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नेशनल रूरल हेल्थ मिशन में 600 करोड़ का गोलमाल, दबाने को जुटे रहे अफसर

जिस 600 करोड़ रुपये के एनआरएचएम घोटाले पर उत्तराखंड सूचना आयोग ने वर्ष 2013 में सीबीआइ जांच की संस्तुति की थी उसे दबाने में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जी जान से जुटे रहे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 01 Sep 2019 09:07 AM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 09:07 AM (IST)
नेशनल रूरल हेल्थ मिशन में 600 करोड़ का गोलमाल, दबाने को जुटे रहे अफसर

देहरादून, सुमन सेमवाल। जिस 600 करोड़ रुपये के एनआरएचएम (नेशनल रूरल हेल्थ मिशन) घोटाले पर उत्तराखंड सूचना आयोग ने वर्ष 2013 में सीबीआइ जांच की संस्तुति की थी, उसे दबाने में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जी जान से जुटे रहे। यहां तक कि सूचना आयोग में तत्कालीन स्वास्थ्य महानिदेशक ने विस्तृत जांच करने में असमर्थता भी जता दी थी। हालांकि, अब सीबीआइ को जांच की अनुमति मिल जाने के बाद उम्मीद बढ़ गई है कि घोटाले का पूरी तरह पर्दाफाश हो पाएगा।

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सीबीआइ जांच की संस्तुति वाले उत्तराखंड सूचना आयोग का आदेश 31 दिसंबर 2013 को जारी किया गया था। सूचना आयोग ने भी एकदम से इस उच्च स्तरीय जांच करने की सिफारिश नहीं कर दी, बल्कि आयोग में प्रकरण की सुनवाई ढाई साल चली। यह आरटीआइ हरिद्वार के सुभाष घाट निवासी रमेश चंद्र शर्मा की ओर से मांगी गई थी। इसके लिए उन्हें सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। जिसके बाद स्पष्ट हुआ था कि वर्ष 2008 से 2010 के बीच एनआरएचएम के तहत निश्शुल्क वितरण के लिए 14.70 करोड़ रुपये से दवाइयां खरीदी गई थीं। पता चला कि रुड़की स्थित ड्रग वेयरहाउस में 1.21 करोड़ रुपये का दवाएं पड़े-पड़े एक्सपायर हो गई थीं। इनमें से 21 लाख 623 हजार 756 रुपये की दवाएं नाले में भी फेंक दी गई थीं। आयोग के समक्ष यह भी बात आई थी कि प्रदेशभर में योजना में करीब 600 करोड़ रुपये का गोलमाल किया गया है। मामले में सूचना आयोग ने तत्कालीन स्वास्थ्य महानिदेशक जेएस पांगती को विस्तृत जांच के निर्देश भी दिए थे। इस पर महानिदेशक ने स्वयं सूचना आयोग में उपस्थित होकर कहा था कि कोई भी मुख्य चिकित्साधिकारी जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। विभाग के मुखिया से ऐसी बातें सुनकर तत्कालीन राज्य सूचना आयुक्त अनिल शर्मा को सीबीआइ जांच की संस्तुति करनी पड़ी। साथ ही उन्होंने दवा खरीद से जुड़े तमाम दस्तावेज सील कराकर मुख्य सचिव को भेज दिए। ताकि उन्हें सीबीआइ के सुपुर्द किया जा सके।

बिना जरूरत की गई खरीद

सूचना आयोग में वर्ष 2013 में यह बात भी सामने आई थी कि गरीब मरीजों को निश्शुल्क दवा वितरण के लिए 14.70 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई थी। इसके तहत निदेशक स्टोर ने 27 दिसंबर 2008 को 2500 किट-ए, 2050 किट-बी व 10 हजार आशा किट का ऑर्डर ङ्क्षहदुस्तान एंटी बायोटेक कंपनी को दिया था। यह वह दवाएं थीं, जिनको जिलों को जरूरत भी नहीं थी। इसी कारण दवाएं रुड़की वेयरहाउस में ही पड़ी रहीं। तब अपर सचिव पीयूष कुमार ने जांच कर पाया था कि बिना सक्षम अधिकारी व क्रय समिति की अनुमति के बिना ही खरीद की गई। साथ ही ऑर्डर भी बेतहाशा बढ़ाकर दिए गए। उन्होंने तत्कालीन संयुक्त निदेशक आशा माथुर को इसका दोषी पाया था। उनके अलावा कई अन्य अधिकारी भी लपेटे में आ रहे थे। सूचना आयोग में भी जब अपर सचिव की जांच की बात सामने आई तो उन्होंने महानिदेशक से पूछा था कि आपने क्या कार्रवाई की है। जवाब में महानिदेशक ने ऐसी किसी जांच रिपोर्ट मिलने की बात से इन्कार कर दिया था। तब अपीलार्थी रमेश शर्मा ने इस बात का विरोध करते हुए आयोग को बताया था कि महानिदेशक को रिपोर्ट मिल चुकी है।

दवाओं की 1228 पेटियां कर दी थीं गायब

सीबीआइ जांच की संस्तुति के लिए आयोग का आधार तब और मजबूत हो गया, जब यह पता चला कि देहरादून, चमोली, चंपावत व बागेश्वर जिले के लिए विभिन्न दवाओं की 4020 पेटियां भेजी गई थीं, जिनमें से 1228 पेटियां बीच में ही गायब कर दी गईं। 

केंद्रीय सूचना आयोग भी कर चुका राज्य से जवाब तलब

उत्तराखंड सूचना आयोग की ओर से सीबीआइ जांच की संस्तुति किए जाने के बाद 11 अप्रैल 2014 को राज्य सरकार ने सीबीआइ जांच की हरी झंडी दे दी थी और 29 अप्रैल को शासन ने इसका नोटिफिकेशन भी कर दिया था। हालांकि, इसके बाद प्रकरण में एफआइआर दर्ज न कर फाइल को डंप कर दिया गया। सीबीआइ ने सितंबर 2014 में सरकार को रिमाइंडर भी भेजा था। प्रकरण में कोई प्रगति न होते देख आरटीआइ कार्यकर्ता रमेश चंद्र शर्मा ने इसकी पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में शिकायत की थी। अपनी शिकायत पर की गई कार्यवाही की जानकारी उन्होंने पीएमओ से आरटीआइ जानकारी भी मांगी। पीएमओ ने जवाब दिया कि शिकायत राज्य के मुख्य सचिव को भेज दी गई है। सिर्फ इतनेभर जवाब से संतुष्ट न होने पर रमेश चंद्र शर्मा ने केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई करते हुए केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त ने सीबीआइ जांच डंप किए जाने पर मुख्य सचिव व स्वास्थ्य सचिव से जवाब मांग लिया था। 

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पूर्व आयुक्त को मिल चुकी 10 बार धमकी

एचआरएचएम घोटाले का प्रकरण कितना गंभीर है, इसका अंदाजा तत्कालीन राज्य सूचना आयुक्त को मिली जान से मारने की धमकियों से भी लगाया जा सकता है। जब यह मामला सूचना आयोग में चल रहा था, उस समय सुनवाई कर रहे राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा को 10 बार धमकी दी गई थी। एक बार उन्हें पत्र के माध्यम से भी धमकी दी गई।

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