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Coronavirus: एम्स ऋषिकेश के निदेशक बोले, कुछ दिनों में खत्म होने वाला नहीं कोरोना वायरस का संक्रमण

एम्स ऋषिकेश के निदेशक पद्मश्री प्रो. रविकांत का कहना है कि कोरोना वायरस का संक्रमण कुछ महीनों में समाप्त होने वाला नहीं है। वास्तविकता यह है कि संक्रमण लंबे समय तक रहेगा।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 03 Apr 2020 11:26 AM (IST)Updated: Fri, 03 Apr 2020 11:26 AM (IST)
Coronavirus: एम्स ऋषिकेश के निदेशक बोले, कुछ दिनों में खत्म होने वाला नहीं कोरोना वायरस का संक्रमण
Coronavirus: एम्स ऋषिकेश के निदेशक बोले, कुछ दिनों में खत्म होने वाला नहीं कोरोना वायरस का संक्रमण

ऋषिकेश, जेएनएन। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के निदेशक पद्मश्री प्रो. रविकांत का कहना है कि कोरोना वायरस का संक्रमण कुछ महीनों में समाप्त होने वाला नहीं है। वैज्ञानिक वास्तविकता यह है कि संक्रमण लंबे समय तक रहेगा। इसलिए कोरोना वायरस को लेकर हमें पूरी सतर्कता बरतनी होगी। हम लॉकडाउन का शब्दश: पालन करके ही अपनी और समाज की सुरक्षा कर सकते हैं।

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प्रो. रविकांत का कहना है कि कोरोना वायरस डिजीज कोविड-19 एक संक्रामक रोग है, जो किसी एक प्रकार के नए विषाणु कोरोना वायरस से आया है। यह पहली बार किसी जानवर से मनुष्य में आया है, इसलिए इसके लिए लोगों में पहले से रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं है। एक या डेढ़ साल बाद हर्ड इम्युनिटी डेवलप हो जाने से हमारी सारी आबादी इससे इम्यून हो जाएगी। तब हम इसे भी सामान्य सर्दी-जुकाम की तरह लेने लगेंगे।

इस समय हम अपने बुजुर्गों और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले पारिवारिक सदस्यों का साथ चाहते हैं तो उनका आइसोलेशन आज ही से जरूरी है। यह गौर करना जरूरी है कि हम इस वायरस को लेकर जितने भी टोटकों से रू-ब-रू हुए हैं, उनकी ओर ध्यान न दें और बार-बार साबुन-पानी से आधा मिनट तक अच्छी तरह हाथ धोएं। साथ ही फिजिकल डिस्टेंसिंग का अधिकाधिक प्रयोग करें।

आसानी से शरीर में पहुंच जाता है सूक्ष्म वायरस

भारतीयों में अत्याधिक इन्फेक्शन के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, यह एक भ्रांति है। कोरोना वायरस एक अत्यंत सूक्ष्म विषाणु है, जो एक बाल के 1700वें हिस्से के बराबर है। इतना सूक्ष्म आकार होने के कारण इसका मानव शरीर में आसानी से प्रवेश हो जाता है। इसलिए यह भी भ्रांति ही है कि चेहरे पर रुमाल बांधकर रखने से इसे रोका जा सकता है।

खतरा बन सकता है मास्क का गलत उपयोग

इन दिनों बाजार में एन-95 और टिपल लेयर सर्जिकल मास्क का अभाव है। लेकिन, जो लोग इसे इस्तेमाल कर रहे हैं, वह इसे अभेद्य कवच न समझें। इन मास्क का उपयोग यदि सही तरीके से नहीं किया गया तो फायदे की बजाय नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। यह भी देखा गया है कि लोग मास्क तो पहन रहे हैं, मगर जरूरत पड़ने पर उसे गले में लटकाकर पानी पीने अथवा एक दूसरे से बात करना जैसे कार्य करने लगते हैं। यदि व्यक्ति किसी संक्रमित मरीज के संपर्क में आता है तो उसकी बूंदें मास्क की सतह पर जमा हो सकती हैं। यदि आप मास्क को बाहर से हाथ से पकड़कर उतारते हैं तो वह आपकी अंगुलियों पर लग जाता है और फिर चेहरे पर हाथ लगाने से नाक, मुंह व आंखों के जरिये शरीर में प्रवेश कर सकता है।

80 प्रतिशत लोगों में नहीं आते लक्षण

कोरोना वायरस के भयावह दुष्प्रभाव को जानकार घबराने की भी जरूरत नहीं। विश्लेषणों से पता चला है कि मुख्यत: 80 प्रतिशत लोगों में इस वायरस के संक्रमण के लक्षण इतने हल्के होते हैं कि उनका पता भी नहीं चल पाता। लेकिन, ध्यान देने वाली बात यह है कि यह सभी लोग वायरस को फैलाने में उतने ही सक्षम हैं, जितने कि गंभीर रूप से बीमार लोग।

शारीरिक दूरी सबसे बेहतर विकल्प

इन दिनों सोशल मीडिया पर इस विषय में कई अनूठे उपाय देखने व पढ़ने को मिल रहे हैं। वह बताते हैं कि फलां लेप को लगाने व फलां वस्तु के इस्तेमाल से आप कोरोना वायरस के संक्रमण से बच सकते हैं। मगर, वास्तविकता यह है कि सिर्फ फिजिकल डिस्टेंसिंग से इस वायरस को फैलने से रोका जा सकता है। कोरोना से बचाव के लिए हमारी शारीरिक दूरी जितनी अधिक हो, उतना अच्छा है। लेकिन यह दूरी न्यूनतम एक मीटर या इससे अधिक होनी अनिवार्य है।

ऋषिकेश एम्स में भी बनाए जा रहे मास्क

मास्क की किल्लत को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश ने इसके लिए रास्ता निकाल लिया है। अब सामान्य मास्क एम्स स्वयं तैयार कर रहा है। एम्स में प्रतिदिन 150 से 200 मास्क तैयार हो रहे हैं, जो स्ट्रलाइज करके आगे भी प्रयोग हो सकते हैं।

कोरोना संक्रमण से समूचे देश में मास्क की मांग बढ़ गई है। उसके साथ चिकित्सा संस्थानों में आपूर्ति भी प्रभावित हुई है।अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश अब मास्क के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहेगा। एम्स के टेलरिंग अनुभाग के साथ नर्सिंग विभाग सामान्य प्रयोग में लाए जाने वाले कपड़े के मास्क तैयार कर रहा है। जिसके लिए नर्सिंग की असिस्टेंट सुपरवाइजर श्रीजा जनार्दन स्वयं इस काम की देखरेख कर रही है। उन्होंने बताया कि मास्क बनाने के लिए रॉ मैटेरियल संस्थान की ओर से उपलब्ध कराया गया है। टू और थ्री लेयर मास्क यहां बनाए जा रहे हैं। यह मास्क हरे कपड़े के हैं। जिन्हें सट्रलाइज कर फिर से प्रयोग में लाया जा सकता है। प्रतिदिन 150 से 200 मास्क यहां बनाए जा रहे हैं।

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कोरोना मामलों के नोडल अधिकारी डॉ. मधुर उनियाल ने बताया कि कोरोना संक्रमण से लड़ रहे फ्रंट वर्कर एन 95 मास्क का प्रयोग करेंगे। क्योंकि कोरोना वायरस बाल के 1700 वें हिस्से के बराबर है। अन्य स्टाफ यहां तैयार होने वाले मास्क का प्रयोग करेगा।

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