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भाजपा सरकार के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा पंचायत चुनाव

उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से सत्तासीन भाजपा सरकार के लिए आगामी पंचायत चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। इस सरकार के लिए यह पहला चुनाव है जिसे वह अपने दमखम पर लड़ेगी।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 08 May 2019 08:54 AM (IST)Updated: Wed, 08 May 2019 08:33 PM (IST)
भाजपा सरकार के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा पंचायत चुनाव
भाजपा सरकार के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा पंचायत चुनाव

देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से सत्तासीन भाजपा सरकार के लिए आगामी पंचायत चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। इस सरकार के लिए यह पहला चुनाव है, जिसे वह अपने दमखम पर लड़ेगी। जनता के बीच पकड़ का यह सरकार की प्रतिष्ठा एवं प्रतिभा का असल मायने में पैमाना भी माना जाएगा। 

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वजह यह कि अभी तक चुनावों में भाजपा की सफलता के पीछे मोदी फैक्टर ने अहम भूमिका निभाई। माना जा रहा कि यदि लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक विजय मिली तो इसका सियासी लाभ उठाने के मद्देनजर सरकार सितंबर में पंचायत चुनाव (हरिद्वार जिले को छोड़कर) करा सकती है।

मोदी लहर पर सवार भाजपा ने 2014 में राज्य की पांचों लोकसभा सीटों पर परचम फहराया था। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया। उसने विस की 70 में से 57 सीटों पर कब्जा जमाया तो इसमें भी मोदी फैक्टर ने अहम भूमिका निभाई। 

उत्तराखंड में सरकार बनने के बाद हुए निकाय चुनावों में भी भाजपा को मिली अच्छी सफलता के पीछे भी कहीं न कहीं मोदी फैक्टर का ही राज छुपा हुआ था। यही नहीं, राज्य में लोकसभा चुनाव भी पार्टी ने मोदी रथ पर सवार होकर ही लड़ा। 

अब राज्य में छोटी सरकार कही जाने वाली त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव होने हैं। हरिद्वार जिले को छोड़कर प्रदेश के शेष 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायतों (ग्राम, क्षेत्र व जिला) का कार्यकाल जुलाई में खत्म हो रहा है। ऐसे में सितंबर में संभावित माने जा रहे पंचायत चुनाव मौजूदा सरकार के लिए बड़े इम्तिहान से कम नहीं है। उसके सामने विधानसभा व निकाय चुनाव जैसा प्रदर्शन पंचायत चुनाव में दोहराने की चुनौती है। 

प्रदेश में सत्ता संभालने के बाद यह पहला चुनाव होगा, जो विशुद्ध रूप से राज्य सरकार के दमखम पर लड़ा जाएगा। इससे सीधे तौर पर सरकार की प्रतिष्ठा जुड़ी है तो यह उसके राजनीतिक कौशल की परीक्षा भी होनी है। यह ठीक है कि पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जाते, मगर इनके जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में राज्य सरकार के कामकाज पर जनता मुहर लगाएगी। ऐसे में भाजपा सरकार को ही अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरना है। 

जानकारों की मानें तो भाजपा सरकार बनने के बाद अभी तक हुए चुनावों में मोदी फैक्टर ने बड़ा काम किया। यदि इस बार भी लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक सफलता मिली तो वह पंचायत चुनावों में इसका लाभ उठाने से पीछे नहीं रहेगी। ऐसे में वह सितंबर में ही चुनाव करा सकती है। यह भी माना जा रहा कि यदि नतीजों में थोड़ी भी ऊंच-नीच हुई तो पंचायत चुनाव आगे भी खिसक सकते हैं। 

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