खतरे की घंटी! आर्कटिक में सिकुड़ चुकी 25 करोड़ एकड़ बर्फ, पृथ्वी के लिए गंभीर चेतावनी
देहरादून में वन एवं वन्यजीव में नागरिक विज्ञान की भूमिका पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। वन्यजीव संस्थान के निदेशक ने आर्कटिक में तेज़ी से पिघलती बर्फ को पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी बताया। उन्होंने कहा कि 25 करोड़ एकड़ बर्फ पिघल चुकी है जिससे ध्रुवीय जीवों का अस्तित्व खतरे में है। आधुनिक मनुष्य की गलत धारणाओं को पर्यावरणीय संकट का कारण बताया गया।

जागरण संवाददाता, देहरादून। अब तक आर्कटिक क्षेत्र में लगभग 25 करोड़ एकड़ बर्फ सिकुड़ चुकी है, जिससे ध्रुवीय भालू, सील, व्हेल आदि जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यह पृथ्वी के लिए गंभीर चेतावनी है।
यह बात भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक डा गोविंद सागर भारद्वाज ने केंद्रीय अकादमी राज्य वन सेवा देहरादून में ''वन एवं वन्यजीव में नागरिक विज्ञान की भूमिका'' विषय पर आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के उदघाटन के अवसर पर कही।
बुधवार से शुरू हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डा भारद्वाज ने आर्कटिक क्षेत्र में हो रहे तेज परिवर्तनों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। कहा कि इतिहास में पांच बार सामूहिक प्रजाति-विनाश हो चुका है और वर्तमान समय में वायु प्रदूषण व मानवजन्य गतिविधियां इस खतरे को और तेज कर रही हैं।
डा भारद्वाज ने आधुनिक मनुष्य की तीन भ्रांतियों, मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी है, प्रकृति के संसाधन केवल मनुष्यों के लिए हैं और आने वाली पीढ़ियां हर हाल में जीवित रहेंगी को पर्यावरणीय संकट का कारण बताया।
पाठ्यक्रम निदेशक अंकित गुप्ता (वैज्ञानिक सी) ने तीन दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। कहा कि यह कार्यक्रम पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के अन्य हितधारक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित किया जा रहा है।
वहीं, अकादमी के प्रधानाचार्य विक्रम ने कहा कि आज की पीढ़ी मोबाइल और तकनीक के कारण धीरे-धीरे प्रकृति से दूर होती जा रही है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि यदि हमें पर्यावरण बचाना है तो बच्चों को बचपन से ही पेड़-पौधों और पक्षियों से जोड़ना होगा।
यह न केवल पर्यावरण संरक्षण को सुदृढ़ करेगा, बल्कि बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाने और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से बचाने में भी सहायक होगा। प्रशिक्षण में आंध्र प्रदेश, असम, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड सहित विभिन्न राज्यों से लगभग 30 प्रतिभागी, स्कूल एवं कालेज शिक्षक, प्रकृति क्लब समन्वयक, शोधकर्ता तथा स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
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