Move to Jagran APP

फायर सीजन में हिमालय में जम रहा 40 फीसद ब्लैक कार्बन

दिल्ली में आयोजित वेबिनार में पद्मश्री कल्याण सिंह रावत पूर्व वैज्ञानिकों और प्रोफेसर ने उत्तराखंड की पर्यावरणीय व जलवायु संबंधी समस्याओं पर मंथन किया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2020 04:27 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2020 04:27 PM (IST)
फायर सीजन में हिमालय में जम रहा 40 फीसद ब्लैक कार्बन
फायर सीजन में हिमालय में जम रहा 40 फीसद ब्लैक कार्बन

देहरादून, जेएनएन। हर साल फायर सीजन में हिमालयी रीजन में करीब 40 फीसद ब्लैक कार्बन जमा हो रहा है। यह ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा कारण है। एक साल में हिमालयी रीजन में तकरीबन 4000 आग की घटनाएं होती हैं। जिनसे बचाव और रोकथाम के लिए वन पंचायतों की भूमिका अहम है। पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित वेबिनार में विशेषज्ञों ने यह तथ्य प्रस्तुत किए।

loksabha election banner

दिल्ली में आयोजित वेबिनार में पद्मश्री कल्याण सिंह रावत, पूर्व वैज्ञानिकों और प्रोफेसर ने उत्तराखंड की पर्यावरणीय व जलवायु संबंधी समस्याओं पर मंथन किया। साथ ही उनके समाधान को किए जा सकने वाले प्रयासों पर प्रकाश डाला। पर्यावरणविद् पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा कि वन मानव समाज की सामाजिक, आर्थिक एवं पारितांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन, 200 वर्षों के दौरान वनों के प्रति समाज के नजरिये में व्यापक बदलाव आया। जिसके चलते वनों का अत्यधिक दोहन हुआ। ब्रिटिश इंडिया के दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने व्यापारिक हितों के लिए बांज के पेड़ों के बजाय चीड़ के पेड़ लगाए, जिससे वनों में आग की घटनाएं बढ़ीं। इससे वन्य जीवों पर भी व्यापक असर पड़ा है। हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी अल्मोड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीसीएस नेगी ने कहा कि जंगलों में आग लगने का एक प्रमुख कारण मानवकृत गतिविधियां हैं। कहा कि वन, मृदा का कटाव रोकने के साथ ही हवा, पानी और विकिरण, चक्रवातों आदि से भी सुरक्षित रखते हैं। 

आइसीएफआरई देहरादून के सेवानिवृत्त अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. विजयराज रावत ने कहा कि मानवीय गतिविधियां विशेषकर जीवाश्म ईंधनों का दहन, वनों का कटान और वनों की आग जैसी गतिविधियां इतनी अधिक मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का कारण हैं। जिससे पृथ्वी की जलवायु को खतरा पैदा हो गया है। यही कारण है कि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ रही है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

उत्तराखंड के सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक डॉ. आरबीएस रावत ने कहा कि सरकारों की ओर से किए जाने वाले प्रयास नाकाफी हैं। अभी हमें समाज के प्रति संवेदनशील बनकर हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना होगा। 

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी के चलते जंगलों की आग से कुछ राहत

वेबिनार में विशेषज्ञों ने बताया कि उत्तराखंड में इस बार लॉकडाउन के कारण मानवीय दखल कम होने से वन आग से काफी हद तक सुरक्षित रहे। इस बार अभी तक उत्तराखंड में करीब 80 घटनाएं हुईं, जिसमें 1100 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित होने से करीब दो लाख रुपये का नुकसान हुआ। यह पिछले वर्षों के मुकाबले काफी कम है। वेबिनार का संचालन दिल्ली विवि की प्रो. मलिका पांडे, कनाडा विवि के प्रो. सिद्धार्थ जैन, प्रो. आरके शर्मा व शिवा श्रीवास्तव ने किया।

Uttarakhand: फायर सीजन में अब तक आग की 88 घटनाएं, 110 हेक्टेयर जंगल झुलसा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.