‘भागीरथी की संवेदनशीलता को पहचानना होगा’, पर्यावरणविद् बोले- जितना नजरअंदाज करेंगे, उतनी ही बड़ी आपदा की संभावना
लेख में कहा गया है कि गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर कई गाँव ग्लेशियरों के मलबे पर बसे हैं जिससे वे बाढ़ के प्रति संवेदनशील हैं। धराली गाँव जो पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है में अनियंत्रित निर्माण और जनसंख्या वृद्धि के कारण आपदा का खतरा बढ़ गया है। भागीरथी नदी पर बनी जल विद्युत परियोजनाएँ भी बाढ़ के समय आबादी को प्रभावित करती हैं।

सुरेश भाई। गंगोत्री पहुंचने से पहले लगभग 20 किलोमीटर पर धराली गांव खीर गंगा के मुहाने पर है। यहां लोगों ने अपने घर और होटल बनाए हैं। खीर गंगा भागीरथी में मिलती है, जिसके सामने मुखवा गांव बसा है। यह स्थान हर्षिल के पास है।
निरंतर बढ़ रही पर्यटकों की आवाजाही के कारण यहां बड़े होटल भी बने हैं। इसके आसपास शासन-प्रशासन को आबादी के फैलाव पर नियंत्रण करना चाहिए था। धराली गांव को पर्यटन केंद्र के रूप में जितनी पहचान मिली, उसके अनुसार यहां बढ़ती आबादी की सुरक्षा की तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए था।
चिंताजनक है कि गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग विशेषकर भटवाड़ी से गंगोत्री के बीच लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर चार दर्जन से अधिक गांव ग्लेशियरों के मलबे के ऊपर बसे हैं।
वैज्ञानिकों की नजर में 100 किलोमीटर लंबे भागीरथी जोन को बेहद संवेदनशील माना गया है, जहां हर तरह की गतिविधियों पर नियंत्रण की आवश्यकता है। वर्ष 1978, 2010, 2011, 2012 व 2013 और 2023-24 में भी यहां पर भीषण बाढ़ आ चुकी है।
धराली के अलावा हर्षिल में आर्मी कैंप के ऊपर और सुक्की के गदेरे में भी बादल फटा है। इससे भागीरथी में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। झाला से आगे हर्षिल और धराली के बीच झील बनने की संभावना है। यह बड़े खतरे का सबब बन सकती है।
इस क्षेत्र के आसपास बड़े पैमाने पर वनों के विनाश का रास्ता भी खोला जा रहा है। चौड़ी सड़क बनाने की योजना है। यहां की धारण क्षमता को नजरअंदाज कर अनियंत्रित पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
दुख तब होता है, जब यहां की सक्रिय और छोटी भौगोलिक स्थिति को नजरअंदाज कर दिया जाता है। धराली भी इसी तरह का एक केंद्र है, जहां बहुत कम जगह में अधिक आबादी और बड़े निर्माण के बाद भीषण आपदा ने कहर बरपाया है।
यहां की संवेदनशीलता को जितना नजरअंदाज करेंगे, उससे भविष्य में बड़ी-बड़ी आपदा की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। भागीरथी नदी पर मनेरी भाली प्रथम और द्वितीय जल विद्युत परियोजनाओं के गेट बाढ़ के समय बार-बार खोलने पड़ते हैं।
इसके कारण भागीरथी तट पर बसी हुई आबादी प्रभावित होती रहती है। यह बहुत चिंताजनक है कि छह अगस्त 1978 को भी डबराणी के पास कनोडिया गाड में भीषण बाढ़ आई थी। इसके चलते वहां बहुत बड़ी झील बन गई और तब उत्तरकाशी शहर को खाली करवाना पड़ा था। उस समय भागीरथी नदी के किनारे से काफी दूर आबादी थी।
अब स्थिति यह है कि ज्यादातर लोग नदी के तट पर आकर बस गए हैं। यदि इस समय हर्षिल के पास बनी झील से भी कोई नुकसान की संभावना होती है तो उससे निचले क्षेत्र की आबादी प्रभावित होगी। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए भागीरथी की संवेदनशील को पहचानना समय की आवश्यकता है।
(लेखक पर्यावरणविद् हैं।)
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