समान नागरिक संहिता को लागू कर सकते हैं सभी राज्य : एसएन बाबुलकर
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने राज्य में समान नागरिक संहिता लाने की बात कही है। हमारे संविधान में राज्यों को इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। उत्तराखंड सरकार के इस कदम को संविधान की कसौटी पर गलत नहीं साबित किया जा सकता है।

एसएन बाबुलकर : देश संविधान से चलता है, किसी व्यक्ति एवं समूह की इच्छा से नहीं। हम उस समाज में रहते हैं जो संविधान के तहत नियम व कानूनों के अनुसार चलने की प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। संविधान की धारा 245 एवं 246 में केंद्र एवं राज्यों की विधायिका को कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गई है और वे विषय जिन पर केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं, उनको संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित तीन सूचियों में समाहित किया गया है।
इसके अतिरिक्त संविधान के अध्याय चार की धारा-44 और इसके साथ धारा-36 एवं 37 में राज्यों को स्पष्ट रूप से आदेशित किया गया है कि अन्य व्यवस्थाओं के अतिरिक्त राज्य अपने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता का प्रविधान करेंगे। यदि संविधान के इस समादेश को संविधान के प्राक्कथन के साथ पढ़ा जाए तो राज्यों के लिए समान नागरिक संहिता बनाना आवश्यक एवं बाध्यकारी हो जाता है।
संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची के विषय-5 के साथ राज्य सूची के विषय-1 में उन विषयों का उल्लेख किया गया है जिन पर केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारें समान नागरिक संहिता बना सकती हैं। 1985 में शाहबानो केस समेत सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए इस बात पर जोर दिया गया है कि कानून बनाना हमारा नहीं विधायिका का कार्य है।
सामाजिक, राजनीतिक गलियारों में अक्सर कानून एवं संविधान की दुहाई दी जाती है।
आरोप लगाए जाते हैं कि जिम्मेदार सरकारें एवं संस्थाएं संविधान के प्रविधानों की अनदेखी कर रही हैं। लेकिन जब सरकार एवं संस्थाएं संविधान को लागू करने का प्रयास करती हैं, तो निहित स्वार्थ के लिए कुछ लोग लोकहित में उठाए गए कदमों का विरोध करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई निर्णयों में कहा है कि हमारा संविधान जीवंत राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दस्तावेज है। हमारे संविधान में राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को सुनिश्चित करने की बात है। इसकी प्राप्ति के लिए सक्षम कानून लाने की जरूरत है।
सार्वजनिक व व्यक्तिगत विषयों जैसे-विवाह, तलाक, संपत्ति हस्तांतरण, उत्तराधिकार, दत्तक, जनसंख्या नियंत्रण, लोक व्यवस्था, सरकारी योजनाओं का लाभ पाने की योग्यता आदि विषयों के संबंध में सभी नागरिकों के लिए पूरे देश में अथवा प्रदेश में एक ही कानून होना चाहिए। संविधान केंद्र एवं राज्य सरकारों को ऐसी नीति अथवा कानून बनाने की स्पष्ट आज्ञा देता है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में समान नागरिक संहिता कानून बनाने की घोषणा की है। वह स्पष्ट कर चुके हैं कि कानून लाने से पूर्व विधि विशेषज्ञों, सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र के जानकार लोगों की एक अध्ययन समिति बनाई जाएगी, जो सभी पहलुओं पर व्यापक विचार-विमर्श कर अपनी सिफारिश सौंपेगी।
(महाधिवक्ता, उत्तराखंड)
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