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    वीरभद्रेश्वर मंदिर में भगवान शिव के भैरव स्वरूप के दर्शन

    By BhanuEdited By:
    Updated: Mon, 31 Jul 2017 08:56 PM (IST)

    ऋषिकेश में पशुलोक के समीप गंगा व रंभा नदी के तट पर स्थित प्राचीन श्री वीरभद्रेश्वर मंदिर भगवान शिव के भैरव स्वरूप का प्रतीक है।

    वीरभद्रेश्वर मंदिर में भगवान शिव के भैरव स्वरूप के दर्शन

    ऋषिकेश, [जेएनएन]: ऋषिकेश में पशुलोक के समीप गंगा व रंभा नदी के तट पर स्थित प्राचीन श्री वीरभद्रेश्वर मंदिर भगवान शिव के भैरव स्वरूप का प्रतीक है। मंदिर का संचालन निरंजनी अखाड़ा हरिद्वार करता है। यह मंदिर जहां पौराणिक महत्व रखता है, वहीं यह स्थान पुरातत्व की दृष्टि से भी प्रसिद्ध है। ऐसे में यहां भगवान शिव के भक्तों का तांता लगा रहता है। श्रावण मास में तो स्थानीय लोगों के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त यहां आकर भगवान शिव की आराधना करते हैं। 

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    मंदिर का इतिहास  व धार्मिक महत्ता 

    वीरभद्र भगवान शिव का भैरव स्वरूप है। स्कंदपुराण के केदारखंड में वर्णित कथानुसार शिव ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ को ध्वस्त करने के लिए अपनी जटा को पटक कर वीरभद्र की उत्पत्ति की थी। जब वीरभद्र का क्रोध शांत नहीं हुआ, तब भगवान शिव ने इसी स्थान पर वीरभद्र का क्रोध शांत किया था और वीरभद्र ने ही यहां पर शिवलिंग की स्थापना की थी। 

    जो वीरभद्रेश्वर महादेव के नाम से प्रचलित है। वीरभद्रेश्वर मंदिर उत्तर कुषाण कालीन इंटिकाओ से निर्मित है, जिसके भद्रपीठ पर शिवङ्क्षलग विराजमान है। मंदिर के समीप ही रंभा नदी बहती है। पुराणों के अनुसार देवी सती के यज्ञ में भस्म हो जाने के कारण आक्रोशित शिव के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान इंद्र ने स्वर्गलोक की अप्सरा रम्भा को यहां भेजा था, जिसे शिव ने भस्म कर दिया। जो कालांतर में भी श्यामल रंग में बहती है। 

    विशेषता

    महाशिवरात्री पर वीरभद्र महादेव मंदिर में विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है। यह मंदिर ऐतिहासिक सभ्यता से भी जुड़ा हुआ है। एनसी घोष ने वर्ष 1973-75 के मध्य यहां खुदाई कराई थी, जिससे पता चला कि इस स्थान पर 100 ई. से लेकर 800 ई. के बीच मानव सभ्यता व संस्कृति विद्यमान थी। खुदाई से प्राप्त वस्तुओं से पता चला कि वीरभद्र नामक नगर एक ऐतिहासिक एंव पौराणिक था।

    मंदिर के महंत राजेंद्र गिरी महाराज के मुताबिक यहां दैवीय शक्तियों का वास्तविक रूप से और असीम शांति का अनुभव किया जा सकता है। श्रावण मास में हमेशा ही श्रद्धालुओं की आमद बनी रहती है।

    वीरभद्र महादेव मंदिर समिति के अध्यक्ष अनिल कक्कड़ के अनुसार श्रावण मास व महाशिवरात्री में पूजा व यात्री सुविधाओं के लिए समिति द्वारा सभी व्यवस्थाएं की जाती हैं। यह एक दिव्य मंदिर हैं, यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना अवश्य पूरी होती है। 

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