वैरी बोर्ड को तीसरी बार एक्सटेंशन दिया था, पर फिर एकाएक चुनाव की घोषणा कर दी। वैरी बोर्ड में जनता की नुमाइंदगी नाममात्र की है। ऐसे में जनता से जुड़ी समस्याओं की प्रभावी पैरवी बोर्ड के समक्ष ठीक ढंग से नहीं हो पाती है।
चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद सभी छावनी क्षेत्रों में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई थी। अभी तक चुनाव लड़ते आए जनप्रतिनिधियों समेत कई अन्य लोग ने भी जनता के साथ संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया था।
निकट भविष्य में अपनी दावेदारी को लेकर आश्वस्त दिख रहे नेताओं ने प्रचार-प्रसार के नाम पर अच्छी खासी धनराशि भी खर्च करनी शुरू कर दी थी। पर चुनाव रद होने से उनकी उम्मीद पर पानी फिर गया है।
सिविल क्षेत्रों का निकायों में विलय तो नहीं वजह
चुनाव रद होने के वास्तविक कारण क्या हैैं, इसकी आधिकारिक जानकारी अभी नहीं मिल पाई है। पर यह माना जा रहा है कि कैंट बोर्ड के नगर निकायों से सटे सिविल क्षेत्रों को संबंधित निकाय में जोडऩे की कवायद इसकी मुख्य वजह हो सकती है।
तंगहाली के चलते कैंट बोर्ड स्थानीय लोग को मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। इसलिए कैंट क्षेत्र के लोग समीपस्थ निकायों में विलय चाहते हैैं। बता दें, रक्षा मंत्रालय ने कैंट बोर्ड के सिविल क्षेत्रों का समीपस्थ निकायों में विलय को लेकर एक प्रस्ताव तैयार किया था।
जिस पर हिमाचल के योल कैंट बोर्ड से क्रियान्वयन भी शुरू हो गया है। इस बीच अचानक चुनावों की घोषणा से निकायों में विलय की आस लगाए बैठे कैंट बोर्ड के निवासियों को झटका लगा था। हिमाचल मे ंचुनाव बहिष्कार तक के स्वर उठने लगे थे।
अतिक्रमण, अवैध निर्माण पर आदेश भी बना गले की फांस
कैंट क्षेत्र में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सरकारी भूमि पर अतिक्रमण, अवैध निर्माण करने वालों के नाम मतदाता सूची से बाहर किए जाने हैैं। अलग-अलग कैंट क्षेत्रों में ऐसे मतदाताओं का यह आंकड़ा काफी बड़ा है। जिसका विभिन्न राज्यों में विरोध भी होने लगा है।
खासकर उन पांच राज्यों में जहां आगामी नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां न कांग्रेस इसके पक्ष में है और न ही कांग्रेस। ऐसे में यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंचा। पीएमओ ने रक्षा मंत्रालय को तमाम परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए चुनाव पर पुन: विचार करने की बात कही थी।
उपाध्यक्ष के लिए सीधा चुनाव!
कैंट बोर्ड के चुनाव टलने का कारण उपाध्यक्ष पद के लिए सीधे चुनाव भी एक वजह माना जा रहा है। माना जा रहा है कि चुनाव नियमावली में संशोधन के बाद बोर्ड में उपाध्यक्ष की शक्तियां बढ़ाई जा सकती हैं। अब तक उपाध्यक्ष का चुनाव सभासद करते हैं। रक्षा मंत्रालय नेे एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव मांगे थे, जिसमें उपाध्यक्ष का चुनाव वार्ड सदस्यों की तरह सीधे जनता से कराने की पुरजोर वकालत की गई थी।