उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी के चलते जंगलों की आग से कुछ राहत
लगातार उछाल भरते तापमान के बीच जंगलों में आग जरूर धधकी मगर अब मौसम ने बड़ी राहत दे दी है।
देहरादून, जेएनएन। लगातार उछाल भरते तापमान के बीच जंगलों में आग जरूर धधकी, मगर अब मौसम ने बड़ी राहत दे दी है। दरअसल, 15 फरवरी को फायर सीजन शुरू होने के बाद से मौसम निरंतर साथ दे रहा था। बारिश-बर्फबारी के चलते यहां के जंगल भी आग से महफूज थे।
आंकड़ों को ही देखें तो 15 फरवरी से लेकर 22 मई तक के वक्फे में राज्यभर में आग की 43 घटनाओं में 45.34 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंचा। इसके बाद तापमान बढ़ा तो 29 मई तक आग की घटनाओं की संख्या 109 पहुंच गई और प्रभावित क्षेत्र बढ़कर 134.93 हेक्टेयर पहुंच गया। यानी सप्ताहभर में 66 घटनाओं में बढ़ोतरी। इस बीच अच्छी बात ये रही कि मौसम ने करवट बदली और हल्की फुहारों ने वन महकमे को फिर से राहत दे दी। यह भी बात सही है कि मौसम की मेहरबानी की वजह से ही इस बार जंगलों की आग कम है।
सियासत की आग में तपे जंगल
देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड के जंगलों में पिछले साल के मुकाबले आग इस बार भले ही काफी कम हो, मगर जंगल सियासत की आग में भी तप रहे। इंतेहा तब हुई, जब तीन दिन पहले सोशल मीडिया में पुराने फोटो अपलोड कर ऐसा दिखाने का प्रयास हुआ मानो आग बेकाबू हो चुकी हो। इसमें सबसे पहले कूदे कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद, जिन्होंने आग के विकराल रूप धारण करने का दृश्य चित्रित किया।
इससे हरकत में आई सरकार ने पड़ताल कराई तो पता चला कि कहीं भी ऐसा नहीं है। फिर तो खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मोर्चा संभाला और कांग्रेस नेता की पोस्ट को पूरी तरह फेक बताते हुए नसीहत भी दी। मामला तूल पकड़ा तो कांग्रेस नेता ने अपनी पोस्ट हटा दी, मगर अगले दिन भी फिर सियासत होती रही। ऐसे में फिजा में यही बात तैर रही कि काश, सियासतदां वास्तव में जंगलों के संरक्षण को लेकर अपनी सजगता दिखाते।
ग्रामीण भी निरंतर कर रहे सहयोग
फायर सीजन में जिस मोर्चे पर वन विभाग अब तक नाकाम रहता आया है, उसे लेकर इस बार कुछ राहत भरी खबर आई है। यह है वनों में आग पर नियंत्रण के लिए ग्रामीणों का सहयोग। जंगलों में लगी आग को बुझाने में तो ग्रामीण सहयोग दे ही रहे, आग का फैलाव न हो इसके लिए हो रही कंट्रोल बर्निंग में भी सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं।
चंपावत जिला इसका उदाहरण है, जहां ग्रामीण इसमें लगातार योगदान दे रहे हैं। न केवल चंपावत, बल्कि अन्य पर्वतीय इलाकों की भी तस्वीर इससे जुदा नहीं है। असल में वन विभाग अब तक जंगलों की आग पर नियंत्रण के लिए ग्रामीणों का सहयोग लेने के मामले में फिसड्डी साबित होता आया है। और तो और वह वन पंचायतों का भी सहयोग नहीं ले पा रहा था। ऐसे में इस बार ग्रामीणों की सक्रियता को भविष्य के लिए अच्छा संकेत माना जा सकता है।
कार्बेट, राजाजी रिजर्व पर टिकी नजर
कोरोना संकट के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था भी पटरी से उतरी हुई है। हालांकि, सरकार इससे उबरने को प्रयासों में मुस्तैदी से जुटी है। ऐसे में नजरें कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में होने वाले वन्यजीव पर्यटन पर भी टिक गई हैं। दरअसल, वन्यजीव पर्यटन ऐसा क्षेत्र है, जिसमें सुरक्षित शारीरिक दूरी के मानकों का पालन करते हुए सैलानियों को वन्यजीव पर्यटन के लिए भेजा जा सकता है। इस लिहाज से दोनों टाइगर रिजर्व की तैयारियां भी पूरी हैं।
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कार्बेट में नाइट-स्टे की सुविधा है, जबकि राजाजी में केवल डे-विजिट होती है। अब इंतजार है तो केंद्र सरकार की गाइडलाइन का। यदि केंद्र से हरी झंडी मिलती है तो दोनों रिजर्व में शारीरिक दूरी के मानकों का अनुपालन करते हुए पर्यटन गतिविधियां शुरू हो सकती हैं। ऐसा होता है तो इससे राज्य को आय भी होगी और दोनों रिजर्व से जुड़ी ईको विकास समितियों के ग्रामीणों को भी लाभ मिलेगा।
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