नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित Badrinath Dham, भगवान शिव और मां पार्वती से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
Badrinath Dham Door Open बदरीविशाल के इस धाम के इतिहास को लेकर भी भक्तों के बीच कई मान्यताएं व कथाएं प्रचलित हैं। नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच मंदिर नीलकंठ पर्वत की पृष्ठभूमि में स्थित है।
जागरण संवाददाता, देहरादून : Badrinath Dham : भगवान बदरीविशाल के धाम बदरीनाथ के कपाट छह माह के लिए खोल दिए गए हैं। नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच मंदिर नीलकंठ पर्वत की पृष्ठभूमि में स्थित है। बदरीविशाल के इस धाम के इतिहास को लेकर भी भक्तों के बीच कई मान्यताएं व कथाएं प्रचलित हैं।
अलग-अलग नामों से जाना गया बदरीनाथ
बदरीनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनन्दा नदी के किनारे स्थित है। बदरीनाथ को अलग-अलग कालों में अलग-अलग नामों से जाना गया है। स्कन्दपुराण में बद्री क्षेत्र को मुक्तिप्रदा कहा गया है। त्रेता युग में इस क्षेत्र को योग सिद्ध कहा गया। द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे मणिभद्र आश्रम या विशाला तीर्थ कहा गया है। वहीं, कलियुग में इसे बद्रिकाश्रम अथवा बदरीनाथ कहा जाता है।
यहां पर विष्णु भगवान के रूप बद्रीनारायण की प्रतिमा स्थापित है। यह मूर्ति 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी है और शालिग्राम से निर्मित है। माना जाता है कि इस मूर्ति को आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में पास में स्थित नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को भगवान विष्णु की आठ स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं में से एक भी माना जाता है।
भगवान विष्णु ने लिया बच्चे का अवतार
शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु काफी लंबे समय से शेषनाग पर विश्राम कर रहे थे। तभी नारद ने उन्हें जगा दिया। नारद जी ने भगवान से कहा आप लंबे समय से विश्राम कर रहे हैं। इससे लोगों के बीच आपका उदाहरण आलस के लिए दिया जा रहा है।
यह सुनकर भगवान विष्णु तपस्या के लिए एक शांत स्थान ढूंढने निकल पड़े। वह हिमालय की ओर चल पड़े, तब उन्होंने बदरीनाथ को देखा। जब विष्णु वहां पहुंचे तो उन्होंने एक कुटिया में भगवान शिव और माता पार्वती को विराजमान देखा।
इसके बाद भगवान विष्णु ने एक बच्चे का अवतार लिया और बदरीनाथ के दरवाजे पर रोने लगे। बच्चे के रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती ने बच्चे को गोद में उठा लिया और घर के अंदर ले आईं। जब बच्चा से गया तो भगवान शिव और माता पार्वती पास के एक कुंड में स्नान करने चले गए।
जब वह वापस आए तो देखा कि कुटिया का दरवाजा अंदर से बंद था। माता पार्वती उस बच्चे को जगाने की कोशिश की, लेकिन द्वार नहीं खुला। तब शिव और पार्वती वहां से चले गए और भगवान विष्णु ने यहां वास कर लिया।
माता लक्ष्मी ने धर लिया था बद्री वृक्ष का रूप
बदरीनाथ की एक और कथा प्रचलित है। जिसके मुताबिक एक बार भगवान विष्णु तपस्या करने के लिए हिमालय चले गए। जब वह ध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो वहां बहुत बर्फ गिरने लगी। इस हिमपात में भगवान विष्णु ढक चुके थे। उनकी ऐसी हालत देख माता लक्ष्मी परेशान हो गईं और भगवान विष्णु के पास जाकर बद्री वृक्ष का रूप धर लिया।
तपस्या के दौरान भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और बर्फ से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने भी कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। जिस पर भगवान ने उनसे कहा कि तुमने भी मेरे बराबर तपस्या की है। आज से इस धाम में मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जाएगा। आज से मुझे बद्री के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जाएगा।
आदि शंकराचार्य ने किया था स्थापित
वहीं यह भी कहा जाता है कि 10,279 फीट की ऊंचाई पर स्थित बदरीनाथ मंदिर को आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। आदि शंकराचार्य ने नौवीं शताब्दी में बदरीनाथ को तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया था।
उन्होंने अलकनंदा नदी में बद्रीनारायण की छवि की खोज की और तप्त कुंड के पास गुफा में उस मूर्ति को स्थापित किया। सोलहवीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को वर्तमान मंदिर में स्थानांतरित करवाया था। सत्रहवीं शताब्दी में गढ़वाल के राजाओं ने मंदिर का विस्तार कराया था।
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