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    लाडले को तनाव से दूर रखेगी आपकी 'दोस्ती' की झप्पी, इन बातों पर भी दें ध्यान

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Wed, 27 May 2020 05:05 PM (IST)

    लंबे समय से दोस्तों से न मिलने और नई चीजें न करने से बच्चों को मानसिक अवसाद घेरने लगा है। मनोचिकित्सकों के पास लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।

    लाडले को तनाव से दूर रखेगी आपकी 'दोस्ती' की झप्पी, इन बातों पर भी दें ध्यान

    देहरादून, जेएनएन। स्वस्थ शरीर का निर्माण स्वस्थ मन से होता है। स्वस्थ मन के लिए जरूरी है, नवाचार, प्रयोग, हमउम्र लोगों से मिलना, उनसे बातचीत करना, अपने आसपास की चीजों को नजदीक से जानना आदि। लेकिन, लॉकडाउन ने लोगों को इस सबसे काफी दूर कर दिया है। खासकर पढ़ाई कर रहे 14 से 21 साल के किशोरों और युवाओं को।

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    लंबे समय से दोस्तों से न मिलने और नई चीजें न करने से उन्हें मानसिक अवसाद घेरने लगा है। मनोचिकित्सकों के पास लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। रोजाना कई अभिभावक अपने बच्चों के बदलते व्यवहार की शिकायत लेकर उनके पास पहुंच रहे हैं। ऐसे में मनोचिकित्सकों की एक ही सलाह है कि अभिभावक बच्चों के साथ दोस्त की तरह पेश आएं। उनकी हर परेशानी को साझा करें। बच्चों को हर बात पर टोके नहीं बल्कि यह जानने की कोशिश करें कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है।

    अभिभावकों की बात

    पटेलनगर निवासी रेशु बताती हैं कि उनका बेटा 11वीं में पढ़ता है। आजकल उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ गया है। कुछ पूछो तो कोई जवाब नहीं देता और ज्यादा पूछने पर झगड़ने लगता है। पूरे दिन अपने में ही खोया रहता है। किसी बात के लिए मना करो तो रूठ जाता है। हमेशा सुस्त रहता है।

    सुभाषनगर निवासी संगीता बताती हैं कि उनकी बेटी की इन दिनों ऑनलाइन क्लास घर मे चल रही है, लेकिन क्लास खत्म होते ही वो उदास हो जाती है और सवाल तक हल नहीं कर पाती। कई बार रात को उठ जाती है। डाइट भी कम हो गई है। पहले सुबह और शाम फल खा लेती थी, लेकिन अब वो भी छोड़ दिया है। पढ़ाई के बारे में पूछने पर चिल्लाती है। दोस्तों से फोन पर बात करके शांत हो जाती है।

    मनोचिकित्सकों की सलाह

    न्यूरो साइक्लॉजिस्ट डॉ. सोना कौशल गुप्ता बताती हैं कि स्कूल बंद होने और दोस्तों से मिलने की मनाही के कारण बच्चे घर में बोर हो रहे हैं। घर पर अभिभावक पढ़ाई का दबाव बनाते हैं तो उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है और वह गुमसुम रहने लगते हैं। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि बच्चे के साथ अच्छे से पेश आएं, उन्हें धमकाएं नहीं। बच्चे फोन पर दोस्तों से बात करना चाहें तो उन्हें करने दें। ऑनलाइन क्लास के वक्त बच्चे को अकेला छोड़ दें।

    मनोचिकित्सक डॉ. वीना कृष बताती हैं कि यह ऐसी उम्र है जब अभिभावकों को बच्चों की छोटी-छोटी बातें नोटिस करनी चाहिएं। अगर वह मायूस हैं तो उसके पीछे की वजह को जानने की कोशिश करें। बच्चों की पढ़ाई के साथ उनसे अच्छा बर्ताव करें। एक दोस्त की तरह फीडबैक भी लेते रहें। समय से जागने, सोने और खाने का नियम जारी रखें। खानपान को लेकर बच्चों पर ध्यान दें।

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    इन बातों का रखें विशेष ख्याल

    • बच्चों से बार-बार पढ़ाई के बारे में न पूछें अगर कभी-कभार वे ऑनलाइन गेम खेल रहे हैं तो मना न करें।
    • अभिभावक बच्चों के सामने पुरानी बातें न दोहराएं। उनसे दोस्त जैसा बर्ताव करें, जिससे वह सब शेयर कर सके।
    • बच्चे के खाने-पीने पर ध्यान दें। जंक फूड की जगह हेल्दी फूड दें।
    • बच्चे सुबह-शाम इंडोर गेम खेलें या शारीरिक व्यायाम करें। इससे शारीरिक और मानसिक तौर पर फिट रहेंगे।
    • बच्चों को समझाएं कि जैसे परीक्षा का दौर निकल जाता है, वैसे कोरोनाकाल भी निकल जाएगा।
    • अभिभावक बच्चों के व्यवहार में बदलाव को नजरअंदाज न करें। उनके साथ प्यार से पेश आएं।
    • बच्चों पर परिणाम के लिए दबाव न बनाएं, बल्कि उनकी मेहनत की सराहना करें। 

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