देहरादून में बिल्डर दिखा रहे आलीशान आशियानों का सब्जबाग, लेकिन हकीकत बिल्कुल जुदा
उत्तराखंड में बिल्डरों की मनमानी जारी है जिससे खरीदार परेशान हैं। रेरा में 600 परियोजनाएं पंजीकृत हैं लेकिन केवल 170 को ही कार्यपूर्ति प्रमाण पत्र मिला है। बिल्डर ब्रोशर में किए गए वादों से मुकर रहे हैं सुविधाओं में कटौती कर रहे हैं। रेरा ने जुर्माना तो लगाया है लेकिन खरीदारों को राहत नहीं मिली है। बिल्डरों पर जुर्माना लगाने की जरूरत है ताकि इस प्रवृत्ति को रोका जा सके।

सुमन सेमवाल, जागरण देहरादून। लोग जीवनभर की खून-पसीने की कमाई लगाकर एक अदद आशियाने का ख्वाब देखते हैं और बिल्डर सपनों के सौदागर बनकर खूब सब्जबाग दिखाते हैं। रंगीन ब्रोशर में नजर आने वाले फ्लैट और विला वास्तव में सपनों का घरौंदा नजर आते हैं। लेकिन, जब आवासीय परियोजना आकार लेने लगती है तो वह धीरे-धीरे धरातल से जुदा नजर आने लगती है।
ब्रोशर में बताई गई सुविधाओं में कटौती कर दी जाती है और फ्लैट आदि पर कब्जे का लंबा इंतजार भी हसीन सपनों को कड़वी हकीकत में तब्दील करने लगता है। बिल्डरों की मनमानी के आंकड़े उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी के रिकार्ड में भी दर्ज हैं।
कहने को प्रदेश में 600 के करीब रियल एस्टेट परियोजनाओं का पंजीकरण कराया गया है, जिसमें अकेले देहरादून में ही 240 से अधिक परियोजना पंजीकृत हैं। लेकिन, कंप्लीशन सर्टिफिकेट (कार्यपूर्ति प्रमाण पत्र) सिर्फ 170 के करीब बिल्डरों ने ही प्राप्त किए हैं। इस प्रमाण पत्र के बिना परियोजनों को किसी भी दशा में पूर्ण नहीं माना जा सकता है।
यह तो रही बिल्डरों की लेटलतीफी की बात। फ्लैट और विला खरीदारों को कब्जे के लिए तरसाने वाले बिल्डर ब्रोशर के हसीन ख्वाब से कोसों दूर सुविधाओं पर भी जमकर कैंची चला रहे हैं। ताजा, मामला जैमिनी पैकटेक की सेरेन ग्रीन्स और इससे जुड़े ओकवुड अपार्टमेंट्स का है।
सेरेन ग्रीन्स की विला परियोजना बनकर तैयार है, लेकिन आज तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) नहीं बनाया जा सका है। पर्यावरण संरक्षण के लिए सीधे तौर पर जबाबदेह उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी इस तरह की गंभीर अनदेखी के प्रति हाथ पर हाथ बांधे नजर आता है। जिससे बिल्डरों को मनमानी का हौसला मिलता है और फ्लैट खरीदार उपेक्षा का शिकार रहते हैं।
हालांकि, जैमिनी पैकटेक कंपनी की तमाम गड़बड़ी पर रेरा ने लंबे इंतजार के बाद 05 लाख रुपये का जुर्माना जरूर लगाया है, लेकिन खरीदारों के हित की पूर्ति अब भी नहीं की जा सकी है।
बिल्डरों को जुर्माने का भी भय नहीं
बिल्डरों की मनमानी की शिकायत जब रेरा में दर्ज कराई जाती है तो तमाम मामलों में जुर्माना लगाया जाता है। फ्लैट आदि खरीदारों को ब्याज सहित रकम लौटाने का आदेश दिया जाता है।
अब तक रेरा बिल्डरों पर 83 करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना लगाने के साथ ही रकम वापसी का आदेश जारी कर चुका है। हालांकि, वसूली की बात की जाए तो यह आंकड़ा 30 करोड़ रुपये से भी कम है। यहां तक कि रेरा ऐसे बिल्डरों की आरसी जारी करवाने में भी प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।
भारी भरकम जुर्माना लगाया जाना जरूरी
रेरा के पूर्व अध्यक्ष रबिंद्र पंवार के अनुसार बिल्डरों पर भारी भरकम जुर्माना लगाया जाना जरूरी है। तभी मनमानी की यह प्रवृत्ति दूर होगी। इसके अलावा एक्ट में दिए गए प्रविधानों का सख्ती से पालन कराने की जरूरत है। देखने में यह आता है कि बिल्डरों को नियमों का पाठ पढ़ाने के मामले में विकास प्राधिकरण और रेरा अलग अलग दिशा में खड़े नजर आते हैं।
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