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    प्यार में खो रहे देहरादून के 15 से 18 साल के युवा, हो रहे बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर का शिकार

    Updated: Wed, 26 Nov 2025 02:46 PM (IST)

    देहरादून में 15 से 19 वर्ष के युवा बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (बीपीडी) का शिकार हो रहे हैं, जिसके कारण रिश्तों में अस्थिरता और खालीपन महसूस होता है। मनोचिकित्सक डॉ. निशा सिंगला के अनुसार, इंटरनेट मीडिया के माध्यम से जुड़े युवा बिना मिले ही गहरा लगाव महसूस करते हैं और परिवार के विरोध करने पर घर छोड़ने तक को तैयार हो जाते हैं। अभिभावकों को बच्चों में ऐसे लक्षण दिखने पर सतर्क रहने की सलाह दी गई है।

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    जिला चिकित्सालय में महीने में पहुंच रहे पांच से सात मरीज। प्रतीकात्‍मक

    सुमित थपलियाल, देहरादून। रिश्तों में अस्थिरता, खुद को खालीपन महसूस करना और आवेग कभी-कभी खुद को नुकसान पहुंचाना। जिसे बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के रूप में जानते हैं। जिला अस्पताल (कोरोनेशन) में इस मानसिक बीमारी से जूझने वाले महीने में पांच से सात मरीज पहुंच रहे हैं। इनमें 15 से 19 वर्ष के आयुवर्ग वाले अधिक संख्या में हैं। जिनकी काउंसिलिंग लगातार चल रही है। साथ ही मनोचिकित्सक अभिभावकों से इस तरह के लक्षण दिखाए देने पर सतर्क रहने की अपील कर रहे हैं।

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    चिकित्सकों के अनुसार, मस्तिष्क के तीन हिस्सों में एमिग्डाला, हिपोकैंपस और प्रेफंटल कार्टेक्स में मौजूद सर्किट जब असंतुलित होते है तो ऐसी स्थिति में बार्डर पर्सनैलिटी डिसआर्डर नाम से मानसिक विकार पैदा होता है। जिससे भावनाएं और विचार नियंत्रण खो देते है। इसमें कुछ ही दिनों में ही किसी भी व्यक्ति पर आंख बंद भरोसा करने लगता है, इसके बाद लगाव इतना बढ़ जाता है कि उस व्यक्ति के लिए कुछ भी कर सकता है।

    जिला अस्पताल की मनोचिकित्सक डा. निशा सिंगला का कहना है कि बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर मानसिक विकार ग्रसित व्यक्ति की भावनाओं और विचारों को अनियंत्रित कर देता है। यह किसी भी उम्र वाले को हो सकता है। लेकिन, वर्तमान में जो उनके पास मरीज पहुंच रहे हैं वे नौंवी से लेकर ग्रेजुएशन प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राएं हैं। उनके पास जो मामले आए उसमें देखा गया कि अधिकांश मामले इंटरनेट मीडिया के माध्यम से जुड़े हैं।

    मरीज कभी भी अपने साथी से मिला नहीं लेकिन उस पर इतना भरोसा हो गया कि वह परिवार से लड़ने झगड़ने और घर छोड़ने तक तैयार हो जाता है। स्वजन कुछ कहें तो खुद को नुकसान पहुंचा देता है। अभिभावकों को यदि बच्चों में इस तरह के लक्षण दिखाई देते हैं तो सतर्क रहें। उन्हें तनाव मैनेजमेंट की तकनीक बताएं, भावना और गुस्सा पर नियंत्रित करना सिखाएं।

    केस-1
    एक लड़की ने इंटरनेट मीडिया पर लड़के से बातचीत की और कुछ ही दिनों में बिना मिले प्यार हो गया। लेकिन, जब अभिभावकों ने रोका तो उसने अपनी इस तरह हालात बना दी कि जैसी गंभीर बीमार पड़ गई हो। खाना खाना तक छोड़ दिया। मां पिता से नहीं रहा गया तो वापस फोन दिया। फिर उन्हीं लड़कों से इस तरह भावनात्मक बातें करती रहीं कि उनके मां पिता खाना नहीं देते। घर में बंद कर देते हैं। रोक टोक करते हैं। इसलिए उसे खुले में जीना है। वह इसके लिए कुछ भी कर सकती हैं।

    केस-2
    एक लड़के को इंटरनेट मीडिया पर दिल्ली की युवती से प्यार हो गया। बात सात जन्म निभाने तक पहुंची। घर वालों को पता नहीं चला तो एक दिन लड़का घर से भागने को तैयार हो गया। इस बीच बात घरवालों तक पहुंची तो लड़का जिद पर अड़ी रही उसे से रिश्ता करना है। घरवालों ने जांच पड़ताल करने की बात कही तो वह खुद को नुकसान पहुंचाने की बात करने लगा।