गुर्दा रोग के साथ सहजता से जीना सीखें, जाने और क्या कहते हैं चिकित्सक
गुर्दे की बीमारी होने पर व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए। समय पर सही चिकित्सकीय सलाह उपचार और खानपान में नियंत्रण से गुर्दो को या तो बचाया जा सकता है या डायलिसिस की आवश्यकता को टाला जा सकता है। यह कहना है वरिष्ठ गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ. विक्रम सिंह का।

जागरण संवाददाता, देहरादून: गुर्दे की बीमारी होने पर व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए। समय पर सही चिकित्सकीय सलाह, उपचार और खानपान में नियंत्रण से गुर्दो को या तो बचाया जा सकता है या डायलिसिस की आवश्यकता को टाला जा सकता है। यह कहना है वरिष्ठ गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ. विक्रम सिंह का।
डॉ. विक्रम ने बुधवार को प्रेस वार्ता में बताया कि हर साल मार्च के दूसरे गुरुवार को विश्व गुर्दा दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष गुर्दा दिवस की थीम है ‘गुर्दा रोग के साथ सहजता से जीना’। आमतौर पर देखा गया है कि जैसे ही मरीज को इस बीमारी का पता चलता है, वह मानसिक तनाव में आ जाता है। जबकि ऐसी स्थिति में मरीज को खान-पान, दवा और डायलिसिस की ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
उन्होंने कहा कि सारे गुर्दा रोग लाइलाज नहीं हैं। एक्यूट किडनी इंजरी के काफी मरीज समय रहते सही इलाज से पूरी तरह ठीक हो सकते हैं। क्रॉनिक किडनी फेल्योर के मरीजों में 90 प्रतिशत गुर्दे खराब होने पर दो विकल्प उपलब्ध हैं डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण। डॉ. विक्रम ने कहा कि डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है। बस समय रहते चिकित्सक की सलाह पर अमल अवश्य करें।
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दुर्भाग्यवश कोई सीकेटी (क्रॉनिक किडनी डिजीज) की गिरफ्त में आ भी जाए तो इलाज के उपलब्ध विकल्पों व विशेषज्ञों के सहयोग से इससे होने वाली विकृतियों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। सही चिकित्सकीय सलाह, उपचार और खानपान में नियंत्रण से बचाया जा सकता है गुर्दो कोमधुमेह, उच्च रक्तचाप, नेफ्राइटिस, पथरी, संक्रमण व कुछ अनुवांशिक विकार।
मुख्य लक्षण
गुर्दा रोग के मुख्य लक्षण हाथ-पैर और चेहरे पर सूजन, भूख कम लगना, उल्टी आना, खून की कमी, हड्डियों की कमजोरी, थकान, रक्तचाप बढ़ना, खुजली होना आदि है।
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